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हैं मोड़ बहुत सारे यूँ तो ...

हैं मोड़ बहुत सारे यूँ तो
पर दिशा मुझे तय करनी है,
पर मैं ही अकेला पथिक नहीं
आशा सच हो ये परखनी है

सुनता ही नहीं कोई मन की
अब खुद से खुद को सुनना है
संयम गर अपना साथी हो
फिर मंजिल पे ही मिलना है

कुछ ख्वाब नहीं सोने देते
हर पल बस करते हैं बातें
शुरुआत लक्छ्य की आज अभी
सूरज की बात ना तकनी है,

वो आता है हर सुबह यहाँ
उसके फेरे में जीवन है
फिर चाँद की बारी आती है
बस शब्द वही कुछ मंथन है

हर एक निभाता रस्मों को
हर एक का जीवन गति में है
बस फेंक तुरुप का तू पत्ता
अब बैठ पवन के घोड़े पर |

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 15, 2012 at 12:13pm

प्रिय सुमन जी बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना बधाई आपको |

Comment by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 12:11pm

आभार केसरी जी

Comment by वीनस केसरी on December 15, 2012 at 2:43am

सुन्दर भावाभिव्यक्ति

Comment by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 10:41pm

shukriya prachi ji


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 14, 2012 at 6:52pm

प्रिय सुमन जी, आपकी कविता के भाव बहुत अच्छे हैं, पर प्रस्तुतिकरण  हेतु  शब्द चयन कुछ और वक़्त मांगता है, ताकि कविता में रस और प्रवाह निर्बाध हो सके.

सुन्दर भावों के लिए ह्रदय से बधाई 

Comment by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 12:46pm

शुक्रिया बागी जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 14, 2012 at 12:44pm

अच्छी रचना सुमन जी, कही कही टंकण की त्रुटी परिलक्षित है, कृपया देख लेना चाहेंगी, बधाई इस अभिव्यक्ति पर |

Comment by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 11:35am

abhaar ajai sir ji

Comment by Dr.Ajay Khare on December 14, 2012 at 11:29am

Suman ji aap ke lekhan me lay he bhav he keep it up

कृपया ध्यान दे...

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