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किस्मत ने हमको रोका, कहा ! मुसुकुराए क्यूँ हो 
हारे हो तुम तो मुझसे लेकिन हराए क्यूँ हो
इतना तो तुमसे सीखा , कभी यूँ न डगमगाना 
कैसी भी  हो डगर पर , सदा तुम सा मुस्कुराना 
_________________________________________
आगोश में हमारे , आना मगर संभलना 
जुल्फों से खेलें हम भी , बूंदों सा तुम बरसना 
देखो तो देखो ऐसे ,  जैसे धरती निहारे बादल 
बस जाऊं तेरे दिल में , जैसे आँखों के बीच काजल 
_________________________________________
मुझे खुद पता नहीं है , हम कब थे मुस्कुराये 
गम की खुमारी मुझमे , बस खैरात में समाये  
तेरा इन्तजार मुझको , सदियों से खा रहा है 
हर बार तुम गए जब , मेरे जाने के बाद आये 
_________________________________________
मुझे खुद पता नहीं है , तेरी तलाश क्यूँ है
जंगल की आग जैसे , बिखरी पलाश क्यूँ है 
एक अजब सी हलचल , जब जब हिलोरें लेती 
हर बार सोचता मैं , मुझे तुमसे प्यार क्यूँ है 
_________________________________________
गलियां वही हैं ठहरी , जहा हम मिले थे तुमसे 
छिप  जाते थे हमेशा, आहट पे हर किसी से 
तेरे इश्क की गली अब जाने को कह रही है   
न सवाल अब बचे है , न बचा गिला है तुमसे 
 _________________________________________
कभी वो बात ये समझे की  दिलबर वो हमारा था 
मैं थी उसकी ही सजनी और वो साजन भी हमारा था 
समझ जाता अगर मेरे इशारो को मेरा दिलबर 
कभी शिकवा नहीं करता ,न उसको फिर गिला  होता 
 
Ashish Srivastava( Sagar Sandhya )

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Comment by Ashish Srivastava on September 7, 2012 at 9:48pm

Aadreya laxman ji 

badahi ke liye aabhar , aur aapne mera sahas badakar sneh diya , dhanyawaad 

Comment by Ashish Srivastava on September 7, 2012 at 9:48pm

Aadreya ashok ji , 

badahi ke liye aabhart , aur aapne mera sahas badakar sneh diya , dhanyawaad 

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 4, 2012 at 1:06pm
मुझे खुद पता नहीं है , हम कब थे मुस्कुराये 
गम की खुमारी मुझमे , बस खैरात में समाये  
तेरा इन्तजार मुझको , सदियों से खा रहा है 
हर बार तुम गए जब , मेरे जाने के बाद आये 
 बहुत बढ़िया मुक्तक आ. आशीष जी. बधाई स्वीकारें.
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 3, 2012 at 2:25pm

आशीष जी इशारे समझे, न समझे, न उसकी शिकवा न उसको गिला कासी भी परिस्थिति हो सदैव मुस्कराना | बहुत सुन्दर छंद बधाई 

 

 

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