अतुकांत कविता : आदमखोर
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नुकीले दाँत
लंबे-लंबे नाखून
उभरी हुई बड़ी-बड़ी आँखें
चार पैर
लंबी-सी जीभ
बेतरतीब बाल
भयानक चेहरा
बेडौल शरीर
डरावनी दहाड़ ?
नहीं-नहीं ...
वो ऐसा बिलकुल नहीं है
उसके पास हैं
मोतियों जैसे दाँत
तराशे हुए नाखून
खूबसूरत आँखें
दो पैर, दो हाथ
सामान्य-सी जीभ
सलोना चेहरा
सजे-सँवरे बाल
आकर्षक शरीर
मीठे बोल
किंतु...
वो है
आदमखोर
फूँक देता है
बस्तियाँ...
धर्म के नाम पर
बहाता है रक्त, आदम का,
आदम के भेष में !
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
जनाब गणेश जी 'बाग़ी' साहिब आदाब,बहुत उम्द: अतुकांत कविता लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।
आ. भाई गणेश जी बागी, सादर अभिवादन । समसामयिक और वर्तमान हालातों को बयाँ करती अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
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