For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा : राष्ट्रीय वन निगम

(पूर्णतया काल्पनिक, वास्तविकता से समानता केवल संयोग)

बहुत समय पहले की बात है। जंगल में शेर, लोमड़ी, गधे और कुत्ते ने मिलकर एक कंपनी खोली, जिसका नाम सर्वसम्मति से ‘राष्ट्रीय वन निगम’ रखा गया । गधा दिन भर बोझ ढोता। शाम को अपनी गलतियों के लिए शेर की डाँट और सूखी घास खाकर जमीन पर सो जाता।  कुत्ता दरवाजे के बाहर दिन भर भौंक भौंक कर कंपनी की रखवाली करता और शाम को बाहर फेंकी हड्डियाँ खाकर कागजों के ढेर पर सो जाता। लोमड़ी दिन भर हिसाब किताब देखती। हिसाब में थोड़ा बहुत इधर उधर करके वो शाम तक अपने भविष्य के लिए कुछ न कुछ जमा कर लेती। शाम को लोमड़ी के काम के बदले उसे बचा हुआ मांस मिलता जिसे खाकर वो कंपनी से मिले मकान में जाकर सो जाती।

शेर दिन भर अपनी आराम कुर्सी पर बैठे बैठे दो चार जगह फोन मिलाता। तंदूरी मुर्गा खाता। हड्डियाँ दरवाजे पर फेंक देता और पेट भरने के बाद बचा हुआ मुर्गा लोमड़ी के पास भिजवा देता। शाम को गधे के पास जाकर पहले उसे डाँटता फिर और ज्यादा ध्यान से बोझ ढोने के लिए बोलता। यह सब करने के बाद वो अपने महल में मखमल के गद्दे पर जाकर सो जाता। चारों जानवर इस व्यवस्था से बड़े प्रसन्न थे और सेवानिवृत्ति के पश्चात उन्होंने अपने बच्चों को भी उसी काम में लगा दिया।

तब से यही सिस्टम चला आ रहा है। आज तक लोमड़ी गधे या कुत्ते के वंशजों ने शेर के कमरे में झाँककर यह जानने की कोशिश नहीं की कि वो आखिर दिन भर करता क्या है?

Views: 708

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 15, 2015 at 11:25pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय वीनस जी

Comment by वीनस केसरी on December 15, 2012 at 2:15am

(पूर्णतया काल्पनिक, वास्तविकता से समानता केवल संयोग)

दीपक भाई से सहमत नहीं हो पा रहा हूँ क्योकि यह एक वाक्य लघु कथा के परिदृश्य में ऐसा करारा व्यंग्य पैदा कर रहा है कि दिल छलनी हुआ जा रहा है और जुबाँ से अल्फाज़ निकल रहे हैं ..... वाह ! वाह !

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 14, 2012 at 12:22pm

JAWAHAR LAL SINGH जी, बहुत बहुत शुक्रिया जनाब।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 14, 2012 at 5:17am

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, सादर अभिवादन!

वर्तमान ब्यवस्था पर चोट करती हुई रचना के लिए हार्दिक बधाई!

ऐसा ही हो रहा है! आपकी कथा भले ही काल्पनिक हो, पर यह सच्चाई की और इशारा कर रहा है!  

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 13, 2012 at 9:53pm

Dipak Mashal जी, बहुत बहुत शुक्रिया जनाब।

Comment by Dipak Mashal on December 13, 2012 at 9:45pm

व्यवस्था पर चोट करती अच्छी रचना है। मुझे नहीं लगता कि इसकी शुरुआत में काल्पनिक या सत्य होने की बात कहनी जरूरी है क्योंकि यह हर कहीं होता है, यानी यह कईयों की कहानी है। बधाई सज्जन जी। 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 13, 2012 at 8:52pm

rajesh kumari जी, बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 13, 2012 at 8:52pm

आदणीय Saurabh Pandey जी, आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। आप का अनमोल मार्गदर्शन और स्नेह निरंतर यूँ ही मिलता रहे।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 13, 2012 at 8:06pm

इशारों  इशारों  में बहुत कुछ कह रही है लघु कथा पर सही कह रही है वक़्त बदल गए हैं मंच बदल गए हैं किरदार बदल गए हैं पर चरित्र वही  हैं बहुत रोचक कहानी |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2012 at 7:34pm

जो कल था, वही आज है. और, परिदृश्यानुसार संज्ञाएँ भले बदल जायें, व्यवस्था के हिसाब से नहीं लगता कि कुछ विशेष बदलने जा रहा है. जानूं-जानूं रे काहे खनके है तोरा कंगना  जैसे इशारों के दम पर लोमड़िया मालिक से बोसा-बोटी दोनों पाती रही हैं ! नमक से उऋण होने के पुरजोर फेर में कुकुरा तथा उन्नत उद्येश्य हित प्रगति-पथ पर सर्वस्व लुटा देने की अदम्य चाह में गदहवा, दोनों मरे-मिटे जा रहे हैं, सदा-सदा से. यानि ऐसों के एकसुरिया जीते जाने में एक ’जीतता’ रहा है.  हाँ, एक बात जो बस नोट में आने से रह गयी कि ’जीतते उस एक’ के शाश्वत सिस्टम में इन तीनों के अलावे घुग्घुआ और लकड़बघुआ भी खूब दम भरा करते हैं. जो मोटे फ्रेम के चश्मे के मोटे-मोटे काँचों के पीछे से इन तीनों जैसों के करे-धरे पर ’पैनी’ नज़र रखे रहते हैं, उस ’जीतते हुए एक’ को एक-एक पल की खबर देते हुए. और, उन्हीं की आवाज़ ’सुनने लायक’ मानी भी जाती है.

बात प्रारम्भ हुई निरंकुश शासक से, और, प्रतिच्छाया आ पड़ी वर्तमान कॉर्पोरेटी बॉसों पर.. ! वाह ! माने, जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाही  !  सिस्टम पर व्यंग्योक्ति में चर्चा करती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें, धर्मेन्द्रभाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"वहशी दरिन्दे क्या जानें, क्या होता सिन्दूर .. प्रस्तुत पद के विषम चरण का आपने क्या कर दिया है,…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"अय हय, हय हय, हय हय... क्या ही सुंदर, भावमय रचना प्रस्तुत की है आपने, आदरणीय अशोक भाईजी. मनहरण…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मैं अपने प्रस्तुत पोस्ट को लेकर बहुत संयत नहीं हो पा रहा था. कारण, उक्त आयोजन के दौरान हुए कुल…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर, प्रस्तुत घनाक्षरी की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार. 16,15 =31…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"काफ़िराना (लघुकथा) : प्रकृति की गोद में एक गुट के प्रवेश के साथ ही भयावह सन्नाटा पसर गया। हिंदू और…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मनचाही सभी सदस्यों नमन, आदरणीय तिलक कपूर साहब से लेकर भाई अजय गुप्त 'अजेय' सभी के…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपका कहना सही है, पुराने सदस्यों को भी अब सक्रिय हो जाना चाहिए।"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"<span;>आदरणीय अजय जी <span;>आपकी अभिव्यक्ति का स्वागत है। यह मंच हमेशा से पारस्परिक…"
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सभी साथियों को प्रणाम, आदरणीय सौरभ जी ने एक गंभीर मुद्दे को उठाया है और इस पर चर्चा आवश्यक है।…"
9 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"विषय बहुत ही चुनकर देते हैं आप आदरणीय योगराज सर। पुराने दिन याद आते हैं इस आयोजन के..."
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक रक्ताले सर, प्रस्तुत रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।तीसरी और चौथी पंक्तियों को पढ़ते समय…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सुशील सरना जी, अच्छी रचना है सादर बधाई आपको"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service