For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,988)

26 जनवरी 2024 अमृतकाल का 75वा गणतंत्र

भले देख लो जग सारा, सबसे प्यारा देश हमारा.

कण कण में इसके अपनापन, अपना भारत  सबसे न्यारा.

गंगा यमुना सरस्वती जैसे मिल कर संगम हो जाती.

अनेकताएं विविध यहाँ, एक हो हम दम जो जाती.

प्राचीनतम संस्कृति हमारी, सबको समावेशित कर देती.

अपनी पहचान बनाए रख मा, सबको अपना कर लेती.

सदियों आक्रान्ताओं से जूझे हम, नहीं कभी मिटी हस्ती.

है अमरत्व सनातन का, बनी रही अपनी मस्ती.

कालचक्र परिवर्तन में, राजतन्त्र मिट हुआ लोकतंत्र.

अपने शाश्वत…

Continue

Added by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on January 26, 2024 at 1:00pm — 1 Comment

महाराणा संग्राम सिंह

राजपूत राजाओं को संगठित करता

एक मेवाड़ का अद्भुत शासक था

थर-थर कांपते शत्रु जिससे, वह संग्राम सिंह महाराजा था॥

 

वीरता-उदारता का समावेश था जिसमें

सिसोदिया वंश का गौरव था

विस्तार किया जो साम्राज्य का, हिंद देश का रक्षक था॥

 

सौ लड़ाइयाँ लड़ी थी जिसने

खो आँख-हाथ-पैर को बैठा था

एक छत्र के नीचे लाया राजपूतों को, शक्तिशाली ऐसा उत्तर भारत का राजा था॥

 

सतलुज से लेकर नर्मदा…

Continue

Added by PHOOL SINGH on January 23, 2024 at 2:54pm — No Comments

दोहा त्रयी. . . . सन्तान

दोहा त्रयी. . . सन्तान

सन्तानों के  बन गए  ,अपने-  अपने नीड़ ।
वृद्ध हुए माँ बाप  अब, तन्हा बाँटें पीड़ ।।

अर्थ लोभ हावी हुए, भौतिक सुख विकराल ।
क्षीण दृष्टि माँ बाप की, ढूँढे अपना लाल ।।

सन्तानों की आहटें , देखें अब माँ बाप ।
वृद्ध काल में बन गई, ममता जैसे श्राप ।।

सुशील सरना / 19-1-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on January 19, 2024 at 1:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल - ये जो खंडरों सा मकान है

11212    11212

इसी में तो मेरा जहान है

ये जो खंडरों सा मकान है

यूँ ही बोलने से बचा करें

यूँ कि तुंद-ख़ू ये ज़बान है

नया खून है वो है जोश में

अभी ज़िंदगी में उफान है

न है आसमाँ न है तू ज़मीं

तुझे ख़ुद पे कितना गुमान है

तेरी जाति क्या है बिसात क्या

तेरा ज़िस्म ख़ाक समान है

न क़ुसूर कोई 'तमाम' अब

न बची उमंग न जान है

मौलिक व अप्रकाशित

(आज़ी…

Continue

Added by Aazi Tamaam on January 18, 2024 at 4:30am — 6 Comments

दोहा त्रयी. . . शंका

दोहा त्रयी. . . शंका

शंका व्यर्थ न कीजिए, यह दुख का आधार ।
मन का छीने चैन यह , शूलों का संसार ।।

शंका का संसार में, कोई नहीं निदान ।
इसके चलते हों सदा, रिश्ते लहू लुहान ।।

शंका बैरी चैन की, नफरत का यह द्वार ।
प्यार भरे संसार में, यह भरती  अंगार ।।

सुशील सरना / 17-1-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on January 17, 2024 at 2:59pm — 2 Comments

चाहत

अनिमिष नयनों से

वसुधा को

वह गगन निहारा करता है।

शोख पवन 

छूकर अवनी को

यूँ ही इतराया करता है।

कितना बेबस!

होकर सागर…

Continue

Added by Dharmendra Kumar Yadav on January 17, 2024 at 12:49pm — 1 Comment

चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य

जिसे कहते भारत का गौरव

आज उस सम्राट की गाथा कहता हूँ

स्वर्णभूमि जो सुख-समृद्धि की, महिमा उस अमरावती की गाता हूँ॥

 

विश्व का केंद्र जो विश्व की धुरी थी

जिसे उज्जयिनी नगरी कहता हूँ

कीर्ति सौरभ जिसका चहुँ ओर था फैला, उसे महाकाल से रक्षित पाता हूँ॥

 

स्वर्ण-रजत मोती-माणिक की न कमी जहाँ पर

धन-धान्य से राजकोष को भरा मैं पाता हूँ

सच्चे परितोष थे नगर के जो, उन्हें संज्ञा नवरत्न से सुशोभित पाता…

Continue

Added by PHOOL SINGH on January 15, 2024 at 10:00am — No Comments

ग़ज़ल नूर की -कुछ थे अधूरे काम सो आना पड़ा हमें.

.

कुछ थे अधूरे काम सो आना पड़ा हमें.

फ़ानी बदन में ख़ुद को समाना पड़ा हमें

.

जश्न-ए-जहान था ही नहीं अपने वास्ते

आ ही गए तो जश्न मनाना पड़ा हमें.

.

फिर जब पहेली मौत…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on January 11, 2024 at 11:53am — 6 Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक. . .

कितनी चंचल हो गई, बूंद ओस की  आज ।

संग किरण के घास पर, नाचे बिन  आवाज ।।

मौसम आया पोष का, लगे भयंकर शीत ।

मुख से निकले प्रीत के, कंपित सुर में गीत ।।

लो धरती पर हो गया , शीत धुंध का राज ।

भानु धुंधला सा हुआ, छुपा ताप का ताज।।

हरित पर्ण पर ओस ज्यों , लगती जीवन आस।

बूँद- बूँद में कल्पना, कवि की भरे उजास ।।

शीत भगाने के लिए, जलने लगे अलाव ।

धीमी-धीमी आँच में, चली प्रेम की नाव…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 10, 2024 at 3:29pm — 3 Comments

आँख मिचौली

आ जा खेले आँख मिचौली, तू मेरा मैं तेरी हमजोली 

बंद करूँ मैं आँखों को तू जाकर कहीं छूप जाए 

पर देख मुझे तू सतना ना दूर कहीं छिप जाना ना 

ऐसा न हो तू पुकारे मुझे, मैं दूर कहीं खो जाऊं 

मैं आऊँ मैं आऊँ…

Continue

Added by AMAN SINHA on January 6, 2024 at 11:14pm — 1 Comment

चोर का मित्र जब से बना बादशाह (ग़ज़ल)

212 212 212 212 

--------------------

चोर का मित्र जब से बना बादशाह

चोर को चोर कहना हुआ है गुनाह

वो जो संख्या में कम थे वो मारे गए

कुछ गुनहगार थे शेष थे बेगुनाह

आज मुंशिफ के कातिल ने हँसकर कहा

अब मेरा क्या करेंगे सुबूत-ओ-गवाह

खून में उसके सदियों से व्यापार है 

बेच देगा वतन वो हटी गर निगाह

एक बंदर से उम्मीद है और क्या  

मारता है गुलाटी करो वाह वाह

एक मौका सुनो फिर से दे…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 5, 2024 at 12:46pm — 2 Comments

जाते वर्ष के दोहे

करुण  रुदन  करता  नहीं, कोई  जाता देख

चाहे लिखता वो रहा, हर दिन सुख का लेख।१।

*

कैसे मुख अब फेर  लूँ, मन में लिए सवाल

इस से भी बदतर कहीं, ना हो आगत साल।२।

*

यादें छोड़ तमाम फिर, गया और इक वर्ष

लाभ हानि का लोग क्यों, करते हैं निष्कर्ष।३।

*

स्वागत को हर्षित  हुए, करें  विदा तो हर्ष

क्या बोलूँ अब मैं भला, कैसा था यह वर्ष।४।

*

साथ समय के नित जिसे, कोसा दसियों बार

वही  बिछड़ते  दे   रहा,  नया  साल  उपहार।५।

*

नये …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 10:00pm — No Comments

दिल तो बेचैन उस की बातों से- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122/१२१२/२२

***

दिल की कालिख सँवार आँखों में

कह  रहे  सब  खुमार  आँखों में।१।

*

फिर सुहाता न कोई भी उस को

उग गया जिस के खार आँखों में।२।

*

वार  करती  है  जानलेवा  वो

क्या लिए है  कटार  आँखों में।३।

*

दिल तो बेचैन उस की बातों से

दिख रहा पर  करार  आँखों में।४।

*

सिर्फ दुख से न होती नम लोगो

हर्ष भी  लाता  धार  आँखों में।५।

*

मन की चाहत सुबास सरसों की

खिल गयी  पर …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 7:29pm — 1 Comment

लौटा है कौन देख के जन्नत हरी भरी-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



रहती हो जिसके साथ मुसीबत हरी भरी

कैसे हो उस की  यार  तबीयत हरी भरी।१।

*

वो भाग्यवान तात से जिसको मिले सदा

आशीष  लाड़  डाँट  नसीहत  हरी भरी।२।

*

सबने है आग द्वेष की सुलगा रखी बहुत

रखता है मन में  कौन मुहब्बत हरी भरी।३।

*

बढ़ता न ताप दुनिया का ऐसे कभी नहीं

रखते धरा को लोग जो औसत हरी भरी।४।

*

बाँटें दुखों के बोझ को मिलके सदा यहाँ

दो ईश खूब सब को ही…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 7:22pm — 2 Comments

किसे बताएं

किसे बताए फिक्र किसे है, मेरे रहने की मर जाने की 

किसे पड़ी यहाँ पर मेरी लिखी बात दोहराने की 

मेरे खातिर यहाँ भले क्यूँ अपने आँसू बर्बाद करे 

किसको इतनी मोहब्बत मुझसे जो समय अपना बेकार करे 

सब अपने है बस अपने हैं, अपने बनकर रह जाएंगे …

Continue

Added by AMAN SINHA on December 30, 2023 at 11:01am — No Comments

ग़ज़ल...मैं नहीं हूँ

बहरे रमल मुसद्दस सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122



सिर्फ उसकी याद आयी मैं नहीं हूँ

या'नी मेरे साथ में भी मैं नहीं हूँ



वो जमीं पे चाँद जैसी और उसकी

कू-ब-कू है रौशनाई मैं नहीं हूँ



गीत उसका राग उसके बज़्म उसकी

वो ग़ज़ल में भी समाई मैं नहीं हूँ



वो नहीं तस्वीर मेरी अय मुसव्विर

और जो तुमने बनायी मैं नहीं हूँ



जिस छुअन का हो रहा अहसास तुमको

वो हवा की है रवानी मैं नहीं हूँ

(मौलिक एवं… Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 27, 2023 at 6:40pm — 2 Comments

ठहरा यह जीवन

गहरे तल पर ठहरे तम-सा,

ठहरा यह जीवन।

*

मौन तोड़ती एक न आहट,

घूरे बस निर्जन।

कौन रुका इस सूने पथ पर,

जो होगी खनखन।

घर आँगन दालानों की भी,

छाँव नहीं कोई।

दूर-दूर तक वीराना है,

गाँव नहीं कोई।

चले हवाएँ गला काटतीं,

सर्द बहुत अगहन।

*

कहीं चढ़ाई साँस फुलाए

कहीं ढाल फिसलन।

क़दम-क़दम पर भटकाने को,

ख़ड़ी एक उलझन।

लम्बा रस्ता पार न होता,

कितना चल आये।

चार क़दम पर…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on December 25, 2023 at 10:00pm — 4 Comments

दोहा पंचक. . . . क्रोध

दोहा पंचक. . . क्रोध

जितना संभव हो सके, वश में रखना क्रोध ।

घातक होते हैं बड़े, क्रोध जनित प्रतिरोध ।।

देना अपने क्रोध को, पल भर का विश्राम ।

टल जाएंगे शूल से, क्रोध जनित परिणाम ।।

शमन क्रोध का कीजिए, मिटता बैर समूल ।

प्रेम भाव की जिंदगी, माने यही उसूल ।।

रिश्ते होते खाक जब, जले क्रोध की आग ।

प्रेम विला में गूँजते, फिर नफरत के राग ।।

क्रोध बैर का मूल है, क्रोध घृणा की आग ।

क्रोध अनल के कब मिटे,…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 24, 2023 at 12:49pm — 4 Comments

दोहा सप्तक ..

दोहा - सप्तक...

गाफिल क्यों अंजाम से, तू आखिर नादान ।

तेरे इस अस्तित्व की, मिट्टी है पहचान ।।

धू -धू कर यह जिस्म जला, जले साथ अरमान ।

इच्छाओं की रुक गई, मैं - मैं  भरी उड़ान ।।

ढह जाएंगे सब यहाँ, पत्थर के प्रासाद ।

मलबे होगे दंभ के, रोयेंगे उन्माद ।।

साँसों का चप्पू चले, धड़कन करती नाद ।

चित्रित अधरों पर हुए, अधरों के  अनुवाद ।।

और -और की लालसा, मिटी न मिटे शरीर ।

भौतिक युग का आदमी , रहता सदा फकीर ।।

साथी वो किस काम के ,दें…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 21, 2023 at 12:24pm — No Comments

तिरंगा

हरा-केसरिया, श्वेत रंग का, तिरंगा झड़ा कहलाता है

हरियाली-साहस, सत्य दर्शाता

प्रतीक-एकता, अखंडता का बन जाता है॥

 

राम-कृष्ण-बुध जन्मे जहाँ पर, मन उस पवित्र भूमि को शीश नवाता है

आन-बान-शान भारत देश की

हर भारतीय की जान कहलाता है॥

 

सभी भाषाओं की जन्मधात्री, संस्कृत, जो सबसे पुरानी भाषा है

विभिन्न उत्कृष्ट संस्कार-संस्कृति की पवित्र…

Continue

Added by PHOOL SINGH on December 21, 2023 at 11:51am — No Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आभार आ. संजय जी "
24 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आ. दयाराम जी ,आप ग़ज़ल पर आए और सराहना की तो बहुत अच्छा लगा ... औकात जैसा शब्द इस मंच पर कोई …"
24 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"🙏"
42 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद हौसला अफ़ज़ाई और दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने के लिए…"
52 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आ.सालिक गणवीर साहब,  अच्छी ग़ज़ल कही, आपने ! आदरणीय अमित जी से मैं सहमत हूँ, लेकिन, …"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय निलेश जी, आपने जो राय दी है वो सही है किंतु मैं उनकी रचना का गुण दोष बताने के काबिल नहीं…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"अच्छा सुझाव आदरणीय, दवा उला में और दुआ सानी में  लाने से बात का वज़्न बढ़ गया "
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आ. आजी तमाम,  ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, आदरणीय अमित जी केके सुझाव निश्चित, ही ग़ज़ल के…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय सालिक गणवीर जी आदाब  ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय,  नीलेश शेवगांवकर साहब, खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  जनाब!  "ख़ुद का ख़ुद से…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय निलेश जी, आपकी ग़ज़ल पर टिप्पणी करने की तो मेरी औकात नही है। आपकी ग़ज़ल हमेशा लाजवाब लगती…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, निलेश जी की दाद के बाद मेरी तारीफ का कोई माईने नहीं है। सच…"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service