बरसे पानी
संजीव 'सलिल'
*
रिमझिम रिमझिम बरसे पानी.
आओ, हम कर लें मनमानी.
बड़े नासमझ कहते हमसे
मत भीगो यह है नादानी.
वे क्या जानें बहुतई अच्छा
लगे खेलना हमको पानी.
छाते में छिप नाव बहा ले.
जब तक देख बुलाये नानी.
कितनी सुन्दर धरा लग रही,
जैसे ओढ़े चूनर धानी.
काश कहीं झूला मिल जाता,
सुनते-गाते कजरी-बानी.
'सलिल' बालपन फिर मिल पाये.
बिसराऊँ सब अकल सयानी.
*
Comment
***आदरणीय आचार्य जी आपकी सरस-गंभीरता आपके प्रति आदर के भाव है.!बहुत ही सुंदर रचना***********
आचार्य जी , आपकी रचना मुझे बचपन की सैर करा दी , याद आ गया मुझको गुजरा ज़माना , बहुत ही सुंदर रचना , साधुवाद |
satish ji, saurabh ji, arun ji
aapkee gungrahakata ko naman.
हम तो खो गए आचार्यवर बचपन में यही इस गीत की सफलता है वाह !!
आदरणीय आपकी सरस-गंभीरता आपके प्रति आदर के भाव जगाती है.
//'सलिल' बालपन फिर मिल पाये.
बिसराऊँ सब अकल सयानी.//
बालपन में सभी सयाना हो जाने की बात कहते थे. पर सही तो ये है कि इस ’सयानेपन’ से कोई खुश रहता नहीं है.
बार-बार दिल उपट उठता है ...".. चलो मन गंग-जमुन के तीर.. "
'सलिल' बालपन फिर मिल पाये.
बिसराऊँ सब अकल सयानी.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.साधुवाद स्वीकार करें.
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