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मलाला को समर्पित एक रचना

कुहरीले जंगल में हंसती

हरी हवा सी चलती हूं

मुक्‍त  गगन से गिरी ओस हूं

तृण टुनगों पर पलती हूं

 

हू हू करता आंख दिखाता

रे तमस किसे भरमाता है

देख मेरा बस एक नाद ही

कैसे तुझे जलाता है

 

अभी जरा निष्‍पंद पड़ी हूं

कहां अभी तक हारी हूं

भूल न करना मरी पड़ी हूं

अबला,बाल,बेचारी हूं

 

अरे कुटिल यह चाप तुम्‍हारा

वृथा चढ़ा रह जाएगा

तेरा ही तम कहीं किसी दिन

तुझको भी डंस जाएगा

 

अभी दुआ की अमृत धारा

श्रुति पुटों से पीती हूं

घहर-छहर मत अरे निरंकुश

अभी तो मैं जुगजीती हूं

 

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Comment

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Comment by राज़ नवादवी on October 19, 2012 at 11:55pm

बहुत खूब! बधाई हो भाई राजेश झा जी! 


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Comment by rajesh kumari on October 18, 2012 at 3:03pm

सकारात्मक सोच मनो बल को बढ़ाती रचना के लिए  बधाई एवं बहादुर मलाला के लिए शुभकामनाएं 

Comment by रविकर on October 18, 2012 at 11:17am

Shubhkamnayen

Mahoday-

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