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मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी .

 [listen on shikhakaushik06  ]
 

Stamp on Tulsidas

सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस ' ;
आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ?

आठवे में लिखा जाता सिया का विद्रोह ;
पर त्यागते कैसे श्री राम यश का मोह ?

लिखते अगर तुलसी सिया का वनवास ;
घटती राम-महिमा उनको था विश्वास .

अग्नि परीक्षा और शुचिता प्रमाणन ;
पूर्ण कहाँ इनके बिना होती है रामायण ?

आदिकवि सम देते जानकी का साथ ;
अन्याय को अन्याय कहना है नहीं अपराध .

लिखा कहीं जगजननी कहीं अधम नारी ;
मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी .

तुमको दिखाया पथ वो भी थी एक नारी ;
फिर कैसे लिखा तुमने ये ताड़न की अधिकारी !

एक बार तो वैदेही की पीड़ा को देते स्वर ;
विस्मित हूँ क्यों सिल गए तुलसी तेरे अधर !

युगदृष्टा -लोकनायक गर ऐसे रहे मौन ;
शोषित का साथ देने को हो अग्रसर कौन ?

भूतल में क्यूँ समाई सिया करते स्वयं मंथन ;
रच काण्ड आँठवा करते सिया का वंदन .

चूक गए त्रुटि शोधन होगा नहीं कदापि ;
जो सत्य न लिख पाए वो लेखनी हैं पापी .

हम लिखेंगे सिया के विद्रोह की कहानी ;
लेखन में नहीं चल सकेगी पुरुष की मनमानी !!

शिखा कौशिक 'नूतन'

 

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Comment

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Comment by shikha kaushik on October 1, 2012 at 1:28am

पियूष जी-  आपने गहराई से रचना का अवलोकन किया व् अपने मत से परिचित कराने हेतु कई तथ्य प्रस्तुत किये हैं .आभार 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 28, 2012 at 9:31am

क्या बात शिखा जी...इस रचना का भाव-पक्ष इतना प्रबल है, कि शिल्प-पक्ष ढँक गया है! सर्वप्रथम तो इस अत्यंत भावपूर्ण, श्रेष्ठ कृति के लिए बधाई! तदनन्तर, क्योंकि  तुलसीदास एक रामभक्त कवि थे, वो राम पर किसी प्रकार के आक्षेप नही चाहते थे, उनका उद्देश्य राम को पूर्ण-पुरुषोत्तम रूप में प्रतिष्ठित करना था! अब अगर वो सीता-चरित्र का वर्णन करते, तो उनका ये उद्देश्य विफल हो जाता! वाल्मिकी जी ने जो रचना (रामायण) की, वो राम की जीवनी थी,पर तुलसीदास की रचना (श्रीरामचरितमानस) उनके मन का उद्गार थी! इन दोनों में विराट भिन्नता है! और एक बात, कि मानस में और भी बहुतों बातें हैं जिनका समर्थन नही किया सकता! इन चौपाईयों पर गौर करें:

१.पूजन योग्य विप्र गुन हीना! शूद्र न पूजेहु वेद प्रवीना!

२. अधम ते अधम अधम अति नारी

इन  चौपाईयों को देखकर सवाल उठता है कि क्या वाकई में मानस एक कालजयी रचना है?

अंततः आपको इस श्रेष्ठ अभिव्यक्ति के लिए पुनः बधाई!

Comment by shikha kaushik on September 16, 2012 at 6:17am

आप सभी सुधि पाठकों ने मेरी रचना को सराहा व्  अपना  मत  भी  प्रकट किया इस हेतु ह्रदय से आभारी  हूँ .सादर 

Comment by shalini kaushik on September 14, 2012 at 1:31am

बहुत मार्मिक वर्णन किया है शिखा जी आपने .तुलसीदास जी के बारे में जो  आप कह रही है बिलकुल सही है एक नारी अपनी पत्नी की प्रेरणा से साहित्य के सर्वोच्च शिखर पर बैठ वे नारी को ताड़न का अधिकारी कह गए ये पुरुष अहम् ही है.

Comment by MAHIMA SHREE on September 11, 2012 at 12:52pm

चूक गए त्रुटि शोधन होगा नहीं कदापि ;
जो सत्य न लिख पाए वो लेखनी हैं पापी .

हम लिखेंगे सिया के विद्रोह की कहानी ;
लेखन में नहीं चल सकेगी पुरुष की मनमानी !! 

वाह वाह वाह !!! क्या बात है .. शिखा जी आपकी  लेखनी तो जबरदस्त है ... कमाल का लिखा है आपने .. पुरे प्रवाह के साथ और धारदार भी .. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें .. 

Comment by UMASHANKER MISHRA on September 6, 2012 at 8:38pm

आपके विचारों के अनुरूप रचना सार्थकता कह रही है

परन्तु जिसकी लेखनी के चमत्कार के पार मै नहीं जा सकता उसके पक्ष या विपक्ष में तर्क कुतर्क का

सामर्थ्य मुझमे नहीं है कल्पनाएँ क्या कहती है कहानी क्या कहती है हम तो कला के पुजारी है|

Comment by Rash Bihari Ravi on September 6, 2012 at 5:56pm
मैं चुप रहू कुछ न बोलू , यहो होगी अच्छी बात ,
आपने लिखा इतना अच्छा उसके लिए स्वागत ,
दास तुलसी पे दोष ना लगावो आपसे हैं मिन्नत
आपके मत से मैं नहीं हु बहना अभी भी सहमत ,
अगर नारी  पे भाड़ी हरदम होते परुष प्रधान ,
दसरथ कैकई  के बात माने  राम गए बनवास ,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 6, 2012 at 4:42pm

तनिक प्रयास से इस रचना को दोहे के रूप में रूपांतरित किया जा सकता है, विषय विवादास्पद है, राम कथा पर चर्चा आम है, इस रचना पर बधाई |

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 6, 2012 at 12:45pm

नारी पर युगों-युगों से हो रहे अत्याचार और फिर उस पर पर्दा डालने की प्रथा का बहुत यथार्थवादी एवं सशक्त चित्रण किया है आपने शिखा जी! यूँ तो कविता मेरा क्षेत्र नहीं है और न ही मैं इस विषय पर अपनेआप को क्षम मानता हूँ परन्तु आपके विषय ने मेरा ध्यान आकृष्ट कर लिया! एक सार्थक विषय पर लेखन हेतु साधुवाद आपको,

----------------------------------------

साहित्यिक दृष्टि से आपकी रचना श्रेष्ठ है पर मैं जोड़ना चाहूँगा कि अब यह सिद्ध हो चुका है कि केवल 'रामायण' ही प्रामाणिक ग्रन्थ है और 'उत्तर रामायण' कपोल कल्पना मात्र है जो बाद में किसी कट्टर धर्मानुयायी ने द्वेषवश जोड़ दी थी! महाग्रंथ केवल एक की संख्या में पाए गए हैं - उनमें खण्ड, अध्याय आदि भले ही हों किन्तु उनके भाग नहीं होते! वाल्मीकि कृत रामायण के साथ-साथ रामचरित मानस, एवं अन्य रामायण आधारित ग्रंथों में भी केवल राम की राजगद्दी तक की ही कथा है! कृपया इसे अन्यथा न लें यह केवल जानकारी के लिए है! साभार,

Comment by Yogi Saraswat on September 6, 2012 at 10:56am

भूतल में क्यूँ समाई सिया करते स्वयं मंथन ;
रच काण्ड आँठवा करते सिया का वंदन .

चूक गए त्रुटि शोधन होगा नहीं कदापि ;
जो सत्य न लिख पाए वो लेखनी हैं पापी .


 बहुत सटीक सवाल उठाये हैं आपने ! शिखा जी आपकी लेखनी और आपकी सोच को सलाम

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