व्यस्त फुटपाथ की तपती फर्श पर ,
तपती धूप की किरणों से ,
जलते शरीर से बेखबर,
मक्खियों की भीड़ से बेअसर ,
फटे-गंदे कपड़ो से लिपटे
भूखे पेट, एक माँ बच्ची के साथ
बेसुध सो रही ...
कही सामाजिक अव्यवस्था तो..
कही नियति ही सही,
पर मनुष्य के कष्ट सहने के शक्ति की
कोई सीमा भी तो नहीं !!! अन्वेषा
Added by Anwesha Anjushree on December 14, 2012 at 4:00pm — 11 Comments
मन ही सवालों से उलझता है !
मन ही सवालों से कतराता है !
मन ही दर-बदर भटकता है!
मन ही भूलने की बात करता है !
झगड़ता है, चिल्लाता है , कोसता है!
यह मन ही तो है जो रोता है !
अनुभव है ,सच नहीं है,
जाने भी दो, जिंदगी है ,
समझकर सबकुछ खुद को ,
समझाने की कोशिश करता है !
कुछ पल तो शांत बैठता है
और फिर अचानक -
मन ही मन कह उठता है
आह! खट्टे अंगूर !
अन्वेषा
Added by Anwesha Anjushree on December 14, 2012 at 3:30pm — 9 Comments
तुम्हें चुप रहना है
सीं के रखने हैं होंठ अपने
तालू से चिपकाए रखना है जीभ
लहराना नहीं है उसे
और तलवे बनाए रखना है मखमल के
इन तलवों के नीचे नहीं पहननी कोई पनहियाँ
और न चप्पल
ना ही जीभ के सिरे तक पहुँचने देनी है सूरज की रौशनी
सुन लो ओ हरिया! ओ होरी! ओ हल्कू!
या कलुआ, मुलुआ, लल्लू जो भी हो!
चुप रहना है तुम्हें
जब तक नहीं जान जाते तुम
कि इस गोल दुनिया के कई दूसरे कोनों में
नहीं है ज्यादा फर्क कलम-मगज़ और तन घिसने वालों को…
Added by Dipak Mashal on December 14, 2012 at 3:03pm — 13 Comments
आरक्षण की नेता तुमने
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 14, 2012 at 2:39pm — 8 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 14, 2012 at 12:30pm — 4 Comments
एक्सचेंज मेला
दीपावली में खरीददारी की मची हुई थी जंग
खरीददारी करने गए हम बीबी के संग
बदला पुराना टीबी नया टीबी ले आये
दिल में कई बिचार आये
काश बीबी एक्सचेंज का कोई ऑफर पायें
नई नबेली…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on December 14, 2012 at 12:00pm — 10 Comments
मोटी - मोटी चादर तानी,
फिर भी भीतर घुसकर मानी,
जाड़े की जारी मनमानी,
बूढ़े बाबा की दीवानी,
दादा - दादी,…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on December 14, 2012 at 11:24am — 16 Comments
आओ वालमार्ट
स्वागत है आपका
अपनी कमज़ोर हो रही
अर्थव्यवस्था को
मज़बूत करने
आओ
हमारी मज़बूत होती
अर्थव्यवस्था को
कमज़ोर करने
आओ
हमने आपके हथियार नहीं लिए
इस नुक्सान की भरपायी के लिए
नयी संभावनाओं को तलाशने
आओ
किसानों के पसीने निचोड़ने
गरीब जनता का ख़ून चूसने
आओ वालमार्ट
यूनियन कार्बाइड की याद
धुंधली पड़ चुकी है
तुम नयी यादें देने…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 14, 2012 at 11:00am — 3 Comments
हैं मोड़ बहुत सारे यूँ तो
पर दिशा मुझे तय करनी है,
पर मैं ही अकेला पथिक नहीं
आशा सच हो ये परखनी है
सुनता ही नहीं कोई मन की
अब खुद से खुद को सुनना है
संयम गर अपना साथी हो
फिर मंजिल पे ही मिलना है
कुछ ख्वाब नहीं सोने देते
हर पल बस करते हैं बातें
शुरुआत लक्छ्य की आज अभी
सूरज की बात ना तकनी है,
वो आता है हर सुबह…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 1:30am — 9 Comments
ये लो महारानी जी आज नदारद हो गयीं , इन लोगों के मिजाज का कोई ठिकाना ही नहीं है..सुबह सुबह "गौरम्मा" के ना आने से मन खिन्न हो गया , गौरम्मा हमारी काम वाली
हमेशा तो कह कर जाती थी , माँ ( दछिन भारत में येही संबोधन आदर में देते हैं ) हम कल नहीं आ पायेगा , मगर आज सुबह के ११ बज रहे हैं कोई खबर ही नहीं . दो तीन दिन से मैं उसे कुछ बुझी बुझी देख रही थी , मगर मेहमानों की…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 1:00am — 15 Comments
मंज़िल की ओर बढ़ने से सदैव
दूरियों की दूरी ...
कम नहीं होती।
बात जब कमज़ोर कुम्हलाय रिश्तों की हो तो
किसी "एक" के पास आने से,
नम्रता से, मित्रता का हाथ बढ़ाने से,
या फिर भीतर ही भीतर चुप-चाप…
ContinueAdded by vijay nikore on December 14, 2012 at 12:00am — 4 Comments
Added by ajay sharma on December 13, 2012 at 10:30pm — 5 Comments
हसरते, अरमान
तिरस्कार, अपमान
इन्हें लक्ष्मण रेखा को न पार करने दो
या फिर इन्हें कैद करो ऐसे
यह सांस भी न ले पाए जैसे
और चाबी ऐसे दफनाओ
के खुद भी न ढुंढ पाओ
फिर उड़ो ,पंख फैलाओ…
Added by Anwesha Anjushree on December 13, 2012 at 10:00pm — 6 Comments
Added by ajay sharma on December 13, 2012 at 10:00pm — 3 Comments
या फिर सागर मंथन होगा ???
बात सत्य लगती खारी जब
गरल उगलते नर नारी तब
छुप कर बैठे विष धारी सब
इस पर शिव से चिंतन होगा
या फिर सागर मंथन होगा ???
कितना किसको तुमने बांटा
सुख की माला दुःख का काँटा
नमक दाल और चावल आटा
पास किसी के अंकन होगा
या फिर सागर मंथन होगा ???..................
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 13, 2012 at 6:02pm — 4 Comments
शब्द दर शब्द बोलती हैं कुछ खामोश चीखें
मैंने माना कोई नहीं अपना
तोड़ डाला है आज हर सपना
रखे गैरत मिला है क्या मुझको
सोच में इसकी भला क्यूँ खपना
सुन लूँ बिसरी हुई सी ऊँघती बेहोश चीखें
शब्द दर शब्द बोलती हैं कुछ खामोश…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 13, 2012 at 3:45pm — 4 Comments
खुदगर्जी
मेरा जन्म, हर्सौल्लास, जलसा
मां बाबू जी मुराद पूरी, खुशियाँ, चर्मोत्कर्ष
लालन पालन, उत्कर्ष
हर ख़ुशी, मुहैया
हट पूरी ,हर हाल में
मां कई रातें जागी, में सोया
मां सोते से जागी, में रोया
बाबू जी नई स्फूर्ति, उत्साह से ओतप्रोत
में प्रेरणास्रोत
सने सने मेरी बढती काया, बुद्धि,सोच…
Added by Dr.Ajay Khare on December 13, 2012 at 1:00pm — No Comments
(पूर्णतया काल्पनिक, वास्तविकता से समानता केवल संयोग)
बहुत समय पहले की बात है। जंगल में शेर, लोमड़ी, गधे और कुत्ते ने मिलकर एक कंपनी खोली, जिसका नाम सर्वसम्मति से ‘राष्ट्रीय वन निगम’ रखा गया । गधा दिन भर बोझ ढोता। शाम को अपनी गलतियों के लिए शेर की डाँट और सूखी घास खाकर जमीन पर सो जाता। कुत्ता दरवाजे के बाहर दिन भर भौंक भौंक कर कंपनी की रखवाली करता और शाम को बाहर फेंकी हड्डियाँ खाकर कागजों के ढेर पर सो जाता। लोमड़ी दिन भर हिसाब किताब देखती। हिसाब में थोड़ा बहुत इधर उधर करके…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 13, 2012 at 12:13pm — 16 Comments
सड़क पर पड़े, उस दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को अपनी गाड़ी में लेकर रमेश अभी-अभी अस्पताल पहुंचा था ! उससे नहीं देखा गया कि हजारों की भीड़ में से एक आदमी भी उस तड़पते व्यक्ति के लिए आगे नही आ रहा है ! वो समझ नही पा रहा था कि लोग इतने संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं ? और बस इसीलिए वो उस व्यक्ति को अपनी कार में डालकर अस्पताल ले आया था ! अभी उस व्यक्ति का ऑपरेशन चल रहा था ! कुछ देर बाद....! ओटी के बाहर जलता बल्ब बंद हुवा और डॉक्टर बाहर निकले !
“क्या हुवा डॉक्टर? सब ठीक तो है न ?” रमेश ने पूछा…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on December 13, 2012 at 8:30am — 18 Comments
बचपन की देहरी लांघ कर
सच्चे हुए जज्बात जब
रस्ते जो थे अनजान तब
अब मंजिलों का नाम दें
अब हाथ उनका थाम लें .
जिनकी वजह जीवन मिला
इश्वर तुम्हारा शुक्रिया
अब कर्म की दुनिया में हम
अपना भी योगदान दें
अब हाथ उनका थाम लें
थोड़ी हंसी मासूम सी
मेरी वजह रंगीन सी
माँ से थी जिद्द थोड़ी सुलह
जीवन के मसले हल करें
अब हाथ…
Added by SUMAN MISHRA on December 13, 2012 at 1:30am — 9 Comments
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