For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं भुला देना चाहता हूँ

मैं भुला देना चाहता हूँ
झिलमिल सितारों को
झूमती बहारों को
सावन के झूलों को
महकते हुए फूलों को
मौसमी वादों को
पक्के इरादों को
नर्म एहसासों को
बहके जज़्बातों को
सोंधी सी ख़ुशबू को
कोयल की कू को
नाचते हुए मोर को
नदियों के शोर को
चाँदनी रातों को
मीठी-मीठी बातों को
दरख़्तों पे लिखे नाम को
सुहानी सी शाम को
हवाओं की अठखेलियों को
बारिश की सहेलियों को
खायी हुई कसमों को
प्यार भरे नग़मों को
चमकते आफ़ताब को
मुस्कुराते माहताब को
ग़ज़ल की किताब को
उसमें रखे गुलाब को
और...
अपने हर उस ख़्वाब को
जो मैंने तुम्हारे
साथ देखा था!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 560

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 7:15pm
ये मेरे लिए सौभाग्य की बात है सर कि आपको मेरी रचनाएँ सशक्त लगीं। भविष्य में बेहतर देने की पूरी कोशिश रहेगी। आपकी विनम्रता का हृदय से आभार। बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 29, 2016 at 11:57pm

बहुत बढ़िया,

एक और निवेदन- मंच पर आपकी सशक्त रचनाएँ देखी है. इसलिए आपने और बेहतर की उम्मीद रहती है. सादर 

Comment by Mahendra Kumar on December 29, 2016 at 10:44pm
आदरणीय समर सर, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।
Comment by Samar kabeer on December 29, 2016 at 2:29pm
मै भुला देना चाहता हूँ,
ये कविता उम्दा है ।
Comment by Mahendra Kumar on December 29, 2016 at 9:03am
आ. समर सर, आ. मिथिलेश सर एवं आ. डॉ. गोपाल सर आप लोगों के समक्ष कविता के दो संशोधित संस्करण प्रस्तुत कर रहा हूँ। इनमें से जो आप लोगों को ठीक लगेगा उसे ही मैं अन्तिम मान कर मूल कविता से प्रतिस्थापित कर दूँगा। सादर धन्यवाद।

(1)

मैं बनना चाहता हूँ हत्यारा
झिलमिल सितारों का
झूमती बहारों का
सावन के झूलों का
महकते हुए फूलों का
मौसमी वादों का
पक्के इरादों का
नर्म एहसासों का
बहके जज़्बातों का
सोंधी सी ख़ुशबू का
कोयल की कू का
नाचते हुए मोर का
नदियों के शोर का
चाँदनी रातों का
मीठी-मीठी बातों का
दरख़्तों पे लिखे नाम का
सुहानी सी शाम का
हवाओं की अठखेलियों का
बारिश की सहेलियों का
खायी हुई कसमों का
प्यार भरे नग़मों का
चमकते आफ़ताब का
मुस्कुराते माहताब का
ग़ज़ल की किताब का
और उसमें रखे गुलाब का
दूसरे शब्दों में
अपने हर उस ख़्वाब का
जो मैंने तुम्हारे
साथ देखा था!

(2)

मैं भुला देना चाहता हूँ
झिलमिल सितारों को
झूमती बहारों को
सावन के झूलों को
महकते हुए फूलों को
मौसमी वादों को
पक्के इरादों को
नर्म एहसासों को
बहके जज़्बातों को
सोंधी सी ख़ुशबू को
कोयल की कू को
नाचते हुए मोर को
नदियों के शोर को
चाँदनी रातों को
मीठी-मीठी बातों को
दरख़्तों पे लिखे नाम को
सुहानी सी शाम को
हवाओं की अठखेलियों को
बारिश की सहेलियों को
खायी हुई कसमों को
प्यार भरे नग़मों को
चमकते आफ़ताब को
मुस्कुराते माहताब को
ग़ज़ल की किताब को
उसमें रखे गुलाब को
और...
अपने हर उस ख़्वाब को
जो मैंने तुम्हारे
साथ देखा था!
Comment by Mahendra Kumar on December 29, 2016 at 8:46am
आ. डॉ. गोपाल सर, कोमल कविता की हत्या वाकई अनुचित है। मैं ऐसा गुनाह बिलकुल नहीं कर सकता। आपने समस्या को स्पष्ट तौर पर रखा और उसके निदान हेतु कीमती सुझाव भी दिया। इसके लिए मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ और जल्द ही इसका संशोधित संस्करण ले कर रचना पटल पर पुनः प्रस्तुत होता हूँ। आपके प्रेम और स्नेह के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर।
Comment by Mahendra Kumar on December 29, 2016 at 8:37am
आ. समर सर, आ. मिथिलेश सर सादर अभिवादन। आप लोगों का कहना उचित है। इस कविता में शायद मैंने कुछ ज़्यादा ही जुनून दिखाने की कोशिश कर दी। संभवतः इसीलिए बात पूरी तरह प्रभावी नहीं हो सकी। मैं शीघ्र ही इसका संशोधित संस्करण ले के पुनः प्रस्तुत होता हूँ। आप लोगों का बहुत-बहुत धन्यवाद और हृदय से आभार। सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 28, 2016 at 7:52pm

प्रिय महेंद्र जी , आ० समर कबीर साहिब और आ० मिथिलेश जी ने जो खुलकर नहीं कहा , मैं कहता हूँ . इतनी कोमल कविता  की ह्त्या  उचित नहीं . आप इस तरह कह सकते हैं -

मैं  भुला देना चाहता हूँ

हर अहसास

झिलमिल सितारों का ----- आदि आदि . परिगणन  शैली का बड़ा  मोहक उदाहरण  आपने अपनी कविता में प्रस्तुत किया है . सस्नेह .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2016 at 6:33pm

आदरणीय महेन्द्र जी, आपने हत्याओं का बड़ा मामला बना दिया. बहरहाल इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Samar kabeer on December 28, 2016 at 4:52pm
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,आप किसी और का इन्तिक़ाम इतने सारे बेज़बानों से क्यों लेना चाहते हैं ?
इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रस्तुति को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।हार्दिक आभार "
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"किसी भोजपुरी रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्द्धन किया जाना मुझे अभिभूत कर रहा है। हार्दिक बधाई,…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहे (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
Shyam Narain Verma replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर भोजपुरी ग़ज़ल की प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल : निभत बा दरद से // सौरभ

जवन घाव पाकी उहे दी दवाईनिभत बा दरद से निभे दीं मिताई  बजर लीं भले खून माथा चढ़ावत कइलका कहाई अलाई…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service