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काश की इस दश्त में ऐसा रिवाज़ हो !

ग़ालिब-ओ- मीर हो या फैज़-ओ-फ़राज़ हो 
हर जगह शायरी का तख़्त-ओ-ताज हो 

जब दवा हो जाए नाकाम दोस्तों 
तब ग़ज़ल से ही गम का इलाज़ हो 


हो कलम हाथों में और मिटे खंजर 
काश की इस दश्त में ऐसा रिवाज़ हो !

आज लम्हों को जियो दिलनवाज़ी से 
क्या पता कल वक़्त का कैसा मिज़ाज हो 

अब कोई तर्क-ए-वफ़ा, न करें साहब 
न कोई भी पर्दा हो ,न कोई राज़ हो 

ये आरज़ू थी कि जो कब से नहीं आया 
वो मुखातिब मेरे महफ़िल में आज हो 

वो कहाँ मांगे है सुर साज पूरी ज़िन्दगी 
लेकिन उसके लिए, भी कभी आवाज़ हो 

ए खुदा ,मेरे खुदा ! अब मांगता हूँ ये दुआ 
कि ज़माने से अलग नील का अंदाज़ हो

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Comment

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Comment by Nilansh on November 26, 2012 at 9:07am
आदरणीय प्रदीप जी आपके प्रोत्साहन का बहुत आभारी हूँ
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 25, 2012 at 4:21pm

हो कलम हाथों में और मिटे खंजर 
काश की इस दश्त में ऐसा रिवाज़ हो !

aamin 

badhai 

Comment by Nilansh on November 25, 2012 at 10:48am

बहुत   आभार   आपके प्रोत्साहन का आदरणीय गणेश  जी 

 कोशिश करता रहूँगा ,धन्यवाद 

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 24, 2012 at 9:04pm

अच्छी ग़ज़ल कही है नीलांश जी, सभी शेर बढ़िया लगें , कलम औ खंजर वाला शेर बहुत ही बढ़िया लगा , बधाई स्वीकार करें |

Comment by Nilansh on November 24, 2012 at 6:12pm

आदरणीय  लक्ष्मण प्रसाद  जी 

,योगी जी आपके प्रोत्साहन का बहुत आभार  
 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 24, 2012 at 11:46am

जब दवा हो जाए नाकाम दोस्तों 
तब ग़ज़ल से ही गम का इलाज़ हो -----बहुत खूब 

हो कलम हाथों में और मिटे खंजर 
काश की इस दश्त में ऐसा रिवाज़ हो !- उम्दा 
उम्दा लिखी गजल नीलांश बधाई 
काश लिखने का ऐसा ही अंदाज हो - लक्ष्मण लडीवाला 
Comment by Yogi Saraswat on November 24, 2012 at 11:11am

हो कलम हाथों में और मिटे खंजर 
काश की इस दश्त में ऐसा रिवाज़ हो !

आज लम्हों को जियो दिलनवाज़ी से 
क्या पता कल वक़्त का कैसा मिज़ाज हो

बहुत खूब , सुन्दर अल्फ़ाज़ , क्या बात है

Comment by Nilansh on November 23, 2012 at 7:36pm

आपका  बहुत  आभार शिखा  जी 

बहुत धन्यवाद राजेश भाई 
Comment by राजेश 'मृदु' on November 23, 2012 at 5:33pm

 आपका अंदाज बहुत भाया  दुआ है आपका अंदाज़ शानदार हो जानदार हो

Comment by shalini kaushik on November 23, 2012 at 2:54pm

जब दवा हो जाए नाकाम दोस्तों
तब ग़ज़ल से ही गम का इलाज़ हो
bahut  khoob  neelansh  ji  .

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