Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on October 14, 2012 at 11:54am — 5 Comments
Added by Shubhranshu Pandey on October 13, 2012 at 9:30pm — 14 Comments
पिता की मृत्यु के चार वर्ष बाद बड़े लड़के निर्मल की शादी के समय छोटा भाई सबल 13 वर्ष का था । नयी बहु आये दिन साँस से झगडती रहती थी | निर्मल अन्दर से परेशान | भाई भाभी के बेरुखे व्यव्हार से और गलत संगत के कारण सबल देर रात तक आने लगा |एक दिन निर्मल ने अपने जीजा को कहने लगा "जीजाजी मेरी पत्नी को न मै समझा सकता हूँ, और न ही उसको डांटकर अशांति फैलाना चाहता हूँ" | परेशान हो माँ ने अलग रसोई करने का निर्णय स्वीकार कर लिया |
माँ को अल्प पारिवारिक पेंशन से अपना और छोटे लड़के सबल का निर्वाह…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 13, 2012 at 3:30pm — 7 Comments
स्वात घाटी की निर्भीक बेटी मलाला को समर्पित
सुन्दरी सवैया
अधिकार मिले सब शिक्षित हों बिखरे चहुँ ओर हि ज्ञान उजाला.
लड़ती जब जायज़ घायल क्यों सुकुमारि दुलारि पियारि 'मलाला'.
सब…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 13, 2012 at 3:00pm — 20 Comments
ऐतिहासिक इमारतों में कितना आकर्षण समाया है. इक पूरी ज़िंदगी और ज़माने का कोई थ्री डी अल्बम हों ये जैसे. ख्यालों की लम्बी दौड़ लगानेवालों के लिए गोया ये फंतासी, रूमानियत, त्रासदी, और न जाने किन किन रंगों के तसव्वुरात की कब्रगाह या कोई मज़ार हैं ये इमारतें.
ज़िंदगी जीते हुए जितनी हसीन नहीं लगती उससे कहीं अधिक माजी के धुंधले आईने में नज़र आती है. जैसे गर्द से आलूदा किसी शीशे में कोई हसीन सा चेहरा पीछे से झांकता नज़र आ जाए और हम खयालों में मह्व (खोए), हौले से अपनी उंगुलियाँ आगे…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 13, 2012 at 11:19am — 10 Comments
(1)
(तालिबानी फरमान न मानने वाली छात्रा बिटिया मलाला को समर्पित)
सुंदरी सवैया
उगती जब नागफनी दिल में, मरुभूमि बबूल समूल सँभाला ।
बरसों बरसात नहीं पहुँची, धरती जलती अति दाहक ज्वाला ।
उठती जब गर्म हवा तल से, दस मंजिल हो भरमात कराला ।
पढ़ती तलिबान प्रशासन में, डरती लड़की नहीं ढीठ मराला ।।
(2)…
ContinueAdded by रविकर on October 13, 2012 at 8:30am — 12 Comments
खूबसूरत दृश्य
हम गढ़ते रहे,
शब्द चित्रों की
सफलता के लिए |
शहर धीरे धीरे
बन बैठा महीन
दिख रहा है हर कोई
कितना जहीन
गाँव दण्डित है
सहजता के लिए || १ ||
घर की दीवारों
में हाहाकार है
लक्ष्मी का रूप
अस्वीकार है
कौन सोचे
नव प्रसूता के लिए || २ ||
जब से हम सब
खुद पे अर्पण हो गये
बस तभी शीशा से
दर्पण हो गये
या सुपारी हैं
सरौता के लिए || ३ ||…
Added by वीनस केसरी on October 13, 2012 at 1:00am — 6 Comments
Added by ajay sharma on October 12, 2012 at 5:30pm — 1 Comment
कितनी ख़ास ओ आम ज़िन्दगी
Added by ajay sharma on October 12, 2012 at 5:21pm — 3 Comments
तालाब में मगरमच्छ
शिकार की तलाश में हैं
गिरगिट अपना रंग बदले
दबे पाँव जमे हैं
मकड़ियाँ जाल बुनने में
व्यस्त हैं ।
इन सबके बीच
फूलों को फर्क नहीं पड़ता…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on October 12, 2012 at 4:00pm — 2 Comments
======ग़ज़ल=======
बह्र ए खफीफ
वजन- २ १ २ २ , १ २ १ २ , २ २
यूँ बिछड़ने की ये अदा कैसी
इक मुलाक़ात की दुआ कैसी
जख्म दिल के हमारे भरने को
चश्म छलका रहे दवा कैसी
रात…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 12, 2012 at 3:38pm — 9 Comments
Added by MARKAND DAVE. on October 12, 2012 at 9:00am — 6 Comments
देख पिया को सम्मुख,मन हर्षाय,
देखे मुख को गौरी,नयन घुमाय/
पागल प्रेम दिवानी,पिया रिझाय,
सुधबुध खोकर अपनी,झूमति जाय/
हाथ धरे कभी शीश,चुमती जाय,
बनी मतवाली रीझ,घुमती जाय/
मुस्काय दिल पर हाय,घाव लगाय,
व्याकुल मनवा थिरके,चैन न पाय/
प्रेम पगे दिल आयी,मिलन कि चाह,
प्रेम बिना सूझे नहि, दूजी राह/
Added by Ashok Kumar Raktale on October 11, 2012 at 11:14pm — 17 Comments
(बहरे रमल मुसम्मन मख्बून मुसक्कन
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन.
२१२२ ११२२ ११२२ २२)
जब भी हो जाये मुलाक़ात बिफर जाते हैं
हुस्नवाले भी अजी हद से गुजर जाते हैं
देख हरियाली चले लोग उधर जाते हैं
जो उगाता हूँ उसे रौंद के चर जाते हैं
प्यार है जिनसे मिला उनसे शिकायत ये ही
हुस्नवाले है ये दिल ले के मुकर जाते हैं
माल लूटें वो जबरदस्त जमा करने को
रिश्तेदारों के…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 11, 2012 at 11:00pm — 22 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on October 11, 2012 at 8:36pm — 17 Comments
मुक्तिका;
बेवफा से ...
संजीव 'सलिल'
*
बेवफा से दिल लगा के, बावफा गाफिल हुआ।
अधर की लाली रहा था, गाल का अब तिल हुआ।।
तोड़ता था बेरहम अब, टूटकर चुपचाप है।
हाय रे! आशिक 'सलिल', माशूक का क्यों दिल हुआ?
कद्रदां दुनिया थी जब तक नाश्ते की प्लेट था।
फेर लीं नजरों ने नजरें, टिप न दी, जब बिल हुआ।।
हँसे खिलखिल यही सपना साथ मिल देखा मगर-
ख्वाब था दिलकश, हुई ताबीर तो किलकिल हुआ।।
'सलिल' ने माना था भँवरों को कँवल का मीत पर-
संगदिल…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 11, 2012 at 7:59pm — 8 Comments
रोज की तरह मंदिर के सामने वाले पीपल के पेड़ की छाँव में स्कूल से आते हुए कई बच्चे सुस्ताने से ज्यादा उस बूढ़े की कहानी सुनने के लिए उत्सुक आज भी उस बूढ़े के इर्द गिर्द बैठ गए और बोले दादाजी दादा जी आज भूत की कहानी नहीं सुनाओगे ?नहीं आज मैं तुम्हें इंसानों की कहानी सुनाऊंगा बूढ़े ने कहा-"वो देखो उस घर के ऊपर जो कौवे मंडरा रहे हैं आज वहां किसी का श्राद्ध मनाया जा रहा है, उस लाचार बूढ़े का जो पैरों से चल नहीं सकता था पिछले वर्ष उसकी खटिया जलने से मौत हुई थी उसकी खाट के पास उसकी बहू ने…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 11, 2012 at 11:10am — 28 Comments
यूं ही तोड़ लिया था उस दिन,
एक सफ़ेद गुलाब बागीचे से,
मैंने तुम्हारे लिए/
कि सौंप कर तुम्हें..
तुमसे सारे भाव मन के
कह दूंगा,
नीली नीली स्याही सा
कोरे कागज़ पर बह दूंगा/
हो जाऊँगा समर्पित ,
पुष्प की तरह/
फिर तुम ठुकरा देना
या अपना लेना/
मगर फिर तुम्हारे सामने...
शब्द रुंध गये/
स्याही जम गयी/
धडकनें बढ़ गयीं/
सांस थम गयी/
मैं असमर्थ था ..
तुम्हरी आँखों के सुर्ख सवालों,
का उत्तर देने में/
या कि उस लिखे हुए उत्तर के…
Added by Pushyamitra Upadhyay on October 11, 2012 at 9:12am — 10 Comments
गज़ल के विषय में मेरा ज्ञान ना के बराबर भी शायद ही हो, फिर भी प्रयास कर रहा हूँ ! आशा है, आशीष रहेगा !
तुमसे जो चंद बात में कुछ पल ठहर गया !
जरा खबर ना हुई बड़ा लम्हा गुज़र गया !
अमृत ही पाने को निकला था सफर पे मै !
पीछे मधु की बूंदों के सारा सफर गया !
…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on October 10, 2012 at 10:30pm — 18 Comments
तेरी यादों का श्रृंगार सजा
मैं भूले गीत सुनाता हूँ.
कृन्दन-रोदन के साज बजा
जीवन रीत सजाता हूँ.
वो वल्लरियों से पल
तेरी सुध से महके ऐसे
फिर से सिंचित कर उर में
मन को फिर समझाता हूँ.
कल बारिस की झनझन में
पैजनियाँ तेरी झंकार गई
मैं उन्हीं पुराने सुर में ही
फिर से गीत सजाता हूँ.
मन पुलकित होता बेसुध मैं
कम्पित करता तार वही
उसी भँवर में बार-बार मैं
घूम-घूम कर आता हूँ.!!
Added by Raj Tomar on October 10, 2012 at 7:22pm — 12 Comments
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