आ जा खेले आँख मिचौली, तू मेरा मैं तेरी हमजोली
बंद करूँ मैं आँखों को तू जाकर कहीं छूप जाए
पर देख मुझे तू सतना ना दूर कहीं छिप जाना ना
ऐसा न हो तू पुकारे मुझे, मैं दूर कहीं खो जाऊं
मैं आऊँ मैं आऊँ मैं आऊँ
कहाँ है तू पर्दे के पीछे, या जा छुपा पलंग के नीचे
कैसे मैं तुझे ढूंढ निकालूँ जाने कहाँ छुप के बैठा है
गर तू बाहर ना आया सूरत ना अपनी दिखलाया
मैं तुझे मिल पाने में फिर विफल कहीं ना हो जाऊँ
मैं आऊँ मैं आऊँ मैं आऊँ
घर का कोना कोना देखा बाग देखा बगीचा देखा
किधर तू छुप के जा बैठा है थक जाऊँ तुझे खोज ना पाऊँ
ऊपर नीचे आगे पीछे अंदर बाहर द्वार दरबार
जब अपने आँचल में देखा मैं तुझको तब पाऊँ
मैं आऊँ मैं आऊँ मैं आऊँ
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा
Comment
रचना की विषयवस्तु बहुत रोचक है
एक बहुत सुदर बाल रचना बन सकती है यह
बस थोड़ा मात्राओं और तुकांत पर ध्यान दीजिये
सुन्दर प्रयास है .. बहुत बधाई प्रिय अमन भाई
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