For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दहेज प्रथा: बीच बहस में

दहेज प्रथा पर तमाम लोगों का एकमत राय है कि यह एक अभिशाप है, कि सभ्य समाज पर कलंक है, कि ....... . परन्तु यह सोचने और मंथन करने की बात है कि इतनी ज्यादा बहस, निंदा और कानूनों को बना-बनाकर ढेर लगा देने के बाद भी यह प्रथा समाप्त नहीं हो पा रही है, वरन् नये सिरे से परवान चढ़ रही है, इसके पीछे अवश्य ही कोई ता£कक और गंभीर कारण भी तो रहे होंगे, जिसपर भी ध्यान देना चाहिए. आइए एक नजर डालते है:
1. लड़की पक्ष हमेशा ही खुद से ज्यादा क्वालिफाई और सम्पन्न तबका का हिस्सा बनाना चाहता है, दुर्भाग्य से ऐसे तबकों की संख्या कम है. फलतः एक ही नौकरी करने वाले या सम्पन्न लड़के लिए अनेक रिश्ते आते है. ऐसे में दहेज की मांग ही उसे किसी एक से जुड़ने में मदद देती है. इसके उलट जिस लड़के के पास नौकरी नहीं है, उसके यहां लड़की वाले झांकते तक नहीं, भले ही वह बिना दहेज के शादी करने पर सहमत हों, लोग उसकी खिल्ली ही उड़ाते हैं. ठीक वैसे ही जैसे क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो. अर्थात्, दहेज नहीं लेना सिर्फ उसे ही शोभा देता है जिसे पास अथाह दौलत हो, उसे नहीं जिसे पास दौलत नहीं हो.
2. कानून में दर्ज है, पिता के सम्पत्ति में बेटी का भी हिस्सा होता है. जब लड़की शादी कर दूसरे घर चली जाती है तब उसे अपना हिस्सा ही दहेज के रूप में मिलता है. अगर पिता के सम्पत्ति में बेटी को हिस्सा मिलना जायज है तो उसे अपना मिले हिस्सों को घृणित भाव से देखना किस नियम के तहत नाजायज है ?
3. दहेज प्रथा खासकर उन तबके के लड़कों के लिए वरदान बन कर सामने आती है, जिसके पास अथाह दौलत नहीं है चाहे वह विरासत से प्राप्त हो या खुद की कमाई से (नौकरी वगैरह करके). दुर्भाग्य से ऐसे तबकों से संख्या काफी है.
  मुझे लगता है कि उन अनेक कारणों में से कुछ कारण ही गिना पाया हूँ जिसकारण यह प्रथा समाज में जड़ जमाये हुये है और सामान्य तबकों के लिए दुल्हन की व्यवस्था हो पाती है, अन्यथा यह कोई दूर की बात नहीं है जब अनेक गरीब आदमी को दुल्हन प्राप्त नहीं हो पाती थी और आजीवन कुंवारे रहने का दंश झेलते थे. तब कोई लड़की बाला क्यों नहीं उनके लिए दुल्हन के लिए सोचता था ? शायद गरीब होना उनके लिए अभिशाप था. जिस कारण हर कोई जीवनभर उसका खिल्ली उड़ाता रहता था. मैं समझता हूँ उन लोगों के लिए दहेज वरदान है.

Views: 536

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष यादव on August 3, 2011 at 7:12pm

ek saarthak charcha ka wishay hai ye| yaha is baat ki charcha karna bahut uchit hai.

mujhe wishwaas hai ki aur log bhi apni anmol raay yaha pe rakhenge.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया

पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।घुसें समझ कर सौड़ ,…See More
6 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service