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एक अश्क गिरा--ग़ज़ल

एक अश्क गिरा और फूट गया छन से

न हुई आवाज़ कोई रूठ गया तन से 
निकल पड़ा था सहर-ए-रौशनी  लिए हुए 
हो रही क्यूँ शाम कौंध रहा मन से 
पास थी बाज़ी एक हाँथ में यूँ  ज़रा 
पत्ते उलट गए हैं अपनीं ही रन से 
थी उलझनें मन में कि कोई थाम ले    
गिर गया सितारा यूँ फलक-ए-चमन से 
है कारवां यारों कहीं तो थमेगा 
लिखा जो कागज पे यूँ "रवि" कि कलम से
                       *अतेन्द्र कुमार सिंह "रवि"*
**Created on 1 Jan 2010**

 

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 6, 2011 at 9:49am

बढ़िया प्रयास है, अंतिम शे'र मे काफिया गलत कर गए....छन, तन, मन, रन चमन आदि काफिया के साथ कलम काफिया नहीं लगेगा |

कृपया ध्यान दे...

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