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दहेज प्रथा: बीच बहस में

दहेज प्रथा पर तमाम लोगों का एकमत राय है कि यह एक अभिशाप है, कि सभ्य समाज पर कलंक है, कि ....... . परन्तु यह सोचने और मंथन करने की बात है कि इतनी ज्यादा बहस, निंदा और कानूनों को बना-बनाकर ढेर लगा देने के बाद भी यह प्रथा समाप्त नहीं हो पा रही है, वरन् नये सिरे से परवान चढ़ रही है, इसके पीछे अवश्य ही कोई ता£कक और गंभीर कारण भी तो रहे होंगे, जिसपर भी ध्यान देना चाहिए. आइए एक नजर डालते है:
1. लड़की पक्ष हमेशा ही खुद से ज्यादा क्वालिफाई और सम्पन्न तबका का हिस्सा बनाना चाहता है, दुर्भाग्य से ऐसे तबकों की संख्या कम है. फलतः एक ही नौकरी करने वाले या सम्पन्न लड़के लिए अनेक रिश्ते आते है. ऐसे में दहेज की मांग ही उसे किसी एक से जुड़ने में मदद देती है. इसके उलट जिस लड़के के पास नौकरी नहीं है, उसके यहां लड़की वाले झांकते तक नहीं, भले ही वह बिना दहेज के शादी करने पर सहमत हों, लोग उसकी खिल्ली ही उड़ाते हैं. ठीक वैसे ही जैसे क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो. अर्थात्, दहेज नहीं लेना सिर्फ उसे ही शोभा देता है जिसे पास अथाह दौलत हो, उसे नहीं जिसे पास दौलत नहीं हो.
2. कानून में दर्ज है, पिता के सम्पत्ति में बेटी का भी हिस्सा होता है. जब लड़की शादी कर दूसरे घर चली जाती है तब उसे अपना हिस्सा ही दहेज के रूप में मिलता है. अगर पिता के सम्पत्ति में बेटी को हिस्सा मिलना जायज है तो उसे अपना मिले हिस्सों को घृणित भाव से देखना किस नियम के तहत नाजायज है ?
3. दहेज प्रथा खासकर उन तबके के लड़कों के लिए वरदान बन कर सामने आती है, जिसके पास अथाह दौलत नहीं है चाहे वह विरासत से प्राप्त हो या खुद की कमाई से (नौकरी वगैरह करके). दुर्भाग्य से ऐसे तबकों से संख्या काफी है.
  मुझे लगता है कि उन अनेक कारणों में से कुछ कारण ही गिना पाया हूँ जिसकारण यह प्रथा समाज में जड़ जमाये हुये है और सामान्य तबकों के लिए दुल्हन की व्यवस्था हो पाती है, अन्यथा यह कोई दूर की बात नहीं है जब अनेक गरीब आदमी को दुल्हन प्राप्त नहीं हो पाती थी और आजीवन कुंवारे रहने का दंश झेलते थे. तब कोई लड़की बाला क्यों नहीं उनके लिए दुल्हन के लिए सोचता था ? शायद गरीब होना उनके लिए अभिशाप था. जिस कारण हर कोई जीवनभर उसका खिल्ली उड़ाता रहता था. मैं समझता हूँ उन लोगों के लिए दहेज वरदान है.

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Comment by आशीष यादव on August 3, 2011 at 7:12pm

ek saarthak charcha ka wishay hai ye| yaha is baat ki charcha karna bahut uchit hai.

mujhe wishwaas hai ki aur log bhi apni anmol raay yaha pe rakhenge.

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