For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,988)

ग़ज़ल

इन्साफ जो मिल जाय तो दावत की बात कर  

मुंसिफ के सामने न रियायत की बात कर

 

तूने किया है जो भी हमें कुछ गिला नहीं

ऐ यार अब तो दिल से मुहब्बत की बात कर

 

गर खैर चाहता है तो बच्चों को भी पढ़ा

आलिम के सामने न जहालत की बात कर

 

अपने ही छोड़ देते तो गैरों से क्या गिला

सब हैं यहाँ ज़हीन सलामत की बात कर

 

'अम्बर' भी आज प्यार की धरती पे आ बसा 

जुल्मो सितम को भूल के जन्नत की बात कर

--अम्बरीष श्रीवास्तव  

Added by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 10:30am — 26 Comments

गीत मे तू मीत मधुरिम नेह के आखर मिला

सौरभ जी से चर्चा के पश्चात जो परिवर्तन किये हैं उन्हें प्रस्तुत कर रही हूँ 

परिचर्चा के बिंदु सुरक्षित रह सके  इस हेतु  पूर्व की पंक्तियों को भी डिलीट नहीं किया है जिससे नयी पंक्तियाँ नीले text में हैं 

 

गीत मे तू मीत मधुरिम नेह के आखर मिला 

प्रीत के मुकुलित सुमन हो भाव मे भास्वर* मिला -----*सूर्य



हो सकल यह विश्व ही जिसके लिए परिवार सम 

नीर मे उसके नयन के स्नेह का सागर मिला …



Continue

Added by seema agrawal on September 12, 2012 at 10:00am — 34 Comments

दायित्व

दूंगा मैं लौटा तुम्हारी धरा ,

अगर तुम मेरे पंख बन कर उड़ो

संभालूँगा तुमको मैं हर मोड़ पर,

चलोगी कभी जब गलत राह पर

यही एक ख्वाहिश तुम्हारे हो मन में

मेरे साथ चलना बरस चौदह वन में

कभी राम का अनुसरण कर सकूँ तो

दायित्व सीता का गर तुम संभालो

कोई मित्र कलि युग की लंका दहन

भ्राता अगर मिल गया हो लखन

अगर रह सको तुम मन से भी पावन

तभी मर सकेगा यहाँ भ्रष्ट रावन

भारत बनेगा तभी फिर अयोध्या

कभी राम जैसे प्रकट होंगे योद्धा

गर कोई…

Continue

Added by Ashish Srivastava on September 12, 2012 at 8:30am — 1 Comment

'हम नहीं सुधरेंगें' (लघुकथा)

 

बिरादरी में ऊँची नाक रखने वाले, दौलतमंद, पर स्वभावतः अत्यधिक कंजूस, सुलेमान भाई ने अपने प्लाट पर एक घर बनाने की ठानी| मौका देखकर इस कार्य हेतु उन्होंने, एक परिचित के यहाँ सेवा दे रहे आर्कीटेक्ट से बात की| आर्कीटेक्ट नें उनके परिचि त का ख़याल करते हुए, बतौर एडवांस, जब पन्द्रह हजार रूपया जमा कराने की बात कही, तो सुलेमान भाई अकस्मात ही भड़क गए, और बोले, "मैं पूरे काम के,…

Continue

Added by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 8:30am — 20 Comments

देश में हिंदी लाओ !

हिंदी दिवस मना रहे, अंग्रेजी की खान/

कैसे हो हिंदी भला, मिले इसे सम्मान//

मिले इसे सम्मान,ज्ञान का कोष अनूठा/

हर जिव्हा पर आज,शब्द परदेशी बैठा//

कह अशोक सुन बात,भाल पर जैसे बिंदी/

करो सुशोभित आज, देश की भाषा हिंदी//




लाओ फिरसे खोज कर,हिंदी के वह संत/

जिनसे थी प्रख्यात ये,चुभे विदेशी दंत//

चुभे  विदेशी   दंत,  बहा  दो   हिंदी गंगा/

करते जो बदनाम, करो अब उनको नंगा//

कह अशोक यह बात,…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on September 12, 2012 at 8:30am — 13 Comments

एक छोटी सी कविता मेरी

एक छोटी सी कविता मेरी,

ना जाने कहाँ खो गयी है

सुबह, सीढियां चढ़ते वक्त तो थी

मेरी ही जेब में

फिर ना जाने कहाँ गयी

सारे दिन की भाग दौड़ में

मुझे भी न रहा ध्यान

न जाने कब खो गयी वो

छोटी सी ही थी

उस कविता में,

एक पेड़ था

पेड़ पे एक झूला

झूले पर झूलते मेरे दोस्त

आवाज़ देकर बुलाते हुए

वो सब उसी कविता में ही तो थे

अब वो भी ना जाने कैसे मिलेंगे?

खो गये वो भी

उस कविता में था

एक बेघर हुआ

चिड़िया का छोटा सा…

Continue

Added by Pushyamitra Upadhyay on September 11, 2012 at 10:07pm — 7 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
सद्गुरु त्रिगुणातीत (दोहावली )



सत् रज तम गुण से परे, सद्गुरु त्रिगुणातीत l
तुर्यावस्था लीन जो, लीला उनकी रीत ll1ll
**************************************************
गुरुवर दो ऐसी कृपा, पा जाएँ निज ज्ञान l
प्रेम समंदर उर बहे, तनिक न हो अभिमान ll2ll…
Continue

Added by Dr.Prachi Singh on September 11, 2012 at 6:00pm — 21 Comments

ताकि समझ सकूं

हे परमपिता
ना देना कभी
इतनी नजदीकी…
Continue

Added by राजेश 'मृदु' on September 11, 2012 at 2:52pm — 9 Comments

मिलन की बात है असंभव

तुम कंचन हो,

मै कालिख हूँ!

तुम पारस, मै

कंकड़ इक हूँ!

 

तुम सरिता हो,

मै कूप रहा!

तुम रूपा, इत

ना रूप रहा!

जो मानव नहीं है उसको, देव की पांत है असंभव!

है तुलना न अपनी कोई, मिलन की बात है असंभव!

 तुम ज्वाला हो,

मै…

Continue

Added by पीयूष द्विवेदी भारत on September 11, 2012 at 2:30pm — 58 Comments

दोपहर शाम शब् सहर जन्नत

दोपहर शाम शब् सहर जन्नत

हर घडी आ रही नज़र जन्नत



वक्ते फुरकत लगा जहन्नम सा

खंडहर हो गया है घर जन्नत



भूलना आपको हुआ मुश्किल

याद कर कर के हर पहर जन्नत



जिन्दगी किस तरह जियें तुझको…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 11, 2012 at 2:08pm — 4 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- २६

तेरे बगैर मज़ाभी क्या आये जीने का

शराब न हो तो क्या हो आबगीने का

 

तेरी ज़ुल्फ़से दोचार नफ्स मांग लेतेहैं

तेरेही इश्कने काम बढ़ाया है सीने का   

 

तू नमाज़ी है तो पाबन्द है औकातका

मैं खराबाती हूँ कोई वक्त नहीं पीनेका

 

नतुम न दरियएइश्क पार करनेको है

नाखुदा है खुदा काम क्या सफीने का

        

राज़ ज़रा संभल के खर्च करो मआश

अभीतो पूरा महीना पड़ा है महीने का    

 

© राज़…

Continue

Added by राज़ नवादवी on September 11, 2012 at 7:45am — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
दोहे – कालजयी साहित्य

मान और सम्मान की,नहीं कलम को भूख

महक  मिटे  ना पुष्प  की , चाहे जाये सूख |

 

खानपान  जीवित  रखे , अधर रचाये पान

जहाँ  डूब कान्हा मिले , ढूँढो वह रस खान |…

Continue

Added by अरुण कुमार निगम on September 11, 2012 at 12:00am — 14 Comments

कवि-सम्मेलन का आयोजन (हास्य) // शुभ्रांशु

आज सुबह-सुबह बड़कऊ का बेटा कविता ’पुष्प की अभिलाषा’ पर रट्टा मार रहा था  --"चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ.. ." मैथिली शरण गुप्त जी ने बाल कविता लिखी है. शब्दों का चयन, सन्निहित भाव सबकुछ कालजयी है. आँखो को मूँदे कविता को आत्मसात करता हुआ मन ही मन राष्ट्रकवि को नमन किया. अभी मन के दरवाजे पर कुछ और शुद्ध विचार दस्तक देते कि घर के दरवाजे पर दस्तक हुई. सारे शुद्ध विचार एक बारगी हवा हो गये.. "कौन कमबख़्त सुबह-सुबह फ़ोकट की चाय पीने आ गया, यार ?"  झुंझलाता-झल्लाता…

Continue

Added by Shubhranshu Pandey on September 10, 2012 at 9:00pm — 11 Comments

सपनों का भारत

ये तो नही है
सपनों का भारत
देश ये मेरा

जला असम
कश्मीर में आग
सुलगे देश

आतंकवाद
का भारत देश में
है बोलबाला

भटक रहा
दर दर ईमान
फलता पाप

हुए पराये
हम भारत वासी
देश अपना

कोलगेट पे
मच रहा बवाल
है मुहं काला

ये तो नही है
सपनों का भारत
देश ये मेरा

Added by Rekha Joshi on September 10, 2012 at 8:00pm — 20 Comments

जागरूक बेटी (लघुकथा)

रामकरन अपनी पत्नी मुनिया से बोले-"श्यामा की अम्मा हमार करेजा तौ मुंहके आवत बाय।श्यामा 14 साल की हुइ गई ओकर सादी करेक हा।"

"हां हो हमहुक इहै चिंता खाये जात बाय।चिट्ठी पाती भरेक पढ़िये चुकी है,अउर इ जमाना बहुत खराब बाय,पता नाहीं कहां ऊंचे नीचे पैर परि जाय,समाज में नाक कटि जाय।............तौ कहूं,कवनो लरिका देख्यो सुनयो नाई?"-मुनिया ने प्रश्न वाचक दृष्टि से देखते हुए कहा।

"रमई के लरिका मुनेसर हैं बम्मई कमात हैं औ उमरियो ढेर नाई 24-25 साल होई।"-रामकरन ने कहा।

श्यामा पास ही आंगन में… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 10, 2012 at 7:18pm — 29 Comments

कितना रोता है

दर्द अगर न मिलता तो 
क्या जानते कैसा होता है
हमको सताकर वोह भी 
शायद कितना रोता है 
********
हादसों नें मुझको कहीं का न छोड़ा
फिर भी हमने दोस्तो  जीना नहीं छोड़ा
हर हाल में जीते रहे हम हँस हँस के यारो
घूँट दर्द-ओ-ग़म  का  पीना नहीं छोड़ा    
दीपक कुल्लुवी  

Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 10, 2012 at 4:42pm — 4 Comments

हो गया है मेरा शहर जन्नत

शाम जन्नत हुई सहर जन्नत

आप आये हुआ ये घर जन्नत



जो पड़े हैं कदम तुम्हारे यूँ     

हो गया है मेरा शहर जन्नत



राह मुश्किल भरी रही लेकिन 

आपके साथ था सफ़र जन्नत



ख्वाब क्या और क्या हकीकत में…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 10, 2012 at 3:00pm — 16 Comments

घर की मुर्गी



घर की मुर्गी

 

 

हिन्दोस्तान में हिंदी की

बेकद्री इतनी होती…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 10, 2012 at 2:24pm — 3 Comments

"मौलिक संतान"

"मौलिक संतान"



कोख

माँ की कोख

प्यारी न्यारी

जीव का प्रारंभ

उसकी जन्नत

माँ की कोख

सबसे खूबसूरत

कोई शै नहीं

इस सारे जहाँ…

Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 10, 2012 at 1:25pm — 2 Comments

मेरे सपनो का भारत

मेरे सपनो का भारत ऐसा तो नहीं था

इतना कमजोर , इतना खोखला

ऐसा देश तो मैंने कभी चाहा ही नही था

बाहर से जितना साफ अंदर से उतना ही गन्दा

मेरे सपनो का भारत ....................



सोचा था मैंने तो कि ये चमन खूब महकेगा

अपने परिंदों के चहकने से खूब चहकेगा

मगर ये क्या --- इसे तो इसके ही फूलो ने कांटे चुभोये

लहू देशभक्तों का बो कर भी गद्दार उगाये

मेरे सपनो का भारत ये तो नहीं था

मेरे सपनो का भारत ऐसा ......................

.

मैंने चाहा…

Continue

Added by Sonam Saini on September 10, 2012 at 9:30am — 10 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Oct 1
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Sep 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sep 29
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sep 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Sep 29
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Sep 29
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
Sep 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल है आपकी। इस हेतु बधाई स्वीकार करे। एक शंका है मेरी —…"
Sep 28
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"धन्यवाद आ. चेतन जी"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी"
Sep 28

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service