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रूठ मै जाऊँ तो मनाना मुझको

रूठ मै जाऊँ तो मनाना मुझको

जो गिरता हूँ तो उठाना मुझको

 

मैंने मोहब्बत ही सबसे की है

गर हो खता खुदा बचाना मुझको

 

तुम्हारी हरेक शर्त मंजूर है मुझे

हाथ पकड़ के कभी बिठाना मुझको

 

बड़ी ही नाज़ुक है यादें हमारी

दीवारों पर यूँ न सजाना मुझको

 

दिल के कमज़ोर होते हैं इश्क वाले

बुरी नज़र से सबकी बचाना मुझको

 

साथ माँ-बाप का किसे अच्छा नहीं लगता 

मेरी मजबूरीयों से ए-रब बचाना मुझको

 

सोना चाँदी ओ जागीरें क्या करना 

सोहबत में फकीरों के बिठाना मुझको

 

वो शिफत जो अपनों से दूर कर दे

ख्वाहिशों से ऐसी बचाना मुझको 

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Comment

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 24, 2012 at 8:41pm

नादिर साहब, कहन बढ़िया है, बधाई कुबूल करें |

Comment by राज़ नवादवी on October 22, 2012 at 9:41am

//वो शिफत जो अपनों से दूर कर दे

ख्वाहिशों से ऐसी बचाना मुझको//

खूबसूरत ख्याल! बधाई हो जनाब नादिर साहेब. 

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