For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

======ग़ज़ल=======
बह्र ए खफीफ
वजन- २ १ २ २ , १ २ १ २ , २ २

यूँ बिछड़ने की ये अदा कैसी 
इक मुलाक़ात की दुआ कैसी

जख्म दिल के हमारे भरने को
चश्म छलका रहे दवा कैसी

रात दिन याद में तेरी गुजरे
इश्क करने की ये सजा कैसी

बेबफाई से मिट गए आशिक 
दिल में फिर भी है ये वफ़ा कैसी

संगदिल इश्क नहीं करते हैं
हो गयी आपसे खता कैसी 

सामने मेरे झुका लीं पलकें
आइने से है ये हया कैसी

"दीप" अपनों को कैसे ठगना है
चल रही छल की ये हवा कैसी

संदीप  पटेल  "दीप"
सिहोरा  जबलपुर ( म . प्र. )

Views: 502

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2012 at 6:01pm

अच्छा प्रयास किया है संदीप भाई |

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 13, 2012 at 12:14pm

आदरणीय वीनस सर जी , आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी
मैंने ग़ज़ल पकाई तो मगर फिर भी कच्ची रह गयी और फिर तडके के चक्कर में एक शेर की बह्र से ही भटक गया
और एक दो शेर भर्ती के जो बढे तो फिर सारा जायका ही  बिगड़ गया
अगली बार जब पकाऊंगा तो पहले खुद चख के चखाऊंगा भी तभी परोसुंगा
आप का स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
सादर आभार
पहले जो शेर बे-बह्र हुआ वो ऐसा था

संगदिल इश्क तो नहीं करते
हो गयी आपसे खता कैसी

फिर पकते पकते जल्दबाजी में शायद नमन का डिब्बा उड़ेल दिया और सब किरकिरा हो गया

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 13, 2012 at 12:09pm

आदरणीय लक्षमण सर जी , आदरणीया राजेश कुमारी जी , आदरणीय अविनाश सर जी , आदरणीय गुरुवर  सौरभ  सर जी, आदरणीय वीनस सर जी सादर प्रणाम

आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार
ये स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये

Comment by वीनस केसरी on October 13, 2012 at 12:33am

जख्म दिल के हमारे भरने को
चश्म छलका रहे दवा कैसी
संदीप जी
इस शेर पर ढेरों दाद
अच्छा शेर हो गया है, बड़ी बात को छोटी बहर में बखूबी कह गये
जितनी तारीफ़ करू कम है

१-२ शेर भर्ती के भी हैं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 12, 2012 at 11:08pm

बहुत सुन्द.. . 

जख्म दिल के हमारे भरने को
चश्म छलका रहे दवा कैसी

सामने मेरे झुका लीं पलकें
आइने से है ये हया कैसी ..........  वाह वाह !

एक बात : सही कहा वीनसभाई. 

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2012 at 9:22pm

संगदिल इश् /क नहीं कर / ते हैं
    2122      /   1122      /  22


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 12, 2012 at 7:17pm

सामने मेरे झुका लीं पलकें 
आइने से है ये हया कैसी ----बहुत प्यारा शेर बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए 

Comment by AVINASH S BAGDE on October 12, 2012 at 6:56pm

जख्म दिल के हमारे भरने को 
चश्म छलका रहे दवा कैसी

kya dawa hai Sandeep bhai.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 12, 2012 at 5:13pm
छले की यह हवा कैसी - क्या खूब कहा है भाई संदीप कुमार पटेल जी 
हर व्यक्ति हर पल हर जगह छला ही जा रहा है, क्या इसकी न दावा कोई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
12 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
12 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service