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सद्गुरु त्रिगुणातीत (दोहावली )


सत् रज तम गुण से परे, सद्गुरु त्रिगुणातीत l
तुर्यावस्था लीन जो, लीला उनकी रीत ll1ll
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गुरुवर दो ऐसी कृपा, पा जाएँ निज ज्ञान l
प्रेम समंदर उर बहे, तनिक न हो अभिमान ll2ll
**************************************************
माटी कर दीजे मुझे, चरण धूल बन जाउंl
अहंकार का ताज तज, प्रेम राह अपनाउं ll3ll
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मूरख खोजे मंदिरों, नयन दरस कर पाय l
जो मन दर में झाँक ले, प्रभु तद्क्षण मिल जाय ll4ll
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शुद्ध मनस, निर्मल वचन, स्वार्थ रहित हों भाव l
पार स्वतः हो जाय तब, भव सागर से नाव ll5ll
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गुरुवर ऐसा ज्ञान दो, भाव करे जो शुद्ध l
दशम द्वार की राह के, खुलें मार्ग अवरुद्ध ll6ll
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Comment

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 8:15pm

अल्प ज्ञान के अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय ! सादर  :-)))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 12, 2012 at 8:03pm

जी, यह भी सही है, आदरणीय अम्बरीषजी. 

काश, आपके ’अल्पज्ञान’ को हमसभी समवेत साध पाते.. .  :-)))

सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 12, 2012 at 8:00pm

//मूरख  मूढ़ का देसज स्वरूप है. मूढ़ नासमझ को तो कहते ही हैं, उसे भी कहते हैं जो जानते-बूझते उस पर अमल नहीं करता या कर पाता.//

आदरणीय सौरभ जी, मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार मूर्ख का तदभव शब्द मूरख है अर्थात मूरख का तत्सम शब्द 'मूर्ख' ही है ! सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 12, 2012 at 7:15pm

आदरणीया सीमा जी, इस दोहावली की सराहना कर उत्साहवर्धन करने हेतु बहुत बहुत आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 12, 2012 at 7:13pm

हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लाडिवाला जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 12, 2012 at 5:16pm

सुन्दर भावो की दोहावली हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ.प्राची सिंह जी,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 12, 2012 at 4:35pm

रचना में समाहित किये जाने वाले शब्दों का क्या महत्व होता है, और कैसे हर शब्द एक विशिष्ट भाव दशा को, निश्चित  तीव्रता की परिधि में अभिव्यक्त करने की सक्षमता रखता है.... इस सूक्ष्मतर विषय पर महत्वपूर्ण ज्ञान साझा करने हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 12, 2012 at 4:27pm

इस दोहावली निहित भाव को मान देने हेतु आभार प्रिय विन्ध्येश्वरी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 12, 2012 at 4:26pm

प्रस्तुत दोहावली निहित यह भक्ति रस आपके मन को रुचा इस हेतु हार्दिक आभार आ. संदीप द्विवेदी जी 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 12, 2012 at 1:22pm
आदरणीया डॉ. प्राची दी!बहुत ही पुनीत दोहे हैं,सीधे हृदय में उतर गये।इसके लिए आपको हार्दिक बधाई।

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