For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक नवगीत : शब्द चित्रों की सफलता के लिए

खूबसूरत दृश्य
हम गढ़ते रहे,
शब्द चित्रों की
सफलता के लिए |


शहर धीरे धीरे
बन बैठा महीन
दिख रहा है हर कोई
कितना जहीन
गाँव दण्डित है
सहजता के लिए || १ ||

घर की दीवारों
में हाहाकार है
लक्ष्मी का रूप
अस्वीकार है
कौन सोचे
नव प्रसूता के लिए || २ ||

जब से हम सब
खुद पे अर्पण हो गये
बस तभी शीशा से
दर्पण हो गये
या सुपारी हैं
सरौता के लिए || ३ ||

हाशियों में भी
नहीं संवेदना
हर नए पन्ने में
खुद की कल्पना
हैं सभी आतुर
नवलता के लिए || ४ ||

अनकही ग़ज़लें भी
चोरी हो गईं
पंक्तियाँ भावों से
कोरी हो गईं
हम तखल्लुस भर हैं
मक्ता के लिए || ५ ||

मित्रों
गीत विधा में हाथ आजमा रहा हूँ, कहीं कुछ चूक हुई हो तो अवश्य बताएँ, आभारी रहूँगा
सादर

Views: 489

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on October 14, 2012 at 7:32pm

आदरणीय गणेश जी,
ह्रदय तल से आपको बारम्बार धन्यवाद

Comment by वीनस केसरी on October 14, 2012 at 7:30pm

धन्यवाद लक्षमण प्रसाद जी
आपकी सदाशयता को बारम्बार प्रणाम

Comment by वीनस केसरी on October 14, 2012 at 7:27pm

सौरभ जी सादर धन्यवाद
गीत का द्वितीय प्रयास आपसे अनुमोदित हुआ यह मेरे लिए हर्ष का विषय है

नवालता को नवलता पढ़ें (टंकण त्रुटि है )


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2012 at 12:12pm

//हम तखल्लुस भर हैं
मक्ता के लिए//

आहा !! क्या बात कही है वीनस भाई, स्वयम के अस्तित्व को सिमित करती पक्तियां बहुत कुछ अनकहे कह जाती हैं, बहुत ही सुन्दर नव गीत, बहुत बहुत बधाई |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 14, 2012 at 9:57am
खुबसूरत नवगीत हार्दिक बधाई श्री वीनस केसरी जी -

जब से हम सब 
खुद पे अर्पण हो गये 
बस तभी शीशा से 
दर्पण हो गये ------------बेहतरीन पंक्तिया उम्दा अभिव्यक्ति भाई वीनस जी 

या सुपारी हैं 
सरौता के लिए

अनकही ग़ज़लें भी 
चोरी हो गईं -------------हे राम क्या जमाना आ गया | ऍफ़ आई आर दर्ज कराई क्या ?
पंक्तियाँ भावों से 
कोरी हो गईं ------------ भावुक अब भूखे मरते है, पंक्तियों में भाव नहीं खुनी मांग भरते है, सर जी 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 14, 2012 at 7:06am

वीनस भाई, सर्वप्रथम तो आपको इस सद्-प्रयास पर हार्दिक बधाई.

इस नवगीत के कई बिम्ब बरबस ध्यान खींचते हैं.

शहर धीरे धीरे
बन बैठा महीन
दिख रहा है हर कोई
कितना जहीन
गाँव दण्डित है
सहजता के लिए

वाह ! आखिरी पंक्तियों पर रोमांच हो आया. सबसे अव्वल, शहर के लिये महीनी शब्द दिल को भा गया.

बहुत-बहुत बधाई, इस गठन पर !

हाशियों में भी
नहीं संवेदना
हर नए पन्ने में
खुद की कल्पना
हैं सभी आतुर
नवालता के लिए

वाह ! क्या सटीक संप्रेषण है ! दिल से बधाई इस बंद पर.

एक बात,  शब्द ’नवालता’ है या ’नवलता’ ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
13 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
14 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service