जिसने बताया हमको , लिखना हमारा नाम .
जिसने सिखाया हमको , कविता ,ग़ज़ल -कलाम .
समझाया जिसने हमको , दीने -धरम ,ईमान .
जिसने कहा कि एक है ,कह लो रहीम - राम .
भगवान से भी पहले ,करता नमन उन्हीं को .
मानों तो हैं खुदा वो , ना मानों तो हैं आम .…
Added by satish mapatpuri on September 5, 2012 at 3:46am — 18 Comments
शिक्षक और गुरु : कैसी अवधारणा
5 सितंबर यानि ’शिक्षक दिवस’, उद्भट दार्शनिक विद्वान और देश के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्लि राधाकृष्णन का जन्मदिवस. कृतज्ञ देश आपके जन्मदिवस पर आपको भारतीय नींव की सबलता के प्रति आपकी अकथ भूमिका के लिये स्मरण करता है.…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on September 5, 2012 at 12:30am — 24 Comments
रात थकती बुझ रही रोशन दिये की खोज में
जल रहे हैं जाम खाली साकिये की खोज में
लिख दिए किरदार सारे पड़ गये हैं नाम पर
है अधूरी ये कहानी बाकिये की खोज में
हार कर इंसान खुद से आदमीयत खोजता
जिन्दगी बेचैन फिरती हाशिये की खोज में…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 4:00pm — 11 Comments
सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस ' ;
आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ?
आठवे में लिखा जाता सिया का विद्रोह ;
पर त्यागते कैसे श्री राम यश का मोह ?
लिखते…
Added by shikha kaushik on September 4, 2012 at 3:00pm — 15 Comments
मैं तो बस इक गुरु का शिष्य हूँ
बहुत उकसा के पूछा
बताओ कौन हो तुम
क्या हो तुम ???
तुम दिखावटी हो
या सच में फूल हो
नहीं नहीं
शायद तुम खार हो
कितना ग़ज़ब लगता है
तुम्हारा अलग अलग सा दिखना
किसने पैदा किया है तुम्हे
कोई जादूगर
बागवान था क्या ??
गेंदे के फूल से
गुलाब की खुशबू
लाजवाब है ये कारीगरी
खुदाई सी लगती है
पर है हकीकत
चाँद तारा या आफताब
क्या हो तुम
या जर्रा-ए-कायनात…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 1:30pm — 3 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 4, 2012 at 11:30am — 10 Comments
वक़्त भी क्या चीज है यारों
हर ओर हकूमत, इसकी छाई है
कही छाया है मातम की
तो कहीं बजी शहनाई है l
गिरगिट सा है रंग बदलता
हर्षित, भयभीत, भ्रमित कर
परिचय जग को अपना देता
रंक से राजा पल में बनता
वक़्त जिस पर मेहरबान हुआ
क्षणभर भी न टिकता जग में
काल का भयंकर जब वार हुआ
रावण राजा बड़ा निराला
अहं स्वयं के शिकार हुआ
क्षण भर में परलोक सिधारा
दुस्साहस जब वक़्त से
टकराने का था उसने किया
ग्रसित करता पलभर में…
Added by PHOOL SINGH on September 4, 2012 at 10:00am — 8 Comments
ओबीओ में विशाल मेंला लगा था
छंद कवियों का तांता लगा था |
मैंने वहां ;दोहा;नाम से कविता दागी
प्राचार्य ने यह दोहा नहीं कह हटा दी |
मैंने फिर छन्-पकैयां लिख लगा दिए
गुरुवर ने नरम हो कुछ सुझाव दिए |
एक अलबेला कूद पड़े बोंले मानलो
सिष्य से प्राचार्य बना देंगे जानलो |
गुरुवर बोंले ये कर्म योगी का…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 4, 2012 at 5:30am — 14 Comments
स्वर में अमृत घोलो जी
फिर अधरों को खोलो जी |
नहीं खर्च कुछ होने का
मीठा – मीठा बोलो जी |.
देने वाला कैसे दे ?
हाथ मलिन…
Added by अरुण कुमार निगम on September 3, 2012 at 9:30pm — 15 Comments
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 3, 2012 at 9:00pm — 20 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 3, 2012 at 6:30pm — 24 Comments
"जिन्दगी का कोरा सच "
सच
जिन्दगी का
कभी ग़ज़ल बना
कभी नज्म
कभी रुबाइयाँ
लिखते रहे
गुनगुनाते रहे
सुनते रहे
सुनाते रहे
क्या क्या न लिखा
धुप छाँव
राह, मंजिल
पड़ाव
गुल, गुलशन
खार
कभी जिन्दगी
इक भार
दोस्त, यार
फिर दुनिया में
भ्रष्टाचार
हाहाकार
कभी सम्मान
कभी तिरस्कार
कभी लगती रही
ये व्यापार
खुद दुकानदार
कभी नफरत
तो कभी प्यार
बार बार
लेकिन
हर…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 3, 2012 at 4:19pm — 19 Comments
अर्पण करते स्व-जीवन शिक्षा की अलख जगाने में ,
रत रहते प्रतिपल-प्रतिदिन शिक्षा की राह बनाने में .
आओ मिलकर करें स्मरण नमन करें इनको मिलकर ,
जिनका जीवन हुआ सहायक हमको सफल बनाने में…
Added by shalini kaushik on September 3, 2012 at 1:58pm — 5 Comments
मारा गया फ़कीर जो गया वह रोटी लाने,
बहती थी नदिया वेग तेज बहुत था /
मचा हाहाकार कोहराम कोई नहि जाने,
हुआ पानी लहू का वेग तेज बहुत था /
दीप बुझे कई देखो बाती जैसे टूट गई,
यों बही पुरवाई झोंका तेज बहुत था /
सिमट गए मानव मूल्य माता रूठ गई,
पश्चिम की आंधी का झोंका तेज बहुत था /
Added by Ashok Kumar Raktale on September 3, 2012 at 1:30pm — 8 Comments
सब कुछ जग में है, नश्वर
एक ही सबका हैं, ईश्वर
हिन्दू ,मुश्लिम, सिख, ईसाई
अनेक धर्मो में बट गया जग
फिर भी मन में है, भटकन l
सच जीवन का दर्पण है
वेद पुराण में वर्णन है
समाहित कर जग कल्याण को
गीता जग में उपस्थित है
मन में फिर क्यूँ भटकन है l
कभी खिलखिला हँसता जब
ओरो को दुःख देकर
कभी असहाय बन
खुद रोता तड़प तड़प कर
कृत्य अपने स्मरण कर l
रात्रि गुजारता करवटे बदल
कभी…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on September 3, 2012 at 11:13am — 8 Comments
गुरु ऐसा दीजिये प्रभु,चेला बने महान II
गुरु की भी अटकी रहे,चेले में ही जान II
चेले में ही जान,काम ऐसे कर जाए I
खुद का जो हो नाम,मशहूर गुरु हो जाए II
चेला ले गुरु नाम,सदा इश्वर के जैसा I
होवे बेड़ा पार, मिले जीवन गुरु ऐसा II
शिक्षा सदा वशिष्ठ से, पाते हैं श्रीराम I
और है श्रीकृष्ण से,सांदिपनी का नाम II
सांदिपनी का नाम, इश्वर भाग्य विधाता I
चतुर चाणक्य नाम,याद बरबस आ जाता II…
Added by Ashok Kumar Raktale on September 3, 2012 at 8:30am — 10 Comments
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 3, 2012 at 8:07am — 10 Comments
ये कहाँ खो गई इशरतों की ज़मीं;
मेरी मासूम सी ख़ाहिशों की ज़मीं; (१)
फिर कहानी सुनाओ वही मुझको माँ,
चाँद की रौशनी, बादलों की ज़मीं; (२)
वक़्त की मार ने सब भुला ही दिया,
आसमां ख़ाब का, हसरतों की ज़मीं; (३)
जुगनुओं-तितलियों को मैं ढूंढूं कहाँ,
शह्र ही खा गए जंगलों की ज़मीं; (४)
दौड़ती-भागती ज़िंदगी में कभी,
है मुयस्सर कहाँ, फ़ुर्सतों की ज़मीं; (५)
गेंहू-चावल उगाती थी पहले कभी,
बन गई आज ये असलहों…
Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 3, 2012 at 3:00am — 32 Comments
अरे ! कहाँ गई !
अभी तो यहीं थी !
लगता है कहीं गिर ही गई
इस आपाधापी में,
हो सकता है कुचल दी गई होगी
किन्हीं कदमों के तले,
या फिर उड़ा ले गया उसे
झोंका कोई हवा का ;
चाहे चुरा ले गया होगा चोर कोई,
लेकिन चुराएगा कौन !
चीज तो काफी पुरानी थी
फटी-चिटी, धूल-धूसरित,
बहुत संभव है फेंक दिया होगा
किसी ने बेकार समझ के
और ले गया होगा कोई
आउटडेटेड आदमी अपने
स्वभाव के झोपड़े में लगाने के लिए ;
कहीं कहानी लिखनेवाले
तो उठा नहीं ले गये…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 2, 2012 at 7:23pm — 16 Comments
Added by Ashish Srivastava on September 2, 2012 at 7:05pm — 4 Comments
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