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देश में चल रही रेस 
जो जीता,नायक उसका-
बना नरेश,
जो हारा झटके से 
उसको लगती भारी ठेस ।
नेताओ ने बदला भेष, 
शेर की खाल में-
देखो गीदड़ की चेस ।
हावी हो रहे हैवान,
बढ़ते जा रहे शैतान ; 
जनता सब है हैरान,
नहीं रहे अब कद्रदान ।
इसको कहते -
जिसकी लाठी -
इसकी भैस,
बाकि सबको-
पहुंचे भारी ठेस ।
 
बढ़ता जाता -
प्रदूषित जहरी धुंआ,
घटता जाता पानी-
सूखे सब कुआं ।
बढ़ता जाये चहुँ और-
मटका खेल औ जुआ,
वोट मानते आता-
वह जुआरी,
नेता भी अब 
हुए मदारी । 
वोट मांगता -
जैसे भिखारी,
जीत जाने पर -
उसी जनता पर-
गांठे सवारी । 
नहीं रुके अब-
यह पल्लम पेल,
नेता खेले-
सब, ठल्लम ठेल ।
 
देश में चल रही -
यह कैसी अंधी रेस,
सहता हरदम सारा देश,
 
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर  

 

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 26, 2012 at 9:50am

मेरा प्रयास सार्थक हुआ, हार्दिक आभार आपका भाई श्री अशोक रक्ताले जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 25, 2012 at 7:52pm

देश में चल रही -

यह कैसी अंधी रेस,
सहता हरदम सारा देश,
सुन्दर देश के प्रति उद्गारों को व्यक्त करती रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय लड़ीवाला जी. सादर.
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 25, 2012 at 5:06pm

भाई श्री प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी, आपने अपने विस्वविद्यालय का मान कर मान बढाया, आपका हार्दिक आभार 

 

 
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 25, 2012 at 4:27pm

आदरणीय लड़ीवाला जी, सादर 

अच्छा आप भी हमारे विश्व विद्यालय से हैं. स्वागत है. 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 24, 2012 at 10:13pm

हार्दिक आभार आपका आदरणीय गणेशजी बागी जी, फेस बुक वाली आदत से हटकर  इस मंच पर आप विद्वजनो के सहयोग से तुकबंदी से आगे बढ़कर काव्य और शिल्प रचना की ओर प्रयास करूँगा । अभी हाल ही दोहे "बदल गयी तरकीब" का अवलोकन कृपया मार्ग दर्शन कर अनुग्रहित करे ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 24, 2012 at 10:06pm

रचना सराहने के लिए हार्दिक आभार आपका आदरणीया राजेश कुमारी जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 24, 2012 at 9:01pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, कथ्य आपके पास हमेशा रहता है, बधाई | आपसे तुकबंदी से आगे की चाहत रहती है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 24, 2012 at 6:56pm

समसामयिक रचना बहुत बहुत बधाई लक्ष्मण जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 24, 2012 at 11:48am

धन्यवाद आपका श्री योगी सारस्वत जी 

Comment by Yogi Saraswat on November 24, 2012 at 11:16am
बढ़ता जाता -
प्रदूषित जहरी धुंआ,
घटता जाता पानी-
सूखे सब कुआं ।
बढ़ता जाये चहुँ और-
मटका खेल औ जुआ,
वोट मानते आता-
वह जुआरी,
नेता भी अब 
हुए मदारी । 
वोट मांगता -
जैसे भिखारी,
जीत जाने पर -
उसी जनता पर-
गांठे सवारी ।
sahi kaha shri laxman prasaad ji

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