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ग़ज़ल (दिल के आगे हमें सर झुकाना पड़ा )

ग़ज़ल (दिल के आगे हमें सर झुकाना पड़ा )
-----------------------------------------------------
फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन

दिल के आगे हमें सर झुकाना पड़ा |
इक सितम गार से दिल लगाना पड़ा |

चश्मे नम से न खुल जाए राज़े वफ़ा
सोच कर यह हमें मुस्कराना पड़ा |

प्यार की इक नज़र की ही उम्मीद में
उम्र भर संग दिल से निभाना पड़ा |

दर्स ज़ालिम ले अंज़ामे फिरओन से
ज़ालिमों को भी दुनिया से जाना पड़ा |

सिर्फ़ उस शोख की दोस्ती के लिए
सारी दुनिया को दुश्मन बनाना पड़ा |

दिल की हर बात जब लब पे आई नहीं
जाम पर जाम उसको पिलाना पड़ा |

साथ अपने न तस्दीक़ जब दे सके
हाथ गैरों से हम को मिलाना पड़ा |

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by Samar kabeer on January 3, 2017 at 9:19pm
"दिल की हर बात जब लब पे आई नहीं
जाम पर जाम उसको पिलाना पड़ा"
आपका शैर मफ़हूम के लिहाज़ से कमज़ोर हैं,आपने इसकी वज़ाहत यूँ पेश की है कि जब किसी शराबी से सच बुलवाना हो तो उसे शराब पिलाना चाहिये, तो जनाब आप शराबी से क्या सच बुलवाना चाहते हैं?और आपका उस शराबी से क्या रिश्ता है ?
अब रही 'जाम पर जाम'पिलाने की बात,तो ये तो थोड़ा सा ज्ञान रखने वाला भी बता देगा की ये बहुवचन में ही इस्तेमाल होगा न कि एक वचन में,मुआफ़ कीजियेगा इस गुस्ताख़ी के लिये कि आप भी सच को तस्लीम नहीं करते देखे गये हैं तो क्या आपको भी जाम पर जाम पिलाना पड़ेंगे ?
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 2, 2017 at 10:50pm

मुहतरम जनाब आशुतोष साहिब , ग़ज़ल में गहराईसे शिरकत और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
''दर्स ज़ालिम ले अंजामे फ़िरऔन से '' का मतलब है '' ऐ जालिम, फ़िरऔन के अंजाम से सबक़ ले '' फ़िरऔन एक ज़ालिम बादशाह
हुआ है जो खुद को खुदा कहता था जो नहीं मानते थे उनपर ज़ुल्म करता था ----

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 2, 2017 at 10:40pm

मुहतरम जनाब समर कबीर साहिबआदाब , , ग़ज़ल में गहराईसे शिरकत और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी

कहते हैं अगर किसी शराबी से सच उगलवाना हो तो उसे शराब पिलाना शुरू कर दो , यही ख़याल शेर में लिया है \ जहाँ तक जाम पर जाम
के बहुवचन का सवाल है , शेर में एक शख्स का ज़िक्र है इसलिए मेरे ख़याल से दोनों तरह से लेने में कोई खराबी नहीं लगती ----सादर

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 2, 2017 at 10:30pm

मुहतरम जनाब महेंद्र कुमार साहिब, , ग़ज़ल में गहराई शिरकत और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 2, 2017 at 8:43pm
आदरणीय तस्दीक़ जी इस ग़ज़ल को गुनगुनाने में बड़ा आनंद आया द र्स जालिम ले अंजामे फिरओन से इन शब्दों का अर्थ मुझे पता नहीं है इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
Comment by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 7:11pm
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय समर सर। असल में मुझे सिर्फ सितमगर के बारे में पता था। सादर।
Comment by Samar kabeer on January 2, 2017 at 5:31pm
महेन्द्र जी,'सितमगार'का अर्थ है तकलीफ़ देने वाला ।
Comment by Samar kabeer on January 2, 2017 at 5:30pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
'दिल की हर बात जब लब पे आई नहीं
जाम पर जाम उसको पिलाना पड़ा'-किसको पिलाना पड़ा ?
दूसरी बात,जाम पर जाम से बहुवचन का सीग़ा बनता है,तो 'पिलाने पड़े'होगा न ?
Comment by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 3:10pm
सिर्फ़ उस शोख की दोस्ती के लिए
सारी दुनिया को दुश्मन बनाना पड़ा | ...वाह! बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान जी। मेरी तरफ से ढेरों बधाई प्रेषित है। एक प्रश्न है, 'सितम गार' का क्या अर्थ है? सादर।

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