For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

होली के रंगों से फिर क्यों - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२


जो दुनिया से तन्हा लड़कर प्यार बचाया करते हैं
वो ही  सच्चे  अर्थों  में   सन्सार  बचाया  करते हैं।१।
**
उन लोगों से ही तो  कायम  हर शय की ये रंगत है
जो पत्थर दिल दुनिया में जलधार बचाया करते हैं।२।
**
तुम तो अपने सुख की खातिर खून को पानी करते हो
हम राख  की  ढेरी  में  देखो  अंगार  बचाया  करते हैं।३।
**
जो कहते हैं हम तो डूबे प्यार के रंगो में जीवनभर
होली के रंगों से फिर क्यों रुख़शार बचाया करते हैं।४।
**
दिल को तजकर जो चहरे की खातिरदारी ठान रहे
केेेवल वो तो इस तन का व्यापार बचाया  करते हैं।५।
**
नन्हीं कलियाँ हरदिन यूँ ही अब तो मसली जायेंगी
आज के माली फूलों  से बढ़ खार बचाया करते हैं।६।
**
वो भी दीमक के वंशज  हैं  हमने  इतना जाना बस
आधारों से  जो  बढ़-चढ़  आभार  बचाया करते हैं।७।
**
अधरों पर जिनके रहती है हद से बढ़कर जन सेवा
वो जनता के हित  से  बढ़  दरवार बचाया करते हैं।८।
**
( १७फरवरी)
मौलिक.अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 542

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 11, 2020 at 7:37pm

आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by Samar kabeer on March 6, 2020 at 12:04pm

//होली के रंगों से फिर क्यों बचाया करते हैं//

इस मिसरे में अभी 'रुख़शार' ही

लिखा है,इसे "रुख़सार'' कर लें,बाक़ी मिसरे ठीक हो गए हैं ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on March 6, 2020 at 10:35am

आदरणीय लक्ष्मण भाई, इस सुंदर रचना पर आपको बधाई, और होली की अग्रिम शुभकामनाएँ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 6, 2020 at 8:37am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन , गजल पर उपस्थिति, सराहना और कमियों की ओर ध्यान दिलाने के लिए आभार । इंगित मिसरों को ठीक कर लिया है देखिएगा ।

Comment by Samar kabeer on March 5, 2020 at 6:20pm
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, बधाई स्वीकार करें ।

'होली के रंगों से फिर क्यों रुखशार बचाया करते हैं'
इस मिसरे में 'रुखशार' को "रुख़सार" कर लें ।

'यारो वो तो केवल तन का व्यापार बचाया करते हैं'
इस मिसरे की बह्र चेक करें ।

'आधारों से जो बढ़-चढ़कर आभार बचाया करते हैं'
इस मिसरे की बह्र चेक करें ।

अधरों पर जिनके रहती है हद से बढ़कर जन सेवा
वो जनता के हित से जादा दरवार बचाया करते हैं'
इस शैर के सानी मिसरे की बह्र चेक करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
16 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
22 hours ago
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
22 hours ago
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
22 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , सहमत - मौन मधुर झंकार  "
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"इस प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई, आदरणीय सुशील  भाईजी|"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service