तेरे नयनों में भर आये नीर तो, लहू मैं बहा दूं माँ,
न्योच्छार तुझपे जीवन करूँ, क्या जिस्म क्या है जाँ |
तू धीर गंभीर हिमाला को
मस्तक पे धारण करे |
तू चंचल गंगा जमुना का
प्रतिक्षण वरण करे |
विविध भी एक हैं , देख ले चाहे जहां |
जब उठा के लगा दें
हम मस्तक पे धूल |
बसंत है चारों तरफ
खिले मुस्कान के फूल |
नफरत भी बन जाती है, प्रेम का समाँ |
तेरे बेटों की ओ माँ
बस यही है आरजू |
माटी को महकाने की
करें हर पल जुस्तजू |
प्रेम की बरसात करें, अगर नफ़रत का उठे धुंआ |
Comment
बहुत प्रेरक सार्थक प्रस्तुति .आभार
आदरणीय राजेश कुमारी जी, आपकी सराहना के लिए हार्दिक आभार |
भारत माँ के प्रति सुन्दर भाव समर्पित करती हुई प्रस्तुति बहुत अच्छी
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, आपके आशीर्वचनो के लिए बहुत धन्यवाद| ऐसे आशीर्वादों के सहारे ही चल रहा हूँ |
सादर,
चंद्रेश
भारत माँ के प्रति सुन्दर भाव अभियक्त किया है पसंद आये सन्देश देती रचना बधाई श्री चंद्रेश कुमार छात्लानी जी
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