For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजक

मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल।
लगता है भूल बैठे हैं मक़्सद वो आजकल॥

उनका मुझे परखने का अंदाज़ देखिये,
लीटर से नापते हैं मेरा क़द वो आजकल॥

हल्के हवा के झोंके भी जो सह नहीं सके,
कहते फिरे हैं अपने को अंगद वो आजकल॥

रिश्तों की बात करते नहीं हैं किसी से अब
घायल हुए हैं अपनों से शायद वो आजकल॥

कल तक पकड़ के चलते थे जो उँगलियाँ मेरी
कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥

ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥

“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥

-- डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

Views: 826

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 17, 2012 at 3:16pm

एक से बढ़ के एक 

बधाई सर जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 17, 2012 at 9:03am

आदरणीय बाली जी

                   बेहतरीन गजाल पर बधाई स्वीकार करें.

Comment by AVINASH S BAGDE on October 16, 2012 at 11:32am

उनका मुझे परखने का अंदाज़ देखिये,
लीटर से नापते हैं मेरा क़द वो आजकल॥.....अंदाज़ देखिये

कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥..sateek

“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥

                           डॉ. सूर्या बाली “सूरज”Sir ...kya roushani dikhai hai

 

Comment by AVINASH S BAGDE on October 16, 2012 at 11:30am

मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल(aaj tak)....Salman khursheed.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 16, 2012 at 10:49am

मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल।
लगता है भूल बैठे हैं मक़्सद वो आजकल॥---------------दूसरो को उपदेश देना बहुत आसन होता है 

उनका मुझे परखने का अंदाज़ देखिये,
लीटर से नापते हैं मेरा क़द वो आजकल॥------पता नहीं नीर समझते हैं या क्षीर 

हल्के हवा के झोंके भी जो सह नहीं सके, 
कहते फिरे हैं अपने को अंगद वो आजकल॥------ओवर कान्फिडेंस 

रिश्तों की बात करते नहीं हैं किसी से अब
घायल हुए हैं अपनों से शायद वो आजकल॥----अपनों का किया घायल अधमरा जो हो जाता है 

कल तक पकड़ के चलते थे जो उँगलियाँ मेरी 
कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥-----यही होता है सब कुछ भूल जाते हैं 

ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥------हहाहाहा--कटाक्ष !!!

“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥------चापलूसों से बचना ही चाहिए 

वाह क्या शानदार ग़ज़ल लिखी है काफी दिन बाद लिखी है आपने बहुत उम्दा दाद कबूल करें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2012 at 10:09am

दिल झूम उठा, डॉक्टर साहब !

मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल।
लगता है भूल बैठे हैं मक़्सद वो आजकल॥

ये वो मतला है जो मसल हो जाता है. बहुत खूब !

हल्के हवा के झोंके भी जो सह नहीं सके,
कहते फिरे हैं अपने को अंगद वो आजकल॥

कल तक पकड़ के चलते थे जो उँगलियाँ मेरी
कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥

ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥

“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥

उपरोक्त अश’आर बार-बार पढ़ रहा हूँ और बार-बार दाद कह रह हूँ. आपकी लगन ऐसी है कि आपकी मसरुफ़ियत झुक कर सलाम करे.

हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ.

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 16, 2012 at 7:38am

रिश्तों की बात करते नहीं हैं किसी से अब
घायल हुए हैं अपनों से शायद वो आजकल॥

बहुत बढ़िया.......

Comment by satish mapatpuri on October 16, 2012 at 12:10am

ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥

इस अदा पर कुर्बान जाऊं ..... स्तरीय कटाक्ष ....... बेहतरीन कहन .... मज़ा आ गया डॉ . बाली साहेब .... लख -लख मुबारका

Comment by वीनस केसरी on October 15, 2012 at 11:14pm

बहुत खूब डॉ साहब उम्दा शेर हुए हैं
बहरो रदीफो कवाफी इतने तंग हैं और उस पर भी क्या लाजवाब अशआर निकाले आपने
वाह वाह वा
ढेरो दाद कबूल करें

Comment by ajay sharma on October 15, 2012 at 10:43pm

ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद ..........वो आजकल॥ best of lines

“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद .......वो आजकल॥ really good

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service