आखिरकार कसाब मारा गया! एक लम्बा चला आ रहा विरोध और इंतज़ार ख़त्म हुआ! इस मृत्यु से उन सभी शहीदों जिन्होंने कि देशरक्षा के लिए अपने प्राण निस्वार्थ अर्पण कर दिए के परिजनों को मानसिक शांति तो मिली होगी किन्तु उन्होंने जो खोया उसकी भरपाई नहीं हो सकती|
कसाब को मारना सिर्फ एक कदम था निष्क्रियता से उबरने के लिए, हालांकि ये बहुत जरुरी भी था| मगर सवाल ये उठता है कि क्या कसाब को मार देना ही उन शहीदों के लिए श्रृद्धांजलि होगी? क्या कसाब ही अंतिम समस्या थी? शायद नहीं! कसाब उस समस्या का सौंवा हिस्सा…
Added by Pushyamitra Upadhyay on November 26, 2012 at 4:49pm — 1 Comment
तबादला
तबादला कोई खौफ नहीं,
नियमित घटना है,
रहो सदा तैयार इसके लिए,
यह नौकरी का हिस्सा है ।
कभी पसंद का,तो कभी मुश्किल का होता है,
कभी सुख तो कभी दुख देता है,
परिवर्तन संसार का नियम है यारो,
तबादले को खुशी से अपनालों यारो ।
बेमौसम तबादले तकलीफ़ देते हैं,
पत्नी…
ContinueAdded by akhilesh mishra on November 26, 2012 at 3:00pm — 3 Comments
नक्कारों में
गूंज रही फिर
तूती की आवाज
नहीं जागना
आज पहरूए
खुल जाएगा राज
लाचार कदम
बेबस जनता के
होते ही
कितने हाथ
आधे को
जूठी पत्तल है
आधे को
नहीं भात
अकदम सकदम
जरठ मेठ है
और भीरू
युवराज
भव्य राजपथ
हींस रहे हैं
सौ-सौ गर्धवराज
आओ खेलें
सत्ता-सत्ता
जी भर खेलें
फाग
झूम-झूम कर
आज पढ़ेंगें
सारी गीता
नाग
जाओ
इस नमकीन शहर से
तूती अपने…
Added by राजेश 'मृदु' on November 26, 2012 at 12:30pm — 2 Comments
देखा है
क्रूर वक़्त को,
पैने पंजों से नोचते
कोमल फूलों की मासूमियत
और बिलखते बिलखते
फूलों का बनते जाना पत्थर,
देखा है
पत्थर को गुपचुप रोते
फिर कोमलता पाने को
फूल सा खिल जाने को
मुस्काने को, खिलखिलाने को,
देखा है
अटूट पत्थर का
फूल बन जाना
फिर कोमलता पाना
महकना, मुस्काना, इतराना,
देखा है
सब कुछ बदलते
आकाश से पाताल तक
फिर भी मैं वही हूँ…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on November 26, 2012 at 9:38am — 10 Comments
कर्म के ही हल सदा रखती है कन्धों पे नियति
Added by ajay sharma on November 26, 2012 at 12:00am — 3 Comments
छुपा के होठों से गम को अपने
लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम |
बना लो गीतों को मेय का प्याला
छलकती बूंदों ही को कहो तुम |
ये गम की तड़पन से लिपट लो,
हवा दो आग को जितनी भी तुम |
सुख को हौले से फिर भी छू लो ,
लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम |
मंजिल पे जख्मों को तो न देखो,
मंजिल को छू लो नयनों से अपने |
बसा के आँखों में कल के सपने,
लरज़ते अश्कों को रोक लो तुम |
आसान नहीं खुद को पहचान…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:17pm — 6 Comments
तेरे नयनों में भर आये नीर तो, लहू मैं बहा दूं माँ,
न्योच्छार तुझपे जीवन करूँ, क्या जिस्म क्या है जाँ |
तू धीर गंभीर हिमाला को
मस्तक पे धारण करे |
तू चंचल गंगा जमुना का
प्रतिक्षण वरण करे |
विविध भी एक हैं , देख ले चाहे जहां |
जब उठा के लगा दें
हम मस्तक पे धूल |
बसंत है चारों तरफ
खिले मुस्कान के फूल |
नफरत भी बन जाती है, प्रेम का समाँ |
तेरे बेटों की ओ माँ
बस यही है आरजू…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:16pm — 5 Comments
हर दुःख मुझे देता है प्रेरणा
संघर्ष को और बढाने की |
हर हार मुझे देती है आशा
जय को करीब लाने की |
बिखर जाये जब मन मेरा
मैं उसके मोती चुन लेता हूँ |
निराशा के हर अंगारे को
मैं अमृत समझ के सहता हूँ |
ये निराशा मेरे प्रेम की भाषा
जल्दी ही बन जाने की |
हर दुःख मुझे देता है प्रेरणा.....
पतझर में जो झर गये पत्ते
आने पे सावन खिल जायेंगे |
मनुष्य यदि प्रयास करे तो
बिछड़े क्षण…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:14pm — 4 Comments
इस ज़िंदगी के किस पल में
जाने कब क्या हो जाये |
मिल कर सारे जहाँ की ख़ुशी,
ज़िंदगी ही खो जाये |
खुशियों के दर्पण के पीछे,
हम दीवाने हो जाते हैं |
दीवानगी में ये ना सोचे,
अक्स ही हमें सुहाते हैं |
सुख के हर इक अक्षर को, दुःख जाने कब धो जाये |
सुख तो इक आज़ाद पंछी,
पिंजरे में न रह पायेगा |
दिल का सूना पिंजरा भरने,
दुःख ही फिर से आ जाएगा |
जाने कब गम का आंसू, दामन को भिगो जाये…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on November 25, 2012 at 11:00pm — 6 Comments
हमेशा हमेशा के लिए वो चली गई है दूर मुझसे
जाते जाते बोली मुझे मोहब्बत नहीं है तुझसे
लेकिन फिर भी अश्क थे उसकी नजरों में
वह कह तो गई नहीं है मोहब्बत मुझसे
आज भी सोचता हूँ मैं उसके कहे उस बात को
पागल…
Added by Neelkamal Vaishnaw on November 25, 2012 at 8:00pm — No Comments
देव उठे अरु लग्न हुए, सखि कार्तिक पावन मास यहाँ,
मत्स्य बने अवतार लिये,प्रभु कार्तिक पूनम सांझ जहाँ,
पद्म पुराण बताय लिखें, महिना इसको हि पवित्र सदा,
मोक्ष मनुष्य प्रदाय करे,सखि कार्तिक स्नान व दान सदा/…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on November 25, 2012 at 7:45pm — 3 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 25, 2012 at 5:57pm — 6 Comments
बात न ये दिल्लगी की ,न खलिश की है ,
जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .
न कुछ लेकर आये हम ,न कुछ लेकर जायेंगें ,
फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया की है .…
Added by shalini kaushik on November 25, 2012 at 3:57pm — 8 Comments
एक पुरानी ग़ज़ल....
शायद २००९ के अंत में या २०१० की शुरुआत में कही थी मगर ३ साल से मंज़रे आम पर आने से रह गयी...
इसको मित्रों से साझा न करने का कारण मैं खुद नहीं जान सका खैर ...
पेश -ए- खिदमत है गौर फरमाएं ............
अब हो रहे हैं देश में बदलाव व्यापक देखिये
शीशे के घर में लग रहे लोहे के फाटक देखिये…
Added by वीनस केसरी on November 25, 2012 at 2:59pm — 31 Comments
जल प्रपात
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 25, 2012 at 2:36pm — 10 Comments
भारत के हम शेर किये नख के बल रक्षित कानन को।
छोड़त हैं कभि नाहिं उसे चढ़ आवहिं आँख दिखावन को।
भागत हैं रिपु पीठ दिखा पहिले निजप्राण बचावन को।
घूमत हैं फिर माँगन खातिर कालिख माथ लगावन को॥
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 25, 2012 at 10:20am — 13 Comments
'स्नेहा....स्नेहा ....' भैय्या की कड़क आवाज़ सुन स्नेहा रसोई से सीधे उनके कमरे में पहुंची .स्नेहा से चार साल बड़े आदित्य की आँखें छत पर घूमते पंखें पर थी और हाथ में एक चिट्ठी थी .स्नेहा के वहां पहुँचते ही आदित्य ने घूरते हुए कहा -''ये क्या है ?' स्नेहा समझ गयी मयंक की चिट्ठी भैय्या के हाथ लग गयी है .स्नेहा ज़मीन की ओर देखते हुए बोली -'भैय्या मयंक बहुत अच्छा ....'' वाक्य पूरा कर भी न पायी थी कि आदित्य ने जोरदार तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया और स्नेहा चीख पड़ी ''…
ContinueAdded by shikha kaushik on November 24, 2012 at 10:30pm — 7 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on November 24, 2012 at 10:10pm — 2 Comments
छोटी छोटी खुशी कहीं गम ना दे जाये ।
पटाखों के ढेर में कोई बम ना दे जाये ।
कैसे यकीन करें जब यकीन नहीं होता,
झोली में रकम कभी कम ना दे जाये ।
कड़कती धूप में छाँव प्यारा लगता है ,
दरखत की शाख कहीं धम ना दे जाये ।
नम आखों देखते हैं जलता आशियाना,
दूसरों की आह बेबस रहम ना दे जाये ।
गिरते गिरते बचते ठोकर लगने के बाद ,
वर्मा संभलते कहीं निकला दम ना दे जाये ।
.
श्याम नारायण वर्मा
Added by Shyam Narain Verma on November 24, 2012 at 12:30pm — 3 Comments
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