For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - अश्कों से चश्में-तर कर गया कोई

अश्कों से चश्में-तर कर गया कोई।
वीरान सारा शहर कर गया कोई।।

सारा जहाँ मुसाफिर है तो फिर क्या मलाल।
गर किनारा बीच सफर कर गया कोई।।

नावाकिफ थे जो राहे-खुलूस से।
उन्हें इल्म पेशे-नजर कर गया कोई।।

जिनकी जुबाँ से नफरत की बू आती थी।
उन्हें उलफत से मुअतर कर गया कोई।।

जिंदगी का सफर काटे नहीं कटता चंदन।
तन्हा जिसे हमसफर कर गया कोई।।

नेमीचंद पूनिया चंदन

Views: 469

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 3, 2011 at 9:35pm

अच्छी कहन की ग़ज़ल के लिये दिली दाद ..

मतले से जो कुछ तारी हुआ है इसके लिये अल्फ़ाज़ नहीं हैं, मु. नेमीचंदजी.

क्या कहा जाय कि किसी के लिये किसी शहर का वीरान नज़र आना क्या होता है?  मानो, भरे-पूरे किसी बाग़ में किन्हीं ठहरी हुयी आँखों का हरसूँ बेनूरी देखना. 


सारा जहाँ मुसाफिर है तो फिर क्या मलाल।
गर किनारा बीच सफर कर गया कोई।।
कुछ मिल गये तो हो गये घड़ी भर को हमसफ़र.. क्या मलाल फिर, किसी से क्या शिकवा कोई..


जिनकी जुबाँ से नफरत की बू आती थी।
उन्हें उलफत से मुअतर कर गया कोई।।
उस फ़रिश्ते के लिये दिल से दुआ आती है. बहुत खूब. .. बहुत खूब.


जिंदगी का सफर काटे नहीं कटता चंदन।
तन्हा जिसे हमसफर कर गया कोई।।

इस मक्ते पर बेहतर कुछ न कहें हम.  ..

हरपल कभी था रोज़ा-रोज़ा..!! .. आज रोज़ का  रोज़ा, रोज़ा, रोज़ा. ..

 

नेमीचंद साहब, दिल से आपने जो कुछ कहा है..  इस कहन से पहले आपने कितना सहा है... 

सादर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 3, 2011 at 9:07pm

अश्कों से चश्में-तर कर गया कोई।
वीरान सारा शहर कर गया कोई।।

वाह वाह पुनिया साहिब, बहुत ही खुबसूरत मतला कहा है आपने, कितना अजीब है ना किसी एक के ना रहने से पूरा शहर ही वीराना लगता है |


सारा जहाँ मुसाफिर है तो फिर क्या मलाल।
गर किनारा बीच सफर कर गया कोई।।
सुन्दर शे'र , उम्द्दा कहन, सच कहा आपने, सभी तो मुसाफिर ही है यहाँ |


नावाकिफ थे जो राहे-खुलूस से।
उन्हें इल्म पेशे-नजर कर गया कोई।।
वाह वाह, बेहतरीन शे'र |


जिनकी जुबाँ से नफरत की बू आती थी।
उन्हें उलफत से मुअतर कर गया कोई।।
आय हाय, क्या बात कह गए जनाब, इस ग़ज़ल की सबसे खुबसूरत शे'र , नफरत करने वालों के दिलों में प्यार भर दूँ |


जिंदगी का सफर काटे नहीं कटता चंदन।
तन्हा जिसे हमसफर कर गया कोई।।

बेहतरीन मक्ता से ग़ज़ल को समाप्त किया आपने, पुरकसर ग़ज़ल हेतु बधाई स्वीकार करे जनाब |

Comment by आशीष यादव on August 3, 2011 at 7:31pm

kamaal ki ghazal,

aur ye she'r bahut achchha hai ki

जिनकी जुबाँ से नफरत की बू आती थी।
उन्हें उलफत से मुअतर कर गया कोई।।

bahut bahut badhai.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service