For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खूब भटकी यों ग़ज़ल भी काफ़िये की खोज में

रात थकती बुझ रही रोशन दिये की खोज में
जल रहे हैं जाम खाली साकिये की खोज में

लिख दिए किरदार सारे पड़ गये हैं नाम पर
है अधूरी ये कहानी बाकिये की खोज में

हार कर इंसान खुद से आदमीयत खोजता  
जिन्दगी बेचैन फिरती हाशिये की खोज में

क्या रदीफो-कह्न इसकी क्या रवायत बह्र की 
खूब भटकी यों ग़ज़ल भी काफ़िये की खोज में

"दीप" खूँ स्याही बनाकर जिसमे लिक्खा हाले दिल 
चिट्ठियाँ बिखरी पड़ी वो डाकिये की खोज में

संदीप पटेल "दीप" 

Views: 769

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 6, 2012 at 4:37pm

सच कहूँ तो वाकई काफियों की खोज आसान न रही होगी, इस ग़ज़ल को कई बार पढ़ी, अच्छी ग़ज़ल कही है संदीप जी, बधाई हो |

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 6, 2012 at 10:12am

आदरणीया रेखा जी
ग़ज़ल  को सराहने हेतु आपका बहुत बहुत आभार
स्नेह अनुज पर यूँ ही बनाये रखिये

Comment by Rekha Joshi on September 5, 2012 at 8:15pm

उम्दा गजल संदीप जी ,बधाई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 5, 2012 at 11:12am

आदरणीय कुमार गौरव अजीतेन्दु जी सादर प्रणाम
आपको ग़ज़ल पसंद आई और आपकी दाद मिली
इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ
ह्रदय की गहराइयों से आपका शुक्रिया

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 5, 2012 at 11:01am

सुन्दर रचना मित्रवर.......बधाई..........

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 5, 2012 at 11:00am

आदरणीय वीनस जी सादर प्रणाम
आपकी दाद पा कर सच कहूँ दिल आसमान को छू लेता है
और ऐसा लगता है की क्या लिखा है मैंने वाह वाह वाह खुद को वाह कहे बिना रोक नहीं पाता हूँ मैं
लेकिन आपसे मुझे और सहयोग की अभिलाषा है कृपया कर मार्गदर्शन किया कीजिये
हम नौसीखिए आप से सीख सीख के ही इस पायदान में पहुंचे हैं की आपकी तारीफ मिल जाती है
कृपया इस स्नेह को एक गुरु के भांति सीख के साथ और लुटाइए ताकि हम कुछ हाशिल कर सकें

आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 5, 2012 at 10:56am

आदरणीय सौरभ सर जी सादर प्रणाम
सर्वप्रथम तो मैं आज के इस पावन दिवस में आपसे चरणस्पर्श कर आशीर्वाद चाहता हूँ फिर
आपको शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ
आपकी इन अनमोल बेशकीमती प्रतिक्रियाओं के चलते ही मैं अपने लेखन में सुधार कर पाया हूँ
गुरदेव स्नेह यूँ ही बनाये रखिये मुझ पर
आपका बहुत बहुत धन्यवाद और सादर आभार सहित सुधार की परंपरा को आगे बढाते हुए कुछ सुधार किये हैं
शायद आपको सुधार अच्छा लगेगा


रात काली जल रही रोशन दिये की खोज में
जल रहे हैं जाम खाली साकिये की खोज में

लिख दिए किरदार सारे रख दिए हैं नाम भी
पर अधूरी है कहानी बाकिये की खोज में

हार कर इंसान खुद से आदमीयत खोजता  
जिन्दगी बेचैन फिरती हाशिये की खोज में

क्या रदीफो-कह्न इसकी क्या रवायत बह्र की 
खूब भटकी है ग़ज़ल ये काफ़िये की खोज में

"दीप" खूँ स्याही बनाकर जिसमे लिक्खा हाले दिल 
चिट्ठियाँ बिखरी पड़ी वो डाकिये की खोज में

संदीप पटेल "दीप"

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 5, 2012 at 9:30am

आदरणीय भाई विन्ध्येश्वरी जी सादर
आपको ग़ज़ल पसंद आई कहन सार्थक हो गयी है
ये स्नेह इसी तरह बनाये रखिये
आपका तहे दिल से शुक्रिया सहित सादर आभार

Comment by वीनस केसरी on September 5, 2012 at 1:51am

बहुत खूब संदीप जी हमेशा की तरह बेहतरीन कहा है :))))))))
(लाजवाब होने की गुंजाईश है)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 4, 2012 at 7:14pm

संदीपभाई जी, आपकी ग़ज़ल में बह्र का बढिया निर्वहन हुआ है. यों, ग़ज़ल थोड़ी और मशक्कत की मांग करती है. परन्तु, आप जिस शिद्दत से संलग्न हैं आपकी कलम में निखार आता जा रहा है.

मतले का उला संयत किया होता तो और खूब होता.

क्या रदीफ़ो कह्न इसकी.. ..  इस शेर में तकाबुलेरदीफ़ का दोष होगया है.

लेकिन, दिल बल्लियों उछल रहा है आपके मक्ते पर.  वाह-वाह-वाह ! आपकी मेहनत सही कहिये परचम बनी ऊँचे-ऊँचे फहर रही है. क्या ही सुन्दर भाव, क्या ही सुन्दर कहन.. वाह, क्या ही बेहतर शेर !! आपके मक्ते ने मोह लिया, भाईजी. यह आपके कई ग़ज़लों पर भारी है.  बस, हृदय की गहराइयों में सीधा उतर गया. खूब-खूब बधाई स्वीकार करें.

हार्दिक शुभकामनाएँ.. .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"छिपन छिपाई खेलता,सूूरज मेघों संग। गर्मी के इस बार कुछ, नर्म लग रहे रंग।। -- पथिक थका रवि से कहे, मत…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर आ रे, सूरज आजमा, किसमें कितना जोर     मूरख…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी कोशिशों पर तो हम मुग्ध हैं, शिज्जू भाई ! आप नाहक ही छंदों से दूर रहा करते हैं.  किसको…"
9 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहा आधारित एक रचना: प्यास बुझाएँगे सदा सूरज दादा तुम तपो, चाहे जितना घोर, तुम चाहो तो तोड़ दो,…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, सदा की भाँति इस बार भी आपकी रचना गहन भाव और तार्किक कथ्य लिए हुए प्रस्तुत…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रदत्त चित्र को सार्थक दोहावली से आयोजन का शुभारम्भ हुआ है.  तन…"
9 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   पैसा है तो पीजिए, वरना रहो अधीर||...........वाह ! वाह ! लाख टके की बात कह दी है आपने.…"
10 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय शिज्जु शकूर जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर दोहे रचे हैं आपने. सच है यदि धूप न हो…"
10 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"    आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रस्तुत दोहों की सराहना के लिए आपका हृदय…"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय अजय गुप्ता जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार. आपकी…"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  जी ! भाई लक्ष्मण धामी जी आप जो कह रहे हैं मन के मार्फ़त या दिल के मार्फ़त उस बात को मैं समझ…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्रानुसार उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service