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तुम्हें चुप रहना है

तुम्हें चुप रहना है
सीं के रखने हैं होंठ अपने
तालू से चिपकाए रखना है जीभ
लहराना नहीं है उसे
और तलवे बनाए रखना है मखमल के
इन तलवों के नीचे नहीं पहननी कोई पनहियाँ
और न चप्पल
ना ही जीभ के सिरे तक पहुँचने देनी है सूरज की रौशनी

सुन लो ओ हरिया! ओ होरी! ओ हल्कू!
या कलुआ, मुलुआ, लल्लू जो भी हो!
चुप रहना है तुम्हें
जब तक नहीं जान जाते तुम
कि इस गोल दुनिया के कई दूसरे कोनों में
नहीं है ज्यादा फर्क कलम-मगज़ और तन घिसने वालों को
मिलने वाली रोटियों में
न गिनती में और ना ही स्वाद में

चुप रहना है तुम्हें जब तक नहीं जान जाते तुम
कि तुम्हें परजीवियों की तरह देखने वालों और तुम्हारे बीच
असलियत में रिश्ता है एक सहजीवी का
ना तुम्हारे बिना उनके सैंडविच बनेंगे
न उनके बिना चढ़ेगी तुम्हारी दाल

जब तक पांच सालों में एक-दो बार ठर्रा-मुर्गा या कम्बल के बदले
'कोऊ नृप होए हमें का हानि...' जपने से नहीं ऊबते तुम
जब तक नहीं हो जाता तुम्हें भरोसा कि
ना सिर्फ अकेले बल्कि भुने हुए चने होकर भी
तुम फोड़ सकते हो भाड़
झुलसा सकते हो तुम्हें उसमें झोंकने वाले को...

या तुम्हें करना होगा इंतज़ार तब तक
जब तक तुम्हारे कुछ और बच्चे
नहीं बन जाते डॉक्टर
नहीं बन जाते इंजीनियर
नहीं बन जाते अफसर नहीं बन जाते नेता
और बनने के बाद तक नहीं आती उन्हें शर्म
हरिया, हल्कू, कलुआ, मुलुआ या लल्लू की संतान कहाने में...

जब तक नहीं भरते वो आवश्यक जगहों में तुम्हारे मूल नामों की जगह
हरीचंद, हल्केराम, कालनाथ, मूलचंद या लालबिहारी
तब तक चुप ही रहना तुम

वरना तोड़ लेना फिर आस की डोर
अपनी साँसों के संग
या छोड़ देना होने को
होनी के ऊपर
फिर से अपने साथ होते आजन्म अन्याय के लिए
अपने ताउम्र शोषण के लिए...

और फेंक देना अपनी-अपनी जुबानें काल-कोठरी में
बस पहन लेना कोल्हू के बैल जैसे हाथ
धोबी के गधे जैसे पैर....
दीपक मशाल

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Comment

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Comment by Rajeev Mishra on January 3, 2013 at 5:56pm

bahut sundar bhai ji !

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 21, 2012 at 3:27pm

या तुम्हें करना होगा इंतज़ार तब तक 
जब तक तुम्हारे कुछ और बच्चे 
नहीं बन जाते डॉक्टर 
नहीं बन जाते इंजीनियर 
नहीं बन जाते अफसर नहीं बन जाते नेता 
और बनने के बाद तक नहीं आती उन्हें शर्म 
हरिया, हल्कू, कलुआ, मुलुआ या लल्लू की संतान कहाने में...

दिल चीर के रख दिया. 

बधाई.

Comment by MAHIMA SHREE on December 19, 2012 at 11:58am

नमस्कार दीपक जी ..आपकी रचना ने रोम रोम में आक्रोश और वेदना साथ -२ भर दिया और मन में कई सवाल भी .. सदियों से अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने के लिए मानव ने ही दूसरे मानव पे अत्याचार किये उसे गुलाम बना जानवरों से भी बुरे व्यवहार कर उसे मानसिक और शारीरिक तौर कितना प्रतारित किया की वो स्वयं भूल गया वो भी ईश्ववर की श्रेष्ठ रचना है उसे वो सारे अधिकार है .. बहुत-2 बधाई आपको

.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 15, 2012 at 2:30pm

एक जबरदस्त कटाक्ष करते हुए बहुत रोषपूर्ण भावों के साथ बहुत बढ़िया प्रस्तुति हेतु बधाई आपको 

Comment by Dipak Mashal on December 15, 2012 at 4:50am

शुक्रिया प्राची जी, सौरभ जी, सीमा जी और वीनस। जहाँ भी कमी दिखे कृपया निःसंकोच सुझाव देवें, मुझे अच्छा लगेगा। जी सच में अच्छा :)

Comment by वीनस केसरी on December 15, 2012 at 2:56am

शब्द शब्द आक्रोश,

शब्द शब्द वेदना,

शब्द शब्द उलाहना,

शब्द शब्द संताप 

Comment by seema agrawal on December 15, 2012 at 12:42am

एक वर्ग विशेष की पीड़ा को शब्द दर शब्द बयान करती इस रचना के लिए हार्दिक बधाई दीपक जी 

या तुम्हें करना होगा इंतज़ार तब तक 
जब तक तुम्हारे कुछ और बच्चे 
नहीं बन जाते डॉक्टर 
नहीं बन जाते इंजीनियर 
नहीं बन जाते अफसर नहीं बन जाते नेता 
और बनने के बाद तक नहीं आती उन्हें शर्म 
हरिया, हल्कू, कलुआ, मुलुआ या लल्लू की संतान कहाने में...

जब तक नहीं भरते वो आवश्यक जगहों में तुम्हारे मूल नामों की जगह 
हरीचंद, हल्केराम, कालनाथ, मूलचंद या लालबिहारी 
तब तक चुप ही रहना तुम............सटीक और जरूरी शर्त


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 14, 2012 at 7:35pm

जब तक नहीं भरते वो आवश्यक जगहों में तुम्हारे मूल नामों की जगह
हरीचंद, हल्केराम, कालनाथ, मूलचंद या लालबिहारी
तब तक चुप ही रहना तुम

धरातल की बातें करती भावाभिव्यक्ति. वर्णित वर्ग कई पहलुओं से प्रताड़ित होता रहा है. एक पहलू वह भी है जिससे संबंधित उपरोक्त वाक्यांश हैं.

शुभेच्छाएँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 14, 2012 at 6:40pm

मनुष्य के अन्तः की कमजोरी जो उसे चुपचाप बुत बने, अन्याय सहने को विवश करती है, उसके विरुद्ध मनस में उमड़ते आक्रोश की सत्य प्रतिलिपि को शब्दों में  प्रस्तुत करने के लिए बधाई दीपक जी. 

Comment by Dipak Mashal on December 14, 2012 at 4:56pm

शुक्रिया आप सबका।

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