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“मीत मन से मन मिला तू और स्वर से स्वर मिला,”
कर लिया यह कर्म जिस ने उस को ही ईश्वर मिला.
कांच   की  कारीगरी  में  जो   निपुण  थे  साथियों,
आजकल उन के ही  हाथों  में   हमें   पत्थर  मिला.
पेट भर  रोटी  मिली   जब   भूखे  बच्चों को  हुज़ूर,
सब कठिन प्रश्नों का उन को इक सरल उत्तर मिला.
चापलूसी  की   कला  में  जो  है  जितना  ही चतुर,
जग में उस को उतना ही सम्मान और आदर मिला.
यह पुरातन सत्य  है  कि  वानर की हैं संतान हम,
आज  मानव रूप में भी हम को  वही  बन्दर मिला.
प्रेम  का  आश्रम   सजाने  के   लिए आ श्रम  करें,
ऐसे  कर्मों  का जगत में फल भी सदा सुन्दर मिला.
एक प्यारी सी  ग़ज़ल बन ही  गयी  इस पँक्ति  से ,
बहर  भी   है  ख़ूबसूरत   क़ाफ़िया  सुन्दर  मिला.
मन  में रामायण सा ही वो बस गया है  ऐ ‘लतीफ़’   
यूं  सतत् पावन  पठन का  उम्र  भर अवसर मिला.

©अब्दुल लतीफ़ ख़ान (दल्ली राजहरा).

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 20, 2012 at 7:51pm

 जल  जीवन  का   सार   है ,  परखो   जी    श्री मान !
देते     हैं    सन्देश    यही ,    गीता    और    क़ुरान !!

सुन्दर सन्देश देती उम्दा रचना बधाई लतीफ़ भाई 
Comment by लतीफ़ ख़ान on November 20, 2012 at 4:52pm

[1]   जल चरणों के श्लोक यह ,  जग हित में शुभ-लाभ !

       पी कर विष   प्रदूषण  का ,   हुआ   नीर   अमिताभ !!

[2]   पाट कर   सब ताल कुँए   ,   हम ने   की यह भूल !

       पानी  -  पानी    हो    गई     ,    निज  चरणों की धूल !!

[3]   कर न  पायें  दीपक  ज्यों   ,    तेल   बिना    उजियार !

        उसी  भाँति  यह नीर है     ,    जीवन    का    आधार !!

[4]   पिघल-पिघल कर ग्लेशियर,   देते    नित    संकेत !

        जल प्रलय अब दूर नहीं  ,     सब जन जाएँ  चेत !!

[5]    सूरज आग   उगल    रहा   ,      बढ़ता   जाए   ताप  !

        जल बिना यह जीवन है   ,    जैसे इक  अभिशाप !!

[6]    पानी   का क्या   मोल   है   ,     जाने     रेगिस्तान !

        जहाँ   उसे   इक बूँद   भी     ,     लागे   सुधा  समान !!

[7]    कहीं   बाढ़    सूखा    कहीं    ,     कहीं   सुनामी  ज्वार !

        मूर्ख   मानव   खोल   रहा    ,      जल   प्रलय  के  द्वार !!

[8]    सागर   से   बादल    बनें     ,      बादल   से यह नीर !

        जल  बिना यह  जीवन है   ,      सचमुच    टेढ़ी   खीर !!

[9]    अत्यधिक   जल दोहन से ,     सूख रहे   सब स्रोत !

         कैसे जल बिन फिर चलें ,      इस  जीवन  के पोत !!

[10]   नीर  बिना   जीवन   नहीं    ,      बाँधो   मन में   गाँठ !

         जीवन  रूपी  पुस्तक   का    ,      जल ही पहला  पाठ   !!

[11]   धन - दौलत   से   कीमती   ,      पानी   की   हर   बूँद !

         पानी   को   बरबाद     कर    ,       यूँ  ना   आँखें    मूँद !!

[12]   जल  कहे   यह मानव से    ,     नष्ट  न  करियो  मोय !

         अपितु मैं जल समाधि बन ,    नष्ट    करूँगा    तोय !!

[13]   जो  मानव  जन नित करें ,    पानी  का   सम्मान !

         उस  के   जीवन   में    रहे     ,    सदा   मधुर  मुस्कान !!

[14]   पानी    से   मत     पूछिए    ,     क्या  है  उस  का रंग   !

         रंग  जाए   उस   रंग    में     ,      मिल  जाए  जिस  संग !!

[15]  जल  जीवन  का   सार   है   ,       परखो   जी    श्री मान !

         देते     हैं    सन्देश    यही    ,        गीता    और    क़ुरान !!

[16]   स्वार्थ   पूर्ति   ही न बनें    ,        जीवन का  अभिप्राय !

       "लतीफ़" हम सब मिल करें ,   जल  रक्षण के उपाय !!

                                          लतीफ़ खान ,,  दल्ली राजहरा ...

Comment by लतीफ़ ख़ान on November 7, 2012 at 8:59pm

श्री अरुण कुमार निगम जी ,तरही ग़ज़ल में आप की कोशिश बहुत ही शानदार है। कोशिश करते रहिये ,कोशिशें अक्सर कामयाब होती हैं। सौरभ जी ने जो मशविरा दिया है एकदम सही है।उन के सुझाव अनुसार कार्य कीजिए ,सफलता की मंजिल दूर नहीं।।।।बधाई ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 7, 2012 at 8:56pm

इस सुन्दर और सुगढ़ प्रस्तुति को मैं आज देख पा रहा हूँ. खेद है.

ग़ज़ल की प्रस्तुति में बहुत ही संयत प्रयास हुआ है. 

कांच   की  कारीगरी  में  जो   निपुण  थे  साथियों,
आजकल उन के ही  हाथों  में   हमें   पत्थर  मिला.
पेट भर  रोटी  मिली   जब   भूखे  बच्चों को  हुज़ूर,
सब कठिन प्रश्नों का उन को इक सरल उत्तर मिला.

इन दो अश’आर के लिये हृदय से बधाई स्वीकार करें, लतीफ़ भाई.   आपकी रचनाओं की प्रतीक्षा रहती है, फिर भी यह विशिष्ट ग़ज़ल अबतक छूट रही थी.

सादर

Comment by लतीफ़ ख़ान on November 7, 2012 at 8:29pm

शिखा कौशिक नूतन जी,,, उम्दा अशआर केलिए बधाई,, नारी शक्ति पर शशक्त रचना।

Comment by लतीफ़ ख़ान on November 7, 2012 at 8:16pm

श्री अरुण कुमार निगम जी ,तरही ग़ज़ल में आप की कोशिश बहुत ही शानदार है। कोशिश करते रहिये ,कोशिशें अक्सर कामयाब होती हैं। सौरभ जी ने जो मशविरा दिया है एकदम सही है।उन के सुझाव अनुसार कार्य कीजिए ,सफलता की मंजिल दूर नहीं।।।।बधाई ...

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 17, 2012 at 9:17am

“मीत मन से मन मिला तू और स्वर से स्वर मिला,”
कर लिया यह कर्म जिस ने उस को ही ईश्वर मिला.

बहुत सुन्दर मतला और दाद के काबिल हर शेर, सुन्दर गजल पर बधाई स्वीकार करें आद. अब्दुल लतीफ़ खान साहब.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 16, 2012 at 12:46pm

आदरणीय लतीफ़ खान साहब सादर प्रणाम
वाह वाह वा
क्या बात है इक इक शेर शानदार है
बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है सर जी
दाद पे दाद क़ुबूल कीजिये

Comment by AVINASH S BAGDE on October 16, 2012 at 11:28am

चापलूसी  की   कला  में  जो  है  जितना  ही चतुर,
जग में उस को उतना ही सम्मान और आदर मिला.

--
कर लिया यह कर्म जिस ने उस को ही ईश्वर मिला.

--

प्रेम  का  आश्रम   सजाने  के   लिए आ श्रम  करें,

वाह |लतीफ़ खान साहिब !!

Comment by रविकर on October 16, 2012 at 9:59am

वाह भाई वाह |
मजेदार ||
बधाई स्वीकारें , आदरणीय ||

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