(221 2121 1221 212)
जाना है एक दिन न मगर फिक्र कर अभी
हँस,खेल,मुस्कुरा तू क़ज़ा से न डर अभी
आयेंगे अच्छे दिन भी कभी तो हयात में
मर-मर के जी रहे हैं यहाँ क्यूँँ बशर अभी
हम वो नहीं हुज़ूर जो डर जाएँँ चोट से
हमने तो ओखली में दिया ख़ुद ही सर अभी
सच बोलने की उसको सज़ा मिल ही जाएगी
उस पर गड़ी हुई है सभी की नज़र अभी
हँस लूँ या मुस्कुराऊँ , लगाऊँ मैं क़हक़हे
ग़लती से आ गई है ख़ुशी मेरे घर…
Added by सालिक गणवीर on June 30, 2020 at 8:00am — 14 Comments
212 / 1222 / 212 / 1222
दुनिया के गुलिस्ताँ में फूल सब हसीं हैं पर
एक मुल्क ऐसा है जो बला का है ख़ुद-सर
लाल जिसका परचम है इंक़लाब नारा है
ज़ुल्म करने में जिसने सबको जा पछाड़ा है
इस जहान का मरकज़ ख़ुद को गो समझता है
राब्ता कोई दुनिया से नहीं वो रखता है
अपनी सरहदों को वो मुल्क चाहे फैलाना
इसलिए वो हमसायों से है आज बेगाना
बात अम्न की करके मारे पीठ में खंजर
और रहनुमा उसके झूट ही बकें दिन भर
इंसाँ की तरक़्क़ी…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on July 3, 2020 at 1:00am — 10 Comments
गौर वर्ण पर नाचती, सावन की बौछार।
श्वेत वसन से झाँकता, रूप अनूप अपार।। १
चम चम चमके दामिनी, मेघ मचाएं शोर।
देख पिया को सामने, मन में नाचे मोर।।२
छल छल छलके नैन से, यादों की बरसात।
सावन की हर बूँद दे, अंतस को आघात।।३
सावन में प्यारी लगे, साजन की मनुहार।
बौछारों में हो गई, इन्कारों की हार।। ४
कोरे मन पर लिख गईं, बौछारें इतिहास।
यौवन में आता सदा, सावन बनकर प्यास।।५
भावों की नावें चलीं, अंतस उपजा प्यार।
बौछारों…
Added by Sushil Sarna on June 30, 2020 at 9:30pm — 4 Comments
बहरे मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़
221 / 2121 / 1221 / 212
बद-हालियों का फिर वही मंज़र है और मैं
इक आज़माइशों का समंदर है और मैं [1]
अरमान दिल के दिल में घुटे जा रहे हैं सब
महरूमियों का एक बवंडर है और मैं…
ContinueAdded by रवि भसीन 'शाहिद' on June 16, 2020 at 11:54am — 17 Comments
ईद कैसी आई है ! ये ईद कैसी आई है !
ख़ुश बशर कोई नहीं, ये ईद कैसी आई है !
जब नमाज़े - ईद ही, न हो, भला फिर ईद क्या,
मिट गये अरमांँ सभी, ये ईद कैसी आई है!
दे रहा कोरोना कितने, ज़ख़्म हर इन्सान को,
सब घरों में क़ैैद हैं, ये ईद कैसी आई है!
गर ख़ुदा नाराज़ हम से है, तो फिर क्या ईद है,
ख़ौफ़ में हर ज़िन्दगी, ये ईद कैसी आई है!
रंज ओ ग़म तारी है सब पे, सब परीशाँ हाल हैं,
फ़िक्र में रोज़ी की सब, ये ईद कैसी आई…
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 25, 2020 at 6:00am — 9 Comments
2122 2122 212
.
देख साँसों में बसा है ओ बी ओ
मेरी क़िस्मत में लिखा है ओ बी ओ
कितने आए और कितने ही गए
शान से अब तक खड़ा है ओ बी ओ
बढ़ गई तौक़ीर मेरी और भी
तू मुझे जब से मिला है ओ बी ओ
हों वो 'बाग़ी' या कि भाई 'योगराज'
तू सभी का लाडला है ओ बी ओ
भाई 'सौरभ' शान से कहते…
Added by Samar kabeer on April 1, 2020 at 9:00pm — 18 Comments
(1222 1222 1222 1222 )
छुड़ाना है कभी मुमकिन बशर का ग़म से दामन क्या ?
ख़िज़ाँ के दौर से अब तक बचा है कोई गुलशन क्या ?
**
कभी आएगा वो दिन जब हमें मिलकर सिखाएंगे
मुहब्बत और बशरीयत यहाँ शैख़-ओ-बरहमन क्या ?
**
क़फ़स में हो अगर मैना तभी क़ीमत है कुछ उसकी
बिना इस रूह के आख़िर करेगा ख़ाना-ए-तन* क्या ?(*शरीर का भाग )
**
निग़ाह-ए-शौक़ का दीदार करने की तमन्ना है
उठेगी या रहेगी बंद ये आँखों की चिलमन क्या ?
**
अगर बेकार हैं तो काम ढूंढे या करें बेगार…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 18, 2020 at 12:00am — 6 Comments
१२२२ /१२२२/ १२२२ /१२२२/
*
कभी कतरों में बँटकर तो कभी सारा गिरा कोई
मिला जो माँ का आँचल तो थका हारा गिरा कोई।१।
*
कि होगी कामना पूरी किसी की लोग कहते हैं
फलक से आज फिर टूटा हुआ तारा गिरा कोई।२।
*
गमों की मार से लाखों सँभल पाये नहीं लेकिन
सुना हमने यहाँ खुशियों का भी मारा गिरा कोई।३।
*
किसी आजाद पन्छी को न थी मन्जूर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2020 at 6:17am — 7 Comments
(1)
सुनी सुनाई बात पर, मत करना विश्वास ।
चक्कर में गौमूत्र के, थम ना जाए श्वास ।।
(2)
कोरोना से तेज अब, फैल रही अफ़वाह ।
सोच समझ कर पग रखो, कठिन बहुत है राह ।।
(3)
कोरोना के संग यदि, लड़ना है अब जंग ।
धरना-वरना बस करो, बंद करो सत्संग ।।
(4)
साफ सफाई स्वच्छता, सजग रहें दिन रात ।
दें साबुन से हाथ धो, कोरोना को मात ।
(5)
मुश्किल के इस दौर में, मत घबराओ यार ।
बस वैसा करते रहो, जो कहती सरकार ।।
(मौलिक एवं…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2020 at 10:00am — 4 Comments
तृप्ति
चहुँ ओर उलझा कटा-पिटा सत्य
कितना आसान है हर किसी का
स्वयं को क्षमा कर देना
हो चाहे जीवन की डूबती संध्या
आन्तरिक द्वंद्व और आंदोलन
मानसिक सरहदें लाँघते अशक्ति, विरोध
स्वयं से टकराहट
व्यक्तित्व .. यंत्रबद्ध खंड-खंड
जब देखो जहाँ देखो हर किसी में
पलायन की ही प्रवृत्ति
एक रिश्ते से दूसरे ...
एक कदम इस नाव
एक ... उस…
ContinueAdded by vijay nikore on May 13, 2020 at 5:30am — 4 Comments
रमल मुसम्मन सालिम मख़्बून महज़ूफ़ / महज़ूफ़ मुसक्किन
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़इलुन/फ़ेलुन
2122 1122 1122 112 / 22
ये सफ़र है बड़ा दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे
राह लगने लगी दीवार ख़ुदा ख़ैर करे [1]
इस किनारे तो सराबों के सिवा कुछ भी नहीं
देखिए क्या मिले उस पार ख़ुदा ख़ैर करे [2]
लोग खाते थे क़सम जिसकी वही ईमाँ अब
बिक रहा है सर-ए-बाज़ार ख़ुदा ख़ैर करे [3]
ये बग़ावत पे उतर आएँगे जो उठ बैठे
सो रहें हाशिया-बरदार ख़ुदा ख़ैर करे…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 20, 2020 at 7:00pm — 16 Comments
कान और कांव कांव
*****
एक आदमी(नकाब में) :तेरे कान कौवे ले गए।
दूसरा:एं?
पहला:और क्या?वो देखो, कौवे उड़ते जा रहे हैं।
दूसरा व्यक्ति दो कौवों के पीछे दौड़ने लगा। उसके पीछे एक एक कर लोग दौड़ने लगे। कारवां बन गया....गुबार देखते बनता था ... कारवां के पिछले हिस्से में दौड़ते हांफते लोग एक दूसरे से सवाल करते कि आखिर वे कहां जा रहे हैं,क्या कर रहे हैं? हां, आगे के हिस्से की आवाज में आवाज जरूर मिलाते कि ' वापस दो,वापस दो...।' कोई कोई तो ' वापस लो..वापस लो..' की भी आवाज…
Added by Manan Kumar singh on January 11, 2020 at 2:58pm — 6 Comments
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122
धमनियों में दौड़ता यूँ तो सदा है ।।
रक्त है जो देश हित में खोलता है ।।
हौसला उस वीर का देखो ज़रा तुम ।
गोलियों की धार में सीना तना है ।।…
ContinueAdded by प्रशांत दीक्षित 'प्रशांत' on January 25, 2020 at 5:33pm — 3 Comments
अतुकांत कविता : प्रगतिशील
अकस्मात हम जा पहुँचे
एक लेखिका की कविताओं पर
जिसमे प्रमुखता से उल्लेखित थे
मर्द-औरत के गुप्त अंगों के नाम
लगभग सभी कविताओं में...
पूरी तरह से किया गया था निर्वहन
उस परंपरा को
जहाँ दी जाती हैं गालियाँ
समूची मर्द जाति को
एक ही कटघरे में खड़ा कर
प्रस्तुत किया जाता है विशिष्ट उदाहरण
चंद मानसिक विक्षिप्तों…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 30, 2020 at 7:30pm — 6 Comments
नियति का आशीर्वाद
हमारे बीच
यह चुप्पी की हलकी-सी दूरी
जानती हो इक दिन यह हलकी न रहेगी
परत पर परत यह ठोस बनी
धातु बन जाएगी
तो क्या नाम देंगे हम उस धातु को ?…
ContinueAdded by vijay nikore on January 27, 2020 at 12:30pm — 4 Comments
आओ और निकट से देखो
हिलोरें लेते इस पारावार को
हमारा जीवन भी ऐसा ही है
नीर जैसा स्वच्छ और निर्मल
जब पयोधि क़ी लहरें छूती हैं
रेत क़ी फ़ैली हुई कगार को
तब वह समेट लेती सब कुछ
और ले जाती है पयोनिधी में
हम मनुष्य भी तो ऐसे ही हैं
जब हम प्रेम में होते हैं तब
ढूंढते रहते हैं बस एक साहिल
ताकि समेट सकें स्वयं में सब कुछ
किंतु उदधि और मनुज क़ा प्रेम
उदर में ज्य़ादा काल नहीं…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 2, 2020 at 12:30pm — 6 Comments
स्वप्न-मिलन
रात ... कल रात
कटने-पिटने के बावजूद
बड़ी देर तक उपस्थित रही
नींद के धुँधलके एकान्त में
पिघलते मोम-सा
कोई परिचित सलोना सपना बना…
ContinueAdded by vijay nikore on January 7, 2020 at 6:30am — 8 Comments
(221 2121 1221 212)
(बहर मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़)
अब के अजीब रंग में आया है जनवरी
ग़म सब पुराने साथ में लाया है जनवरी
बे-नूर सुब्ह-ओ-शाम हैं वीरां हैं रास्ते
तू भी किसी के ग़म का सताया है जनवरी
ना दिन में आफ़्ताब न महताब रात में
मत पूछिये कि कैसे निभाया है जनवरी
क़हर-ओ-सितम है ठंड का जारी उसी तरह
कोहरा-ओ-धुंद और भी लाया है जनवरी
शादाब ना शजर हों तो क्या लुत्फ़-ए-ज़िन्दगी
तुझको सितम…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on January 7, 2020 at 11:41am — 6 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
पर्दा सलीके से बहुत मकसद पे डाल कर
वो लाये सबको देखिए घर से निकाल कर।१।
कितना किया अहित है यूँ अपने ही देश का
लोगों ने उसके नाम पर पत्थर उछाल कर।२।
वंशज उन्हीं के कर रहे जर्जर इसे यहाँ
रखना जो कह गये थे ये कश्ती सँभाल कर।३।
कर्तब तेरे किसी को यूँ आते समझ नहीं
तू भी निजाम नित नया मत अब कमाल कर।४।
कर ली है पाँच साल यूँ नेतागरी बहुत
बच्चों सरीखा…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2020 at 4:26pm — 11 Comments
Added by विमल शर्मा 'विमल' on October 16, 2019 at 12:59pm — 7 Comments
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