नई नई कुछ परिभाषाएँ, राष्ट्र-प्रेम की आओ गढ़ लें।
लेकिन आगे कैसे बढ़ लें?
मातृभूमि के प्रति श्रद्धा हो, यह परिभाषा है अतीत की।
महिमामंडन, मौन समर्थन परिभाषा है नई रीत की।
अनुचित, दूषित जैसे भी हों निर्णय, बस सम्मान करें सब।
हम भारत के धीर-पुरुष हैं, कष्ट सहें, यशगान करें सब।
चित्र वीभत्स मिले जो कोई,
स्वर्ण फ्रेम उस पर भी मढ़ लें।
मर्यादा के पृष्ट खोलकर, अंकित करते भ्रम का लेखा।
राष्ट्रवाद का कोरा डंका, निज…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 31, 2016 at 11:30pm — 23 Comments
Added by Manan Kumar singh on December 31, 2016 at 11:15pm — 18 Comments
दुःख बिसराये
सुख को लाये
ऐसा गीत गाऊँ मैं
खट्टी मीठी यादों को
थोड़ा सा गुन गुनाऊं मैं
दूर खड़ा पर्वत पुकारे
चलकर उसतक जाऊं मैं
बादलों से बरसे पानी
झूम झूम कर नाचूँ मैं
खेत बुलाये, परिंदे पुकारें
बोली उनकी समझूँ मैं
नाच उठे मनवा मेरा
गीत ऐसा कोई गाऊँ मैं |
बहती नदी , बहता झरना
कलकल इनकी सुन लूँ मैं
किनारे से टकराती लहरों से
कुछ देर बातें कर लूँ मैं
देखकर वहां गोरी कलाई…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 31, 2016 at 9:30pm — 19 Comments
साल इक जाए प्यास देकर,
साल इक आए आस लेकर,
संग हम इनके
खिलखिलाएं,
आओ चलो
सपने फिर सजाऐं...
कोई यादों की खिड़कियों से
आए औ' धड़कन मुस्कुरा दे,
बिन कहे कहने जब लगे वो
अपने दिल के सारे इरादे,
ऐसा इक मीठा सा तराना
अनसुना करने का बहाना,
छोड़ कर
धुन ये गुनगुनाएं,
आओ चलो
सपने फिर सजाऐं...
तोड़ कर बंधन रोज भागें
थाम कर उँगली कब चली हैं,
इनका अम्बर ही है ठिकाना
ख्वाहिशें कितनी मनचली हैं,…
Added by Dr.Prachi Singh on December 31, 2016 at 8:30pm — 12 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on December 31, 2016 at 1:22pm — 17 Comments
बहर 1222 1222 1222 1222
करें स्वागत सभी मिल के, नये इस वर्ष सतरह का;
नये सपने नये अवसर, नया ये वर्ष लाएगा।
करें सम्मान इसका हम, नई आशा बसा मन में;
नई उम्मीद ले कर के, नया ये साल आएगा।
मिला के हाथ सब से ही, सभी को दें बधाई हम;
जहाँ हम बाँटते खुशियाँ, वहीं बाँटें सभी के ग़म।
करें संकल्प सब मिल के, उठाएँगे गिरें हैं जो;
तभी कुछ कर गुजरने का, नया इक जोश छाए गा।
दिलों में मैल है बाकी, पुराने साल का कुछ गर;
मिटाएँ उसको पहले हम, नये…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on December 31, 2016 at 12:00pm — 12 Comments
Added by Manan Kumar singh on December 31, 2016 at 8:39am — 2 Comments
Added by Manan Kumar singh on December 31, 2016 at 8:30am — 12 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 30, 2016 at 8:43pm — 11 Comments
ग़ज़ल (दिल के आगे हमें सर झुकाना पड़ा )
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फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन
दिल के आगे हमें सर झुकाना पड़ा |
इक सितम गार से दिल लगाना पड़ा |
चश्मे नम से न खुल जाए राज़े वफ़ा
सोच कर यह हमें मुस्कराना पड़ा |
प्यार की इक नज़र की ही उम्मीद में
उम्र भर संग दिल से निभाना पड़ा |
दर्स ज़ालिम ले अंज़ामे फिरओन से
ज़ालिमों को भी दुनिया से जाना पड़ा…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 30, 2016 at 8:25pm — 9 Comments
ज़िन्दगी ..... (क्षणिका )
हो गया
खामोश बशर
उलझनें
सुलझाने के
फेर में
एक
मकड़ी से
शर्मिंदा
हो गयी
ज़िन्दगी
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 30, 2016 at 2:50pm — 7 Comments
चले भी आओ की थोड़ी सी प्रीत निभा लें
वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें
कहना यह भी था कि
जाते साल के इतने तो उधार बाकी हैं
कुछ मुझ पर कुछ तुम पर उपकार बाकी हैं
शुकराने की सुरमय सरगम सजा लें
वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें
कहना यह भी था कि
कोई वादा अभी भी अधूरा सा है
आँखों में उम्मीद का चूरा सा है
वादे की हदों की हदें ही मिटा लें
वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें
कहना यह भी था कि
कुछ चुभने हैं बाकी जो कसकती…
Added by amita tiwari on December 30, 2016 at 4:11am — 6 Comments
अपनों से ...
सपने
अक्सर
तारों की तरह
गिरकर
टूट जाते हैं
चीख उठते हैं
आँखों में
ख़ामोश आंसू
जब
अपने
अपनों से
रूठ जाते हैं
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 29, 2016 at 5:57pm — 6 Comments
Added by Arpana Sharma on December 29, 2016 at 5:30am — 8 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on December 28, 2016 at 11:59pm — 10 Comments
अँधेरा हो गया था
मेले से लौटने में
जब बैलगाड़ी के पहिये में
फंस गया था
मेरी बेटी का दुपट्टा
जो पहिये के घूर्णन के साथ-साथ
कसता गया
मेरी बेटी के गले में
और तब गया सबका ध्यान
जब घुटी -घुटी सी चीख
निकली उसके मुख से
हठात बैलों की लगाम
खींची गाडीवान ने
और बैल पैर उठाकर
पीछे की और धसके
पहिये में फंसे दुपट्टे को
आहिस्ता से निकाल कर
छुड़ाया गया उसका गला
उस काल-फंद…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 28, 2016 at 8:20pm — 17 Comments
कह्र ...
थक गयी है
लबों पे हंसी
शायद लब
आडम्बर का ये बोझ
और न सहन कर पाएंगे
संग अंधेरों के
ये भी चुप हो जाएंगे
कफ़स में कहकहों के
दर्द बेवफाई का
ये छुपा न पाएंगे
बावज़ूद
लाख कोशिशों के
ये
गुज़रे हुए
लम्हों की आतिश से
बंद पलकों से
पिघल कर
तकिये को
गीला कर जाएंगे
सहर की पहली शरर पे
रिस्ते ज़ख्मों का
कह्र लिख जाएंगे
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 28, 2016 at 5:45pm — 14 Comments
मैं भुला देना चाहता हूँ
झिलमिल सितारों को
झूमती बहारों को
सावन के झूलों को
महकते हुए फूलों को
मौसमी वादों को
पक्के इरादों को
नर्म एहसासों को
बहके जज़्बातों को
सोंधी सी ख़ुशबू को
कोयल की कू को
नाचते हुए मोर को
नदियों के शोर को
चाँदनी रातों को
मीठी-मीठी…
Added by Mahendra Kumar on December 28, 2016 at 1:30pm — 10 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 28, 2016 at 11:45am — 12 Comments
वेदना अभिशप्त होकर,
जल रहें हैं गीत देखो।
विश्व का परिदृश्य बदला और मानवता पराजित,
इस धरा पर खींच रेखा, मनु स्वयं होता विभाजित ।
इस विषय पर मौन रहना, क्या न अनुचित आचरण यह ?
छोड़ना होगा समय से अब सुरक्षित आवरण यह।
कुछ कहो, कुछ तो कहो,
मत चुप रहो यूँ मीत देखो।
वेदना अभिशप्त होकर,
जल रहें हैं गीत देखो।
मन अगर पाषाण है, सम्वेदना के स्वर जगा दो।
उठ रही मष्तिष्क में दुर्भावनायें, सब भगा…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2016 at 11:00am — 18 Comments
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