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ओ मेरे  हमसफर ओ हमदम मेरे 
मेरी आँखों में देख तस्वीर अपनी 
जो बन चुकी है अब तकदीर मेरी 
बह चली मै अब बहती हवाओं में 
उड़ रही हूँ हवाओं में संग तुम्हारे 
इस से पहले कि रुख  हवाओं का 
न बदल जाये कहीं थाम लो मुझे  
कहीं ऐसा न हो शाख से टूटे हुये
पत्ते सी भटकती रहूँ दर बदर मै
जन्म जन्म के साथी बन के मेरे 
ले लो मुझे आगोश में तुम अपने 
ओ मेरे हमसफर ओ हमदम मेरे 

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Comment

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Comment by PHOOL SINGH on November 12, 2012 at 1:21pm

रेखा जी प्रणाम....... सुंदर अतिसुंदर भावपूर्ण गजल ......"सपरिवार सहित आपको शुभ दीपावली" फूल सिंह

Comment by Rekha Joshi on October 19, 2012 at 1:02pm

आदरणीय,राज जी ,लक्ष्मण जी और गौरव जी ,उत्साहवर्धन हेतु अप सभी का हार्दिक धन्यवाद ,आभार 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 18, 2012 at 7:22am

सुन्दर भावयुक्त रचना के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीया रेखा जी.........

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 17, 2012 at 10:05pm

 भावों की अभ्व्यक्ति के लिए बधाई

Comment by Raj Tomar on October 17, 2012 at 9:33pm

बहुत खूब. :)

Comment by Rekha Joshi on October 17, 2012 at 7:37pm

आ डा प्राची जी ,उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 17, 2012 at 5:33pm

युवा मन के वाह्य  प्रेमासक्त भावों को संवेदना के साथ शब्दबद्ध किया है आपने आदरणीया रेखा जी. बधाई स्वीकारें 

कृपया ध्यान दे...

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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