For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देश में चल रही रेस 
जो जीता,नायक उसका-
बना नरेश,
जो हारा झटके से 
उसको लगती भारी ठेस ।
नेताओ ने बदला भेष, 
शेर की खाल में-
देखो गीदड़ की चेस ।
हावी हो रहे हैवान,
बढ़ते जा रहे शैतान ; 
जनता सब है हैरान,
नहीं रहे अब कद्रदान ।
इसको कहते -
जिसकी लाठी -
इसकी भैस,
बाकि सबको-
पहुंचे भारी ठेस ।
 
बढ़ता जाता -
प्रदूषित जहरी धुंआ,
घटता जाता पानी-
सूखे सब कुआं ।
बढ़ता जाये चहुँ और-
मटका खेल औ जुआ,
वोट मानते आता-
वह जुआरी,
नेता भी अब 
हुए मदारी । 
वोट मांगता -
जैसे भिखारी,
जीत जाने पर -
उसी जनता पर-
गांठे सवारी । 
नहीं रुके अब-
यह पल्लम पेल,
नेता खेले-
सब, ठल्लम ठेल ।
 
देश में चल रही -
यह कैसी अंधी रेस,
सहता हरदम सारा देश,
 
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर  

 

Views: 747

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 26, 2012 at 9:50am

मेरा प्रयास सार्थक हुआ, हार्दिक आभार आपका भाई श्री अशोक रक्ताले जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 25, 2012 at 7:52pm

देश में चल रही -

यह कैसी अंधी रेस,
सहता हरदम सारा देश,
सुन्दर देश के प्रति उद्गारों को व्यक्त करती रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय लड़ीवाला जी. सादर.
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 25, 2012 at 5:06pm

भाई श्री प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी, आपने अपने विस्वविद्यालय का मान कर मान बढाया, आपका हार्दिक आभार 

 

 
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 25, 2012 at 4:27pm

आदरणीय लड़ीवाला जी, सादर 

अच्छा आप भी हमारे विश्व विद्यालय से हैं. स्वागत है. 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 24, 2012 at 10:13pm

हार्दिक आभार आपका आदरणीय गणेशजी बागी जी, फेस बुक वाली आदत से हटकर  इस मंच पर आप विद्वजनो के सहयोग से तुकबंदी से आगे बढ़कर काव्य और शिल्प रचना की ओर प्रयास करूँगा । अभी हाल ही दोहे "बदल गयी तरकीब" का अवलोकन कृपया मार्ग दर्शन कर अनुग्रहित करे ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 24, 2012 at 10:06pm

रचना सराहने के लिए हार्दिक आभार आपका आदरणीया राजेश कुमारी जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 24, 2012 at 9:01pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, कथ्य आपके पास हमेशा रहता है, बधाई | आपसे तुकबंदी से आगे की चाहत रहती है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 24, 2012 at 6:56pm

समसामयिक रचना बहुत बहुत बधाई लक्ष्मण जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 24, 2012 at 11:48am

धन्यवाद आपका श्री योगी सारस्वत जी 

Comment by Yogi Saraswat on November 24, 2012 at 11:16am
बढ़ता जाता -
प्रदूषित जहरी धुंआ,
घटता जाता पानी-
सूखे सब कुआं ।
बढ़ता जाये चहुँ और-
मटका खेल औ जुआ,
वोट मानते आता-
वह जुआरी,
नेता भी अब 
हुए मदारी । 
वोट मांगता -
जैसे भिखारी,
जीत जाने पर -
उसी जनता पर-
गांठे सवारी ।
sahi kaha shri laxman prasaad ji

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
38 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service