Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 24, 2012 at 10:00am — 13 Comments
गीत:
हर सड़क के किनारे
संजीव 'सलिल'
*
हर सड़क के किनारे हैं उखड़े हुए,
धूसरित धूल में, अश्रु लिथड़े हुए.....
*
कुछ जवां, कुछ हसीं, हँस मटकते हुए,
नाज़नीनों के नखरे लचकते हुए।
कहकहे गूँजते, पीर-दुःख भूलते-
दिलफरेबी लटें, पग थिरकते हुए।।
बेतहाशा खुशी, मुक्त मति चंचला,
गति नियंत्रित नहीं, दिग्भ्रमित मनचला।
कीमती थे वसन किन्तु चिथड़े हुए-
हर सड़क के किनारे हैं उखड़े हुए,
धूसरित धूल में, अश्रु लिथड़े हुए.....
*
चाह की रैलियाँ,…
Added by sanjiv verma 'salil' on November 24, 2012 at 8:16am — 9 Comments
चुगली
कमजोरी की निशानी है,
कामचोरी की पहचान है,
कटुता,द्वेष छिपे हैं इसमें,
स्वार्थ की बहन है चुगली ।
अपने दोषों को छिपाकर,
बनावटीपन व्यवहार लाकर,
दूसरों को नीचा दिखाने का,
एक तरीका है, चुगली ।
बिना मेहनत फल की इच्छा का,
दूसरों की मेहनत का फल खाने का,
कायरता के साथ वीरता दिखाने का,
एक डरपोक का साहसी गुण है चुगली ।
विश्वासघात का प्रतीक है चुगली,
अतिमहत्वाकांक्षा का रूप है चुगली,
झूठा वफ़ादार बनने के…
Added by akhilesh mishra on November 24, 2012 at 6:00am — 4 Comments
वो नर नाहिं रहे डरते डरते सबसे नित आप हि हारे।
पामर भाँति चले चरता पशु भी अपमान सदा कर डारे।
मानव जो जिए गौरव से अपनी करनी करते हुए सारे।
जीवन हैं कहते जिसको बसता हिय में निजमान किनारे॥
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 23, 2012 at 9:34pm — 6 Comments
कसाब की फाँसी
पूरा देश खुशी मनाया,
कसाब की फाँसी पर,
ऐसा लगा मानो कोई बड़ा काम हुआ,
अधर्म पर धर्म की जीत हुयी,
किसी कमजोर ने बहादुरी का काम किया,
कंजूस ने महँगा आयोजन किया ।
खुशी की यह बात नहीं,शहीदों को याद करो,
यह बहुत पहले होना था,
खुशी तो तब मनाना,
जब अफ़ज़ल ,सईद फाँसी पर लटके,
हिंदुस्तान ताकत…
ContinueAdded by akhilesh mishra on November 23, 2012 at 3:00pm — 8 Comments
महाराजा, जहाँ चाहे, वहाँ आज्ञा, चलाता है।
खिलाड़ी है, बड़ा वीरू, सदा बल्ला, बताता है।
कभी चौका, कभी छक्का, लगा सौ ये, बनाता है।
मिला मौका, कि गेंदों से, करामातें, दिखाता है॥
किसी के भी, इलाके में, सिंहों जैसा, सही वीरू।
सभी ताले, किले सारे, गिरा देता, यही वीरू।
बिना देरी, विरोधी को, पछाड़े जो, वही वीरू।
डरे-भागे, कभी कोई,…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 23, 2012 at 2:30pm — 10 Comments
Added by राजेश 'मृदु' on November 23, 2012 at 1:30pm — 12 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 23, 2012 at 1:08pm — 12 Comments
ग़ालिब-ओ- मीर हो या फैज़-ओ-फ़राज़ हो
हर जगह शायरी का तख़्त-ओ-ताज हो
जब दवा हो जाए नाकाम दोस्तों
तब ग़ज़ल से ही गम का इलाज़ हो
Added by Nilansh on November 23, 2012 at 12:31pm — 10 Comments
धरती अम्बर से कहे ,सुना प्रेम के गीत
अम्बर धरती से कहे, दिवस गए वो बीत
दिवस गए वो बीत ,मुझे कुछ दे न दिखाई
कोलाहल के बीच,तुझे देगा न सुनाई
जन करनी के दंड, अभागिन प्रकृति भरती
किस विध मिलना होय ,तरसते अम्बर धरती
*******************************************
Added by rajesh kumari on November 23, 2012 at 12:30pm — 17 Comments
शौहर की मैं गुलाम हूँ बहुत खूब बहुत खूब ,
दोयम दर्जे की इन्सान हूँ बहुत खूब बहुत खूब .
कर सकूं उनसे बहस बीवी को इतना हक कहाँ !
रखती बंद जुबान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
उनकी नज़र में है यही औकात इस नाचीज़ की ,
तफरीह का मैं सामान…
Added by shikha kaushik on November 23, 2012 at 12:30pm — 16 Comments
दो कदम ही सही साथ,चलकर के देखों.
हम गरीबों की हालात, चलकर के देखों.
ऊँचे महलों से बारिस का मज़ा लेनेवालों,
तंग गलियों की बरसात,चलकर के देखों.
संसद के सोफे क्या समझेगे गावों का मर्म,
बेबस जनता की मुश्किलात,चलकर के देखों.
सुहागन से सदा बेवा का दर्द जाननेवालों,
कभी बिरह में एक रात, जलकर के देखों.
झूठे कसमों से इन्तखाब जीत जानेवालों,
छली जनता का जज्बात,चलकर के देखों.
ऐशों-आराम तय करते है मुकद्दर किल्लतों का,
सता से बाहर अपनी…
Added by Noorain Ansari on November 22, 2012 at 3:13pm — 4 Comments
चुन चुन के ख्वाब मेरे जलाया दोस्तों
खूँ में उसने आज ये क्या मिलाया दोस्तों
रब से मिलती रही औ घूँट भरती रही
जहर उसने ज्यों प्याले से पिलाया दोस्तों
चाहत घर की रही और मकाँ मिल गया
कैसा किस्मत ने देखो गुल खिलाया दोस्तों
जिस्म अपना रहा औ रूह उसकी मिली
सब कुछ उसकी लगन में है भुलाया दोस्तों
पीर जमती रही औ पर्वत बनता रहा
आंसुओं की तपन ने ना पिघलाया दोस्तों
खुद ही रख दूँ मैं लकड़ी चिता…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 22, 2012 at 1:37pm — 16 Comments
तैयार किए गए
कुछ रोबोट
डाले गए
नफरत के प्रोग्राम
चार्ज किए गए
हैवानियत की बैटरी से
फिर भेज दिये गए
इंसानों की बस्ती में
फैलने आतंक
ये और बात है
इंसानियत ज़िंदा रही
हार गए हैवान
नहीं डरा सके हमें
न हीं कमज़ोर कर सके
हमारा आत्मविश्वास
और…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on November 22, 2012 at 11:53am — 9 Comments
सरकार की अपना करो बखान
क्या खूब किया इसने इंसाफ
खाली कर दिया देश खजाना
बचाने को आतंकी मियां “कसाब”
हत्याओं की लगा कतार
फाँसी लटके खुद भी यार
पाप की सजा जो तुमने पाई
पाक की इज्जत खाक मिलाई
आतंकियों का बन शिरोमणि
ताज पर बमो की झड़ी लगाई
बेगुनाहों का मार के यारा
माफ़ी की फिर गुहार लगाई
जख्म भी ऐसे दिए जहाँ को
शैतान भी ले सर झुका
जेल में रह कर भी
पड़ा ना…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 22, 2012 at 11:30am — 6 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 22, 2012 at 10:28am — 3 Comments
Added by shikha kaushik on November 21, 2012 at 11:19pm — 9 Comments
वो नज़र नज़र भर क्या देखें
वो रुका समंदर क्या देखें
जो पत्थर जैसा मिला सदा
दिल उसके अन्दर क्या देखें
कोई उनके जैसा बना नहीं
हम तुम्हें पलटकर क्या देखें
हमने तो हंस के छोड़ा सोना
ये कौड़ी चिल्लर क्या देखें
वो चाँद बुझा कर जा सोये
हम तारे गिनकर क्या देखें
टूट गये गुल गईं बहारें
अब उजड़ा मंज़र क्या देखें
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Added by Pushyamitra Upadhyay on November 21, 2012 at 10:09pm — 3 Comments
बुरे काम का बुरा नतीजा |
चच्चा बाकी, चला भतीजा ||
गुरु-घंटालों मौज हो चुकी-
जल्दी ही तेरा भी तीजा ||
गाल बजाया चार साल तक -
आज खून से तख्ता भीजा ||
लगा एक का भोग अकेला-
महाकाल हाथों को मींजा |
चौसठ लोगों का शठ खूनी -
रविकर ठंडा आज कलेजा ||
Added by रविकर on November 21, 2012 at 8:45pm — 4 Comments
लघुकथा :- तरकीब
ठाकुर साहब की चाकरी करते करते भोलुआ के बाबूजी पिछले महीने चल बसे, अब खेत बघार का सारा काम भोलुआ ही देखता था, बदले मे ठाकुर साहब ने जमीन का एक टुकड़ा उसे दे दिया था जिससे किसी तरह परिवार चलता था | ठाकुर साहब भोलुआ को बहुत मानते थे, सदैव भोलू बेटा ही कह कर बुलाते थे | ठाकुर साहब द्वारा इतना सम्मान भोलुआ के प्रति प्रदर्शित करना उनके बेटे विजय बाबू को…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 21, 2012 at 8:30pm — 21 Comments
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