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जल्दी ही तेरा भी तीजा-

बुरे काम का बुरा नतीजा |
चच्चा बाकी, चला भतीजा ||

गुरु-घंटालों मौज हो चुकी-
जल्दी ही तेरा भी तीजा ||

गाल बजाया चार साल तक -
आज खून से तख्ता भीजा ||

लगा एक का भोग अकेला-
महाकाल हाथों को मींजा |

चौसठ लोगों का शठ खूनी -
रविकर ठंडा आज कलेजा ||

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 22, 2012 at 6:07pm

बहुत बढ़िया सामयिक व्यंग्य पूर्ण रचना के लिए बधाई 

चौसठ लोगों का शठ खूनी -
रविकर ठंडा आज कलेजा ||----सभी भारत वासीयों का कलेजा ठंडा हो गया बधाई जय हिन्द 

 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 22, 2012 at 4:37pm

अबके खूब तर हुआ कलेजा 

देखो बिल्कुल  नहीं पसीजा 
होता इसका यही नतीजा
समझा तू भी सही भतीजा ।
ऐसे ही अब और लिखता जा 
बहुत खूब है शुक्रिया लेता जा 
 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 22, 2012 at 6:44am

रचना का निहितार्थ संकेतात्मक तथा व्यंग्यात्मक है, किन्तु, अभिप्राय स्पष्ट नहीं हो पाया. मेरा सादर मानना है कि रचना की कहन तथा शाब्दिकता पर प्रयास करने के साथ-साथ विधा व शिल्प पर भी यथोचित समय दिया गया होता तो एक भली-चंगी हिन्दी/नागरी ग़ज़ल निखर आयी होती, आदरणीय.

सादर

Comment by वीनस केसरी on November 22, 2012 at 3:39am

कलेजा तर हो गया .... :)))

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