“.....चलो....... चलो हर हाल में चलो ”
पाँव फिसले जमीं पर तो घबराना क्या....
आसमां से कदम तुम मिलाते चलो ...
लाख तोड़े समंदर घरोंदे तो क्या ...
रेत के फिर भी घर तुम बनाते चलो…
ContinueAdded by प्रदीप सिंह चौहान on August 6, 2011 at 4:00pm — 4 Comments
मौसम आया लुभावना मनभावना
चलो सखी झूला झूलें |
झूला झुलाने सखी पी मेरे आये
तन मन हुआ लुभावना
चलो सखी झूला झूलें |…
Added by mohinichordia on August 6, 2011 at 3:28pm — 3 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on August 6, 2011 at 1:30pm — 7 Comments
बरसे पानी
संजीव 'सलिल'
*
रिमझिम रिमझिम बरसे पानी.
आओ, हम कर लें मनमानी.
बड़े नासमझ कहते हमसे
मत भीगो यह है नादानी.
वे क्या जानें बहुतई अच्छा
लगे खेलना हमको पानी.
छाते में छिप नाव बहा ले.
जब तक देख बुलाये नानी.
कितनी सुन्दर धरा लग रही, …
Added by sanjiv verma 'salil' on August 6, 2011 at 10:30am — 6 Comments
दान मनुज का परम धर्म और मानवता का गहना है.
दिखलाना कार्पण्य समय से पहले ही मरना है.
मंदिर के निर्माण हेतु चन्दा देना कोई दान नहीं.
हवन -कुण्ड में अन्न जलाना भी है कोई दान नहीं.
निज तर्पण के लिए विप्र को धन देना भी दान नहीं.
ईश्वर-पूजा की संज्ञा दे भोज कराना दान नहीं.
दान नहीं नाना प्रकार से मूर्ति -पूजन करना है.
दान मनुज का परम धर्म और मानवता का गहना है.
करना मदद सदा निर्धन की दान इसे ही कहते हैं.
जो पर…
ContinueAdded by satish mapatpuri on August 5, 2011 at 12:00am — 6 Comments
बचपन में
एक दिन
एक संटी को
मुँह में दबाकर
मैं गन्ना
समझ बैठी
आज लिखते हुये
फिर भूल से
किसी के पन्ने को
मैं अपना पन्ना
समझ बैठी
न जाने कितनी
होती रहती हैं
मिस्टेक जिंदगी में
कुछ अनजाने में
कुछ नादानी में
फिर आती है
झेंप…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on August 4, 2011 at 6:00pm — 8 Comments
Added by rajkumar sahu on August 4, 2011 at 11:17am — No Comments
एक अश्क गिरा और फूट गया छन से
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 4, 2011 at 10:30am — 1 Comment
हम करते रहे खेतों में अनवरत काम
सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान'
भोर हुई कि चल पड़े डूबके अपने रंग
ले हल कांधो पे और दो बैलों के संग
बहते खून पसीना तज कर अपने मान
सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान' ---१
हैं उपजाते अन्न सब मिलकर खेतों में हम
फिर भी मालियत पे इसके हैं अधिकार खतम
सबकुछ समझ कर भी हम बनते है नादान
सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान' ---२
भूखे हैं हमसब या अपना है पेट…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 4, 2011 at 9:29am — 2 Comments
काँटों से नहीं मुझको तो फूलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.
घबडाते नहीं है अब हम तो गम के आने-जाने से.
हाँ,चौक जरूर जाते है खुशियों के झलक दिखाने से,
अश्कों की आँख-मिचौली में नैनों के सपने टूट गये.
सदा डरते रहे हम गैरों से, अपनों के हाथों लूट गये.
अब तो बदनामों से ज्यादा मक़बूलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.
अफ़सोस,ये जिंदगी दुनिया के रंग में हम ऐसे घूल…
ContinueAdded by Noorain Ansari on August 3, 2011 at 7:30pm — 6 Comments
और बहुत कुछ जग में सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|
आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए||
जी करता है, पिघल मै जाऊं, तेरे साँसों की गरमी में|
अजब सुकून मुझे मिलता है तेरे हाथों की नरमी से||
मै तुझमे मिल जाऊं ऐसे, कोई भी मुझको ढूंढ़ न पाए|
आग बुझाता है जब पानी, ये बरखा क्यों अगन लगाए|
और बहुत कुछ जग में सुन्दर, फिर क्यों तू ही मन को भाये|
जब-जब गिरती नभ से बूँदें , मै पूरा जल जल जाता हूँ|
जी करता है भष्म हो जाऊं, पर तुमको…
Added by आशीष यादव on August 3, 2011 at 6:30pm — 18 Comments
हे पिया, तू अब तो आजा
पुरवा ने ली अंगड़ाई l
सिहर उठा ये तन मन मोरा
है बरखा बहार आई ||
काँप रहा तन ये अपना
बज रहा यूँ ही कंगना |
तनहा तनहा जीते जीते
अब आँख है भर आई ||
हे पिया, तू अब तो आजा
पुरवा ने ली अंगड़ाई ll
सज गए सभी नज़ारे
तन पे गिर रही फुहारें |
धीरे धीरे रुक रुक के
अब तो चल रही पुरवाई ||
हे पिया, तू अब तो आजा
पुरवा ने ली अंगड़ाई…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 3, 2011 at 6:00pm — 2 Comments
दहेज प्रथा पर तमाम लोगों का एकमत राय है कि यह एक अभिशाप है, कि सभ्य समाज पर कलंक है, कि ....... . परन्तु यह सोचने और मंथन करने की बात है कि इतनी ज्यादा बहस, निंदा और कानूनों को बना-बनाकर ढेर लगा देने के बाद भी यह प्रथा समाप्त नहीं हो पा रही है, वरन् नये सिरे से परवान चढ़ रही है, इसके पीछे अवश्य ही कोई ता£कक और गंभीर कारण भी तो रहे होंगे, जिसपर भी ध्यान देना चाहिए. आइए एक नजर डालते है:
1. लड़की पक्ष हमेशा ही खुद से ज्यादा क्वालिफाई और सम्पन्न तबका का हिस्सा बनाना चाहता है, दुर्भाग्य से…
Added by Rohit Sharma on August 2, 2011 at 7:14pm — 1 Comment
एक समय रवि साथ लिए सब,
बागी गणेश प्रीतम जी आयो,
ओबीओ का जब जनम भयो तब,
ये ख़ुशी लिए बिजय जी आयो,
सभे मिली जब किये बिनती,
योगराज जी प्रधान बने हमारो,
को नहीं जानत हैं ओबीओ पर,
पाठ साहित्य पर होत बिचारो!
गजल की बात राणाजी शुरू कियो,
तब आगे बढ़ी तिलकराज जी आयो,
योगराज जी साथ दियो तब,
अम्बरीश जी किये बिचारो,
शुरू किये सब मिली मुशायरा,
सौरभ जी और अभिनव हमारो.
को नहीं जानत हैं ओबीओ पर,
पाठ साहित्य पर होत…
Added by Rash Bihari Ravi on August 1, 2011 at 8:30pm — 15 Comments
अश्कों से चश्में-तर कर गया कोई।
वीरान सारा शहर कर गया कोई।।
सारा जहाँ मुसाफिर है तो फिर क्या मलाल।
गर किनारा बीच सफर कर गया कोई।।
नावाकिफ थे जो राहे-खुलूस से।
उन्हें इल्म पेशे-नजर कर गया कोई।।
जिनकी जुबाँ से नफरत की बू आती थी।
उन्हें उलफत से मुअतर कर गया कोई।।
जिंदगी का सफर काटे नहीं कटता चंदन।
तन्हा जिसे हमसफर कर गया कोई।।
नेमीचंद पूनिया चंदन
Added by nemichandpuniyachandan on August 1, 2011 at 5:00pm — 3 Comments
ग़ज़ल - ग़मों का दौर हूँ मैं
ग़मों का दौर हूँ मैं ,
ग़ज़ल है और हूँ मैं |
दशहरी गंध तुम हो ,
तुम्हारी बौर हूँ मैं |
तेरा हर तिल…
ContinueAdded by Abhinav Arun on August 1, 2011 at 4:19pm — 15 Comments
मुक्तिका:
..... बना दें
संजीव 'सलिल'
*
'सलिल' साँस को आस-सोहबत बना दें.
जो दिखलाये दर्पण हकीकत बना दें..
जिंदगी दोस्ती को सिखावत बना दें..
मदद गैर की अब इबादत बना दें.
दिलों तक जो जाए वो चिट्ठी लिखाकर.
कभी हो न हासिल, अदावत बना दें..
जुल्मो-सितम हँस के करते रहो तुम.
सनम क्यों न इनको इनायत बना दें?
रुकेंगे नहीं पग हमारे कभी भी.
भले खार मुश्किल बगावत बना दें..
जो खेतों में करती हैं मेहनत…
Added by sanjiv verma 'salil' on August 1, 2011 at 11:30am — 4 Comments
साथियों !
हमारे संज्ञान में लाया गया है कि कुछ सदस्यों को ओ बी ओ लोगिन ( sign in ) करने में समस्या होती है | इस सम्बन्ध में कहना है कि ....
प्रथम बार sign up कर जब आप ओ बी ओ सदस्यता ग्रहण कर लेते है तो उसके बाद आपको केवल sign in करनी होती है ध्यान रखे sign up नहीं, sign up सिर्फ एक बार सदस्यता ग्रहण करने हेतु प्रयोग किया जाता है |
sign in करने हेतु दो डाटा कि आवश्यकता होती है ...
१- आपका इ-मेल आई डी, जिसका प्रयोग आप सदस्यता ग्रहण करने में प्रयोग…
ContinueAdded by Admin on July 31, 2011 at 9:00pm — 5 Comments
Added by Rohit Singh Rajput on July 31, 2011 at 4:53pm — 3 Comments
Continueधीरे धीरे इस तरहा बदला घर का हाल!
पहले दिल मे फिर उठी आँगन मे दीवार,
घर के खुशियो को लगा जाने किस का श्राप!
खेत बाते घर बता और …
Added by jahir on July 31, 2011 at 2:00pm — No Comments
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