ग़ज़ल ( 221 2121 1221 212 )
महसूस होता क्या उसे दर्द-ए-जिगर नहीं
या दर्द मेरा कम है कि जो पुर-असर नहीं
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महलों में रहने वाले ही क्या सिर्फ़ हैं बशर
फुटपाथ पर जो सो रहे वो क्या बशर नहीं
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साक़ी सुबू उड़ेल दे है तिश्नगी बहुत
ये प्यास दूर कर सके पैमाना-भर नहीं
**
इंसान सब्र रख ज़रा ग़म की भले है शब
किस रात की बता हुई अब तक सहर नहीं
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या रब ग़रीब का हुआ…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 9, 2020 at 11:30pm — 5 Comments
सम्मोहन
सम्मोहन !
जानता था मन, शायद न लौटेंगे हम
वह प्रथम-मिलन की वेला ही होगी
शायद हमारा अंतिम मिलन
अंतिम मुग्ध आलिंगन
उस परस्पर-गुँथन में थी लहराती
चिन्तनशील यह उलझन गहरी
जी में फिर भी था अतुल उत्साह
कि रहेंगे जहाँ भी, खुले रहेंगे हमारे
सुन्दरतम मन-मंदिर के वातायन
खुले रहेंगे पूरम्पूर परस्पर प्राणों के द्वार
कि तड़पती भागती दिशाओं के पार भी
अजाने…
ContinueAdded by vijay nikore on March 8, 2020 at 12:30am — 6 Comments
सौन्दर्य-अनुभूति
नई जगह नई हवा नया आकाश
न जाने कितने बँधनों को तोड़
अनेक बाहरी दबावों को ठेल
सैकड़ों मीलों की दूरी को तय कर
मुझसे मिलने तुम्हारा चले आना
मानसिक प्रष्ठभूमि में होगी ज़रूर
पावन स्नेह के प्रति तुम्हारी साधना
और इस प्रष्ठभूमि में तुमसे मिलना
था मेरे लिए भी उस स्वर्णिम क्षण
सौन्दर्य का आकर्षण
हमारा वह प्रथम मिलन
सुखद सरल भाव-विनिमय
खुल गए थे…
ContinueAdded by vijay nikore on March 7, 2020 at 5:46am — 2 Comments
होली के दोहे :
नटखट नैनों ने किया, कुछ ऐसा हुड़दंग।
नार नशा हावी हुआ, फीकी लगती भंग।।१
साजन लेकर हाथ में, आये आज गुलाल।
बाहुबंध में शर्म से, लाल हो गए गाल।। २
अधरों पर है खेलती, एक मधुर मुस्कान।
तन पर रंगों ने रची, रिश्तों की पहचान।। ३
होली के त्योहार पर ,इतना रखना ध्यान।
नारी का अक्षत रहे ,रंगों में सम्मान।।४
गौर वर्ण पर रंग ने, ऐसा किया धमाल।
नैनों नें की मसखरी, गाल हो गए लाल।।…
Added by Sushil Sarna on March 6, 2020 at 5:08pm — 4 Comments
तीन क्षणिकाएँ ...
एक: पन्ने
कुछ पन्ने
अलग करने योग्य
जुड़ने चाहिए
बच्चों की कापियों में
ताकि ...
वो खेल सकें
राजा-मंत्री, चोर-सिपाही
उड़ा सकें
हवाई जहाज
चला सकें
कागज की नाव
बिना डर,
बगैर किसी
असुविधा के ।
***
दो : कोना
बचाकर रखता हूँ
एक छोटा-सा कोना
अपने दिल में ...
जब होता…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 6, 2020 at 8:39am — 4 Comments
२२१/२१२२/२२१/२१२२
*
फूलों की क्या जरूरत उपवन में आदमी को
भाने लगे हैं काँटे जीवन में आदमी को।१।
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क्या क्या मिला हो चाहे मन्थन में आदमी को
विष की तलब रही पर जीवन में आदमी को।२।
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आजाद जब है रहता उत्पात करता बेढब
लगता है खूब अच्छा बन्धन में आदमी को।३।
**
आता बुढ़ापा जब है रूहों की करता चिन्ता
तन की ही भूख केवल यौवन में आदमी को।४।
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कितना हरेगा विष ये चाहे पता नहीं पर
रक्खो भुजंग जैसा चन्दन में आदमी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2020 at 4:21pm — 2 Comments
उफ्फ !! ये सब्जी वाले भी न, बड़ा हल्ला करते हैं । साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था के राष्ट्रीय सचिव खान साहब ने संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री गुप्ता से कहा ।
"वो सब छोड़िए खान साहब, ये बताइये कि कितने कवियों और कवयित्रियों की अंतिम सूची बनी जिन्हें सम्मानित करने का प्रस्ताव है ?"
"जी गुप्ता साहब, आपके निदेशानुसार 25 कवियों और 125 कवयित्रियों की सूची तैयार कर ली गयी है, किंतु एक बात समझ नही आयी कि इनमें से अधिकतर तो कोई स्तरीय साहित्यकार भी नही हैं, फिर क्यों आपने उन्हें साहित्य और…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 5, 2020 at 9:30am — 14 Comments
1222×4
किसी की याद में ज़ख्मों को दिल मे पालते रहना,
तबाही का ही रस्ता है यूँ शोलों पर खड़े रहना।
न जाने कौन से पल में कलम गिर जाए हाथों से,
मगर तुम आखिरी पल तक ग़ज़ल के सामने रहना।
जहाँ पर शाम ढलती है वहाँ पर देखकर सोचा,
मेरी यादों में रहकर तुम यूँ ही मेरे बने रहना।
वो आएं या न आएं ये तो उनकी मर्जी है लेकिन,
मुहब्बत की है तो बस रास्ते को देखते रहना।
किसी सूरत भी मेरा दिल बहल सकता नहीं फिर…
ContinueAdded by मनोज अहसास on March 4, 2020 at 11:00pm — 1 Comment
ज़बान :
बड़ी अजीब है ये दुनिया
जाने कितने ताले लगाए फिरती है
अपनी ज़बान पर
खूनी मंज़र चुपचाप सह जाती है
हकीकत में किसी के पास
वो ज़बान ही नहीं
जो सच को बयाँ कर सके
इसीलिये अक्सर लोग
रूहानी आवाज़ को
अपने अंदर ही दफ़्न कर लेते हैं
घोंट देते हैं अहसासों का गला
और छटपटाने देते हैं
वेदना की व्याकुलता को
किसी परकटे पंछी की तरह
अंदर ही अंदर
रूहानी परतों के…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 4, 2020 at 7:42pm — 2 Comments
जो दुनिया से तन्हा लड़कर प्यार बचाया करते हैं
वो ही सच्चे अर्थों में सन्सार बचाया करते हैं।१।
**
उन लोगों से ही तो कायम हर शय की ये रंगत है
जो पत्थर दिल दुनिया में जलधार बचाया करते हैं।२।
**
तुम तो अपने सुख की खातिर खून को पानी करते हो
हम राख की ढेरी में देखो अंगार बचाया करते हैं।३।
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जो कहते हैं हम तो डूबे प्यार के रंगो में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 4, 2020 at 7:30am — 5 Comments
समूची धरा बिन ये अंबर अधूरा है
ये जो है लड़की
हैं उसकी जो आँखे
हैं उनमें जो सपने
जागे से सपने
भागे से सपने…
Added by amita tiwari on March 4, 2020 at 1:07am — 2 Comments
अतुकांत कविता : माँद
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क्या आपने कभी देखी है ?
सियार की माँद !
मैं बताता हूँ
क्या होती है माँद !
जमीन के अंदर
सियार बनाता है
सुरक्षित आशियाना
जिसे कहते हैं माँद
माँद से जुड़े होते है
छोटे-लंबे
कई सारे रास्ते
ताकि
जब कोई खतरा हो
तो उसका कुनबा
निकल सके सुरक्षित...
देश की न्याय प्रणाली भी है
उसी माँद की मानिंद
एक रास्ता बंद होता है
तो कई…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 3, 2020 at 7:59am — 4 Comments
झोल खाई हुई खुशी
तारों भरी रात, फैल रही चाँदनी
इठलाता पवन, मतवाला पवन
तरू-तरु के पात-पात पर
उमढ़-उमढ़ रहा उल्लास
मेरा मन क्यूँ उन्मन
क्यूँ इतना उदास…
ContinueAdded by vijay nikore on March 2, 2020 at 4:30am — 4 Comments
अतुकांत कविता : आदमखोर
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नुकीले दाँत
लंबे-लंबे नाखून
उभरी हुई बड़ी-बड़ी आँखें
चार पैर
लंबी-सी जीभ
बेतरतीब बाल
भयानक चेहरा
बेडौल शरीर
डरावनी दहाड़ ?
नहीं-नहीं ...
वो ऐसा बिलकुल नहीं है
उसके पास हैं
मोतियों जैसे दाँत
तराशे हुए नाखून
खूबसूरत आँखें
दो पैर, दो हाथ
सामान्य-सी जीभ
सलोना चेहरा
सजे-सँवरे बाल
आकर्षक शरीर
मीठे बोल
किंतु...
वो…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2020 at 11:18pm — 2 Comments
Added by मनोज अहसास on March 1, 2020 at 10:45pm — 4 Comments
बह्र हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
सियासत में शरीफ़ इन्साँ कोई हो ही नहीं सकता
सियासतदान सा शैताँ कोई हो ही नहीं सकता
जो नफ़रत की दुकानों में है शफ़क़त ढूँढता फिरता
उस इन्साँ से बड़ा नादाँ कोई हो ही नहीं सकता
निकाला जा रहा है जो जनाज़ा ये सदाक़त का
तबाही का सिवा सामाँ कोई हो ही नहीं सकता
बिरादर को बिरादर से रफ़ाक़त अब नहीं बाक़ी
ये नुक़साँ से बड़ा नुक़साँ कोई हो ही नहीं…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on February 29, 2020 at 10:30pm — 6 Comments
किसी को कुछ नहीं होता
तोता पंखी किरणों में
घिर कर
गिर कर
फिर से उठ कर
जो दिवाकर से दृष्ष्टि मिलाई
तो पलक को स्थिती समझ नहीं आयी
ऐसा ही होता है प्राय
मन ही खोता है प्राय
बाकी किसी को कुछ नहीं होता
किसी को भी
प्रचंड की आँख में झांकना
कोई दृष्टता है क्या
केवल मन उठता है
प्रश्न प्रश्न उठाता है
लावे की लावे से
मुलाकात…
Added by amita tiwari on February 29, 2020 at 1:30am — 2 Comments
कब कहता हूँ आम आदमी मुझको अपने पैसे दे
हो सकता है तुझ से कुछ तो क़ुर्बानी में रिश्ते दे।१।
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दिल्ली जलती है जलने दे मुझे सियासत करने दे
हर नेता का ये कहना है कुछ तो कुर्सी फलने दे।२।
**
ये लाशों के ढेर हमेशा सीढ़ी बन कर उभरे हैं
इनको मत रो इन पर मुझको पद की खातिर चढ़ने दे।३।
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खूब सुरक्षा मुझे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 28, 2020 at 8:30am — 13 Comments
मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
2 2 1 / 2 1 2 1 / 1 2 2 1 / 2 1 2
ये दिल इबादतों पे तो माइल नहीं हुआ
मुनकिर न था मगर कभी क़ाइल नहीं हुआ
इसको बचा बचा के यूँ कब तक रखेंगे आप
वो दिल ही क्या जो इश्क़ में घाइल नहीं हुआ
ग़ैरत थी कुछ अना थी किया ज़ब्त उम्र भर
मैं तिश्नगी में जाम का साइल नहीं हुआ
दर्जा अदब का ऊँचा है मज़हब से जान लो
शाइर कभी भी वज्ह-ए-मसाइल नहीं हुआ
क्या क्या…
ContinueAdded by रवि भसीन 'शाहिद' on February 27, 2020 at 11:12pm — 6 Comments
प्रथम दृश्य : शांति
===========
माँ ने लगाया
चांटा...
मैं सह गयी,
पापा ने लगाया
थप्पड़..
मैं सह गयी,
भाई ने मारा
घूंसा..
मैं सह गयी,
घर से बाहर छेड़ते थे
आवारा लड़के
मैं चुप रही,
पति पीटता रहा
दारू पीकर
मैं चुप रही,
सास ससुर
अपने बेटे की
करते रहे तरफ़दारी
उसकी गलतियों पर भी
मैं चुप रही,
मैं सदैव चुप रही
ताकि बनी रहे
घर मे…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 26, 2020 at 10:57pm — 3 Comments
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