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हमारे हौसले अब भी उन्हें छू कर निकलते हैं 
उन्हें शक है मुहोब्बत में कई शोले पिघलते हैं ।।

कोई अनजान सा गम है जुदाई के पलों का भी 
ये कैसी आग है जिसमे बिना जल कर सुलगते हैं ।।

खफा होती हुयी जब भी दिखाई दी हमें चाहत 
खता कुछ भी नहीं रहती बिना कारण चहकते हैं ।।

सुना है आज कल उनकी गली में हुश्न तनहा है 
घडी भर दीद करने को भला क्यूँ कर हिचकते हैं ।।

खयालों में कभी उसने हमें हर पल सजाया था 
शबाब- ए- मुश्क से हर ख्वाब रातों में महकते हैं ।।

अदाओं से निगाहों से हजारों क़त्ल कर डाले 
यही तो बात है तुम में इसी कर हम बहकते हैं ।। ......मनोज

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Comment by rajesh kumari on October 21, 2012 at 6:49pm

अच्छी ग़ज़ल लिखी है मनोज जी 

Comment by वीनस केसरी on October 20, 2012 at 3:10am

अदाओं से निगाहों से हजारों क़त्ल कर डाले 
यही तो बात है तुम में इसी कर हम बहकते हैं


क्या कहने वाह वाह वा

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