रूठ मै जाऊँ तो मनाना मुझको
जो गिरता हूँ तो उठाना मुझको
मैंने मोहब्बत ही सबसे की है
गर हो खता खुदा बचाना मुझको
तुम्हारी हरेक शर्त मंजूर है मुझे
हाथ पकड़ के कभी बिठाना मुझको
बड़ी ही नाज़ुक है यादें हमारी
दीवारों पर यूँ न सजाना मुझको
दिल के कमज़ोर होते हैं इश्क वाले
बुरी नज़र से सबकी बचाना मुझको
साथ माँ-बाप का किसे अच्छा नहीं लगता
मेरी मजबूरीयों से ए-रब बचाना…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on October 21, 2012 at 10:30am — 2 Comments
'आत्मा' का वजन सिर्फ 21 ग्राम !
इंसानी आत्मा का वजन कितना होता है?
इस सवाल का जवाब तलाशने के लिये 10 अप्रैल 1901 को अमेरिका के…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 21, 2012 at 8:45am — 7 Comments
लिखा छन्द टेढ़ मेढ़,
कर दिया ऐड़ बेड़,
छंद अनुराग जो भी,
करावाये कम है |
किया है सुधार जब,
छन्द महारथियों ने,
लगा अब रचना में,
आया कुछ दम है |
छन्द का है भूत चढ़ा,
रात दिन रटा पढ़ा,
और अब लिखने को
उठाई कलम है |
दोहा रोला घनाक्षरी,
उल्लाला भी लिखूंगा मैं,
सीखूंगा मैं अपनों से,
काहे की शरम है ||
जय हो
Added by वीनस केसरी on October 21, 2012 at 12:00am — 4 Comments
उन से कह दो खतों में महक ना रखें
मेरी चाहत पे इतना भी शक ना रखें
चाँद छुप जाएगा रात रुक जायेगी
अपनी आँखों में इतनी चमक ना रखें
जिक्र उसका चले, हाल पूछें मेरा
मेरे जख्मों पे ऐसे नमक ना रखें
मेरा बनना है उनको तो बन जायें वो
मेरे बन जायें तो मुझ पे हक ना रखें
दीद-ऐ-महबूब जितना मिला लूट लें
और उम्मीद फिर मौत तक ना रखें
चाँद ने खुद् निहारा जो शब् भर हमें
क्यों कदम फिर हमारे बहक ना रखें
मैं भी लो छोड़ दूं जिक्र शहनाई…
Added by Pushyamitra Upadhyay on October 20, 2012 at 10:19pm — 1 Comment
दीपावली की रात से पहले लक्ष्मी पूजा की तैयारी में लगे पडोसी जीवन को देख कर नवीन जी से रहा नहीं गया और जा धमके उनके सामने नमस्कार करके बोले जीवन जी आप जो ये छोटे छोटे पैर लाल रंग से बना रहे हैं क्या सचमुच रात को देवी आती है क्या आपने उसको कभी आते हुए देखा ?जीवन बोले हाँ आती है इसी लिए तो बना रहा हूँ तुम ठहरे नास्तिक तुम कहाँ समझोगे | नवीन जी बोले जी नहीं भगवान् को तो मैं मानता हूँ पर इन सब आडम्बरों में विशवास नहीं रखता वैसे आज मुझे बता ही दो ये सब क्या फंडा है ये बात तो मैं…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 20, 2012 at 11:42am — 14 Comments
बहरे रमल मुसम्मन महजूफ़
(वज़न- फायलातुन फायलातुन फायलातुन फाएलुन)
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मुलाहिजा फरमाएं:
बात क्यूँ करते हो मुझसे इश्रतोआराम की
हुस्नवालों की दलीलें हैं मिरे किस काम की
कब हुई तस्लीम मेरी इक ज़रा सी इल्तेजा
दास्तानें कब हुईं मंसूख तेरे नाम की
जाग जाओ सोने वालो अपने मीठे ख्वाब से
घंटियाँ बजने लगी हैं शह्र में आलाम की
पीछे पीछे नामाबर…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 19, 2012 at 11:51pm — 8 Comments
देखते ही देखते दिन रात बदल जाते है
पल में लोग अपनी बात बदल जाते है
यूँ बदल गई आब-ओ-हवा मेरे शहर की
घर देख कर यहाँ अब ताल्लुकात बदल जाते हैं
न कर गुरुर बन्दे मेयार-ए-ख़ुद पर
कौन जाने कब किसके हालत बदल जाते हैं
रह गई है मौहब्बत की इतनी ही हकीक़त
रोज आशिको के अब जज्बात बदल जाते हैं
होती है आरजू-ए-मुकतला यहाँ सभी को
तकदीरे कभी तो कभी ख्वाहिशात बदल जाते है
क्या करें जहाँ में ऐतबार अब किसी का
जब…
Added by Sonam Saini on October 19, 2012 at 9:34am — 13 Comments
कभी गुलामी के दंशों ने , कभी मुसलमानी वंशों ने
मुझे रुलाया कदम कदम पर भोग विलासीरत कंसो ने
जागो फिर से मेरे बच्चों शंख नाद फिर से कर डालो
फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो||
मनमोहन धृष्टराष्ट बन गया कलयुग की पहचान यही है
गांधारी पश्चिम से आकर जन गण मन को ताड़ रही है
भरो गर्जना लाल मेरे तुम माँ का सब संकट हर डालो
फिर कौरव सेना सम्मुख है एक महाभारत रच डालो…
Added by Manoj Nautiyal on October 19, 2012 at 7:18am — 5 Comments
हमारे हौसले अब भी उन्हें छू कर निकलते हैं
उन्हें शक है मुहोब्बत में कई शोले पिघलते हैं ।।
कोई अनजान सा गम है जुदाई के पलों का भी
ये कैसी आग है जिसमे बिना जल कर सुलगते हैं ।।
खफा होती हुयी जब भी दिखाई दी हमें चाहत
खता कुछ भी नहीं रहती बिना कारण चहकते हैं ।।
सुना है आज कल उनकी गली में हुश्न तनहा है
घडी भर दीद करने को भला क्यूँ कर हिचकते हैं…
Added by Manoj Nautiyal on October 19, 2012 at 7:16am — 2 Comments
कजरी गीत:
गौरा वंदना
संजीव 'सलिल'
*
गौरा! गौरा!! मनुआ मानत नाहीं, दरसन दै दो रे गौरा!
*
गौरा! गौरा!! तुम बिन सूना है घर, मत तरसाओ रे गौरा!
*
गौरा! गौरा!! बिछ गये पलक पाँवड़े, चरण बढ़ाओ रे गौरा!
*
गौरा! गौरा!! पीढ़ा-आसन सज गए, आओ बिराजो रे गौरा!
*
गौरा! गौरा!! पूजन-पाठ न जानूं, भगति-भाव दो रे गौरा!
*
गौरा! गौरा!! कुल-सुहाग की बिपदा, पल में टारो रे गौरा!
*
गौरा! गौरा!! धरती माँ की कैयाँ हरी-भरी हो रे गौरा!…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2012 at 11:00am — 1 Comment
दर्द को होंठों की मुस्कान बना देती है,
मौत को जीने का सामान बना देती है.
याद करता हूँ मैं जब भी "माँ" को दिल से,
हर मुसीबत को आसान बना देती है.
(नवरात्री की शुभकामनाएँ)
Added by लतीफ़ ख़ान on October 18, 2012 at 10:30am — 1 Comment
अहा!अब भी चाँद चमकता है
तुम अब भी प्यारी लगती हो.
यूँ अब भी प्यार भटकता है
तुम दुनिया सारी लगती हो !
वो कल के बीते ताने-बाने
तुम आज कहानी लगती हो
वो सुन्दर खाब के अफसाने
तुम जानी पहचानी लगती हो!
देखो,वो सरगम वो साज सभी
तुम मेरी निशानी लगती हो.
मुझे बीता कल सब याद अभी
तुम परियों की रानी लगती हो !! .
Added by Raj Tomar on October 17, 2012 at 11:00pm — No Comments
महंगाई
महंगाई ने कुछ ऐसा रंग दिखाया है
आम सी दाल को भी खास बनाया है
जो दाल रोटी खा प्रभु के गुण गाते थे
प्रभु को भूल आज,वो दाल की पूजा कर जाते हैं
फास्ट फ़ूड खाने वाला आज दाल भी शौक से खाता है
सूट पहनकर इतराता हुआ खुद के रौब दिखाता है
धरती की दाल को आसमान…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on October 17, 2012 at 10:44pm — 4 Comments
देखा है कई बार
अनीति के बढ़ते क़दमों को
शिखर तक जाते हुए
देखा है कई बार
दुष्टों को....सूर्य पर मंडराते हुए
किन्तु कभी नहीं सोचा
कि होकर शामिल उनमें
मैं भी पाऊं सामीप्य गगन का/
ना ही सोचा कि मैं छोडूं
धरा नीति की
और विराजूं उड़ते रथ में/
है भीतर कुछ ऐसा बैठा
देता नहीं भटकने पथ में/
हे ईश् मेरे कहीं वो तुम तो नहीं
देखा है कई बार
सत्य को युद्धरत/
क्षत विक्षत...आहत/
सांस तक लेने के…
Added by Pushyamitra Upadhyay on October 17, 2012 at 10:23pm — 4 Comments
चारागर की ख़ता नहीं कोई.
दर्दे-दिल की दवा नहीं कोई.
आप आये न मौसमे-गुल में,
इससे बढ़कर सज़ा नहीं कोई.
ग़म से भरपूर है किताबे-दिल,
ऐश का हाशिया नहीं कोई.
देख दुनिया को अच्छी नज़रों से,
सब भले हैं बुरा नहीं कोई.
सच का हामी है कौन पूछा तो,
वक़्त ने कह दिया नहीं कोई.
है सफ़र दश्ते-नाउम्मीदी का,
मौतेबर रहनुमा नहीं कोई.
अपने ही घर में हैं पराये हम,
बेग़रज़ राबता नहीं कोई.
इस…
Added by लतीफ़ ख़ान on October 17, 2012 at 6:00pm — 8 Comments
कुहरीले जंगल में हंसती
हरी हवा सी चलती हूं
मुक्त गगन से गिरी ओस हूं
तृण टुनगों पर पलती हूं
हू हू करता आंख दिखाता
रे तमस किसे भरमाता है
देख मेरा बस एक नाद ही
कैसे तुझे जलाता है
अभी जरा निष्पंद पड़ी हूं
कहां अभी तक हारी हूं
भूल न करना मरी पड़ी हूं
अबला,बाल,बेचारी हूं
अरे कुटिल यह चाप तुम्हारा
वृथा चढ़ा रह जाएगा
तेरा ही तम कहीं किसी दिन
तुझको भी डंस…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on October 17, 2012 at 5:02pm — 3 Comments
हमने चुना था सोंचकर, इनमे उनके वंश का ही खून है
वे स्वर्ग से बहाते आंसू, लजाया इसने मेरा ही खून है |
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 17, 2012 at 4:51pm — No Comments
यह मेरा दर्द है,आँखों से छलक आता है
यूँ ही पैमाना,बदनाम हुआ जाता है
लाख कह ले यह ज़माना,न जीना आया हमें
वक़्त अच्छा हो बुरा हो,गुज़र तो जाता है
सबको हँसता हुआ देख लूँ,मैं चला जाऊँगा
यूँ भी "दीपक" जलनें से कहाँ बच पाता है
मैं न अपनों को याद आऊँ,न गैरों को
प्यार उस हद तक मेरा मुझको,नज़र आता है…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 17, 2012 at 1:00pm — 3 Comments
================गायत्री छंद=====================
यह इस छंद पर सिर्फ एक प्रयोग है अंतरजाल के माध्यम से मिली जानकारी के अनुसार
२४ वर्णों के इस छंद में इसमें तीन चरण होते हैं
इस छंद का इक विधान जो गायत्री मंत्र की तरह ही है
विधान -\\१ भगण १रगण १ मगण १ तगण......१ भगण १ यगण १ रगण १ जगण\\…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 17, 2012 at 12:00pm — No Comments
Added by Rekha Joshi on October 17, 2012 at 11:57am — 7 Comments
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