For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"जिन्दगी का कोरा सच

"जिन्दगी का कोरा सच "

सच
जिन्दगी का
कभी ग़ज़ल बना
कभी नज्म
कभी रुबाइयाँ
लिखते रहे
गुनगुनाते रहे
सुनते रहे
सुनाते रहे
क्या क्या न लिखा
धुप छाँव
राह, मंजिल
पड़ाव
गुल, गुलशन
खार
कभी जिन्दगी
इक भार 
दोस्त, यार
फिर दुनिया में
भ्रष्टाचार
हाहाकार
कभी सम्मान
कभी तिरस्कार
कभी लगती रही 
ये व्यापार
खुद दुकानदार
कभी नफरत
तो कभी प्यार
बार बार
लेकिन
हर बार
कलम रुकी
सच में
हाँ सच में
जो कोरा है
हाँ मौत
मौत है
जिन्दगी का कोरा सच
जो कभी न लिख पाया
वो आज भी कोरा है 

संदीप पटेल "दीप"

Views: 762

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 6, 2012 at 11:42am
जिंदगी का कोरा सच समझना तो आसन नहीं, शायद कोई सूफी संत भी बमुश्किल से ही समझ पाया 
हो भाई संदीप कुमार पटेल जी, जो जिंदगी से लड़ते आत्मसात कर सकता है,वही शायद समझ सकता है 
कहते है रामकृष्ण परमहंस के गुरु तोतापुरी,पुनः जन्म लेकर जहार्के प्याला पी, और मीरा बाई भी 
कृष्ण भक्ति में रमे जहाँ का प्याला पी जिन्दगी से आत्मसात कर पायी थी | बहरहाल रचना के लिए बधाई |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 6, 2012 at 11:28am

ज़िन्दगी के बारे में बहुत कुछ लिखा गया, पर मौत ज़िन्दगी का कोरा सच है जो कभी न लिख पाया......  बहुत सुन्दर चिंतन मनन को दर्शाती रचना. हार्दिक बधाई संदीप पटेल जी.

आपके स्व सत्यान्वेष्णात्मक  चिंतन मनन को आपकी रचनाएं बिम्बित करती हैं. पर इस रचना के अंत के शब्द व चिंतन कुछ अधूरा सा लगता है. 
हमारे भारतवर्ष में ऐसे अनेक महान सिद्ध, अवधूत हुए हैं जिन्होंने सिर्फ मृत्यु  ही नहीं, मृत्यु पार के भी हर गुह्यतम  रहस्य को खोजा है. हमारे उपनिषद इसका प्रमाण हैं. 
कई लोगों नें (मुमुक्षुओं नें ) out of the body experiences और साधनाओं की उच्चतम अवस्थाओं में मृत्यु को भली भांति जाना है, और उस ज्ञान को शब्दबद्ध किया है.
WALKING WITH A HIMALAYAN MASTER - by Justin में भी इसका ज़िक्र है.
यह सत्य है की आज कोई मृत्यु के बारे में नहीं लिखता, बात नहीं करता.... क्योंकि इससे सब भागते हैं, डरते हैं. 
पर यह भी सत्य है कि जो जानना चाहता है, वो ही इसे पूर्णता से और ख़ूबसूरती से अवश्य जान भी पाता है, और जल में कमलवत जीवन का आनंद उठाता है. 
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 12:42pm

आदरणीय अशोक जी सादर प्रणाम
आपकी सराहना मिली इस रचना को लेखन कर्म सफल हुआ
आपका ये स्नेह और सहयोग यूँ ही अनुज पर बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 4, 2012 at 12:40pm

जींदगी को कई रूपों में ढाल कर ले जाति इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें आ. संदीप जी.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 12:10pm

आदरणीय भाई संदीप जी सादर नमस्कार 
आपकी प्रतिक्रिया ने मेरी इस अधपकी रचना को भी पूर्ण कर दिया है
हार्दिक प्रसन्नता हुई आपकी सराहना मिली मुझे
अपना ये स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत  बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 4, 2012 at 11:50am

जिन्दगी का कोरा सच
जो कभी न लिख पाया
वो आज भी कोरा है

वाह भाई दीप जी शुरू से ले कर अंत तक सरपट पढ़ता ही चला गया! प्रवाहमयी रचना पर हार्दिक बधाई!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 11:45am

आदरणीय अम्बरीश सर जी सादर प्रणाम
आपने रचना को सराहा और इसका रसास्वादन किया
इसके लिए मैं आपका अनुज नित आभारी हूँ
अपना ये स्नेह मुझ पर यूँ ही बनाये रखिये
ह्रदय से धन्यवाद आपका

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 4, 2012 at 11:42am

//हाँ मौत
मौत है
जिन्दगी का कोरा सच
जो कभी न लिख पाया
वो आज भी कोरा है //

उत्तम प्रवाह से युक्त इस शानदार रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें भाई संदीप जी !

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 11:36am

आदरणीय नीरज जी सादर नमस्कार
आपको लेखन पसंद आया और आपकी सराहना मिली
अपना स्नेह और सहयोग यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत धन्यवाद  सहित सादर आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 4, 2012 at 11:35am

आदरणीय गणेश सर जी सादर प्रणाम
आपकी इस अनुपम हर्ष से भरी प्रतिक्रिया मिली मन में एक उत्साह जाग गया
अपना ये स्नेह मुझ पर यूँ ही बनाये रखिये
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service