नहीं माँगता जीवन अपना, पर बेवजह मुझको काटो ना
जो ना आये जहां में अब तक, उनके लिए भी वृक्ष छोड़ो ना ||
नहीं रहेगा जहर हवा में, पेड़ पौधो को लगा दो ना
वायु प्रदूषण नाम ना होगा, बारे आक्सीजन के भी सोचो ना ||
पृकृति का संतुलन बना रहे यूं, करना खिलवाड़ उससे छोड़ो ना
मन, स्वास्थ्य बिगड़ जाएगा, जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ो ना ||
वायु प्रदूषण एक…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 30, 2020 at 11:06pm — 2 Comments
एक प्रश्न
अन्नदाता क्यूँ रोड़ पड़ा
निजीकरण का दौर बढ़ा
कोरोना की स्थिति विकट है
हर नागरिक क्यूँ मजबूर बड़ा||
नयें नियमों की अदला-बदली
भारत परिवर्तन की ओर बढ़ा
भविष्य का तो पता नहीं
पर आज बेरोजगारी का मुद्दा बड़ा ||
छोटे से लेकर बड़े व्यापारी तक
हर जन में क्यों आक्रोश बढ़ा
युवा रोजगार को तरस रहे
आज, आंदोलनों का क्यूँ शोर बड़ा ||
चकनाचूर है आर्थिक…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 29, 2020 at 7:06pm — 2 Comments
द्वापर युग में कृष्ण ने
पान्डव का दे साथ
हो विरुद्ध कुरुवंश के
रचा एक इतिहास
कलियुग की अब क्या कहें?
जिन्हे मिला अधिकार
धन-बल के अभिमान में
प्रति पल चढ़े ख़ुमार
हक़ जिसका हो,मार लें
जाति धर्म के नाम
आपस में झगड़ा करा
आप बनें सुल्तान
वंशवाद का घुन लगा
आज हमारे देश
करे खोखला राष्ट्र को
धर नेता का वेष
राष्ट्र एकता की उन्हे
तनिक नहीं…
ContinueAdded by Usha Awasthi on November 29, 2020 at 9:02am — 2 Comments
कल मानव और विभा की शादी के दस वर्ष पूरे हो रहे थे। सो इस बार की मैरिज एनीवर्सरी विशेष थी। दाम्पत्य जीवन में कोई अभाव प्रकटतः तो विभा को नहीं था। दो बच्चे, बेटी मानसी और बेटा विशेष प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे थे। विभा एम, ए. बी. एड. थी, मिजाज़ से हाउस वाइफ थी। सारा दिन चौका बर्तन, सफाई, बच्चों की सुख-सविधा में कोई कमी न रहे इसमें निकल जाता था । हाँ मानव से ज़रूर उसे शिकायत थी। मानव एक कस्बे के महाविद्यालय में अंग्रेजी के प्रवक्ता थे। उनका ज्यादातर समय अध्ययन और अध्यापन में ही निकल जाता और बचता…
ContinueAdded by Chetan Prakash on November 29, 2020 at 6:00am — 3 Comments
कब तक - लघुकथा –
"अम्मा, ये सारी टोका टोकी, रोकथाम केवल मेरे लिये ही क्यों है?"
"यह सब तेरी भलाई के लिये ही है बिटिया।"
"क्या अम्मा?, मेरी भलाई के अलावा कभी भैया के बारे में भी सोच लिया करो।"
"अरे उसका क्या सोचना? मर्द मानुष है, जैसा भी है सब चल जायेगा।"
"इसलिये उसके किसी काम में रोकटोक नहीं।रात को बारह बजे आये तो भी चलेगा।और मैं दिन में भी अकेली कहीं नहीं जा सकती।"
“तू समझती क्यों नहीं मेरी बच्ची?"
"क्या समझूं अम्मा? भैया बारहवीं में तीन साल…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 28, 2020 at 9:52am — 8 Comments
आइना हूं मैं तो बस ज़िन्दगी का,कहते हो तुम बुढ़ापा जिसे
जिन्दगी के सफ़र में जो भी खोया या पाया,पलटकर देखो नज़र भर उसे
ज़िन्दगी से सदा तूने सदा ये ही शिकवे किये,ए ज़िंदगी तूने सदा दुख है दिये
सच ये नहीं छुपेगा आइने से बिखरी थीं ख़ुशियाँ,तेरी ज़िन्दगी में
ग़मों को सदा तूने गले से लगाया,ख़ुशियों के पल क्यों ना याद किये
आइने में देखोगे जो ख़ुशियों के वो पल,ग़मों में भी फिर जल उठेंगे दिये
जीवन जीने की कला आप कहते हैं जिसे
उम्र का ये दौर ही है…
ContinueAdded by Veena Gupta on November 28, 2020 at 9:09am — 3 Comments
जब तब अजिया कहत रहिं
दूध पूत हैं एक
जैस पियावहु दूध तस
बढ़िहै ज्ञान विवेक
गइयन केरी सेवा कयि
करिहौ जौ संतुष्ट
पइहैं पोषण पूर जब
हुइहैं तब वह पुष्ट
अमृत जैसन दूध बनि
निकसी बहुत पवित्र
रोग दोष का नास करि
रखिहै सबका तुष्ट
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on November 27, 2020 at 7:22pm — 2 Comments
मिश्रा जी यूं तो बैंक से रिटायर हुए थे, लेकिन रिटायरमेंट के बाद उन्होंने पूरी तरह से अपने जीवन को वृक्षारोपण के लिए समर्पित कर दिया, इसलिए लोगों के लिए उनका परिचय था " वही जो पेड़ लगाते हैं"। घर के पास स्थित राधा कृष्ण मंदिर में भी उन्होंने कई पेड़ लगाए थे, जब तक उनका लगाया पौधा पूरी तरह से बड़ा न हो जाता, तब तक उसकी देखभाल के लिए जाया करते थे। पार्कों में, रोड साइड पर, अपने स्कूटर पर पानी के जरीकेन रखकर ले जाते थे और पौधों में पानी डालते थे, बाद में पैदल ही जाने लगे। कभी-कभी आसपास के…
ContinueAdded by Dr Vandana Misra on November 27, 2020 at 12:00pm — 7 Comments
2122 1212 22/112
जाँ से प्यारे हैं सारे लोग मुझे
मार देंगे मगर ये लोग मुझे(1)
मुझको पानी से प्यार है लेकिन
एक दिन फूँक देंगे लोग मुझे (2)
मैं उन्हें अपना मानता हूँ मगर
ग़ैर समझे हैं मेरे लोग मुझे (3)
उम्र भर शह्र में रहा फिर भी
जानते ही नहीं ये लोग मुझे (4)
बाद मुद्दत के अपने गाँव गया
सारे पहचानतेे थे लोग मुझे (5)
उनकी बातों का क्यों बुरा मानूँ
लग रहे हैं भले से लोग…
Added by सालिक गणवीर on November 26, 2020 at 4:00pm — 6 Comments
Added by सचिन कुमार on November 25, 2020 at 9:32pm — 9 Comments
2122 -1122-1122-22
याद तेरी को ऐसे दिल में लगा रक्खा है ।
ढूंढ पाये तेरा तो जेब पता रक्खा है ।1
रात सो जाये हमें नींद कहाँ आती अब ,
साथ रातों यही रिश्ता जो बना रक्खा है ।2
क्यूँ बता दी कोई अपनी ये कहानी उसको ,
बन रहे फूल जो क्यूँ शूल बता रक्खा है।3
कल मिरा आज बिगाना वो किसी कल होगा
किस लिए यार यूँ ही खुद को जला रक्खा है ।4
था कभी खोजा जिसे ऊँचे पहाड़ों जा कर ,
नेक बंदे…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on November 24, 2020 at 4:30pm — 1 Comment
Added by amita tiwari on November 24, 2020 at 1:30am — 3 Comments
212 212 212 2
राज़ आशिक़ के पलने लगे हैं
फूल लुक-छिप के छलने लगे है
उनके आने से जलने लगे हैं
मुँह-लगे दिल तो मलने लगे हैं
कोई आता है खिड़की पे उसकी
रात में गुल वो खिलने लगे हैं
चल रही है मुआफिक हवा भी
बागवाँ फूल फलने लगे हैं
आज पूनम दुखी है बहुत सुन !
आँख में ख्वाब खलने लगे हैं
रंग सावन ग़जल आ घुले फिर
अब तो चेतन बदलने लगे हैं
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Chetan Prakash on November 23, 2020 at 6:30pm — 2 Comments
हमारा आज और कल एक सिक्के के दो पहलू हैं
सुनहरे कल के लिए आज की बलि मत चढ़ा दो
माना की आज ज़िंदगी कठिन है पर जीना जरूरी है
उसके लिए अपने भविष्य को बचाना है
तिनके का सहारा लेकर हमें जाना है उस पार ।
हिम्मत न हार तूफान से टकरा
अपने कल के लिए कठिन संघर्ष कर
आया भयंकर तूफान खतरे में जग जहान है
आशा की पतवार है किश्ती नदी मझधार है
हिम्मत न हार हमें जाना है उस पार ।
मंजिल पर दूर तक कोई नजर नहीं आता
छोटा है तो…
ContinueAdded by Ram Ashery on November 21, 2020 at 3:00pm — 2 Comments
२१२२//१२२१/२२१२
मुफलिसी में ही जिसका गुजारा हुआ
कौन शासन जो उस का सहारा हुआ।१।
**
उसको जूठन का मतलब न समझाइए
जिस ने पहना हो सब का उतारा हुआ।२।
**
चाद किस्मत में उस के नहीं था मगर
आस भर को भी कोई न तारा हुआ।३।
**
जिस ने जीवन जिया है सहज कष्ट में
आप कहते हैं उस को ही हारा हुआ।४।
**
है …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 21, 2020 at 6:22am — 8 Comments
दस्तक :
वक़्त बुरा हो तो
तो पैमानें भी मुकर जाते हैं
मय हलक से न उतरे तो
सैंकड़ों गम
उभर आते हैं
फ़िज़ूल है
होश का फ़लसफ़ा
समझाना हमको
उनके दिए ज़ख्म ही
हमें यहां तक ले आते हैं
वो क्या जानें
कितने बेरहम होते हैं
यादों के खंज़र
हर नफ़स उल्फ़त की
ज़ख़्मी कर जाते हैं
तिश्नगी बढ़ती गई
उनको भुलाने के आरज़ू में
क्या करें
इन बेवफ़ा क़दमों का
लाख रोका
फिर भी
ये
उनके दर तक ले जाते हैं
उनकी…
Added by Sushil Sarna on November 20, 2020 at 8:43pm — 2 Comments
मुझे भी पढ़ना है - लघुकथा –
"ऐ सुमन, मुन्ना नहीं दिखाई दे रहा?"
"काहे परेशान हो? अभी आ जायेगा।"
"अरे तू समझती काहे नहीं है। यह गाँव देहात नहीं है।शहर का मामला है। एक मिनट में बच्चा गायब हो जाता है।"
"हम सब जानते हैं इसलिये उसकी दादी माँ भी साथ गयी हैं।"
"अरे मगर गये कहाँ हैं वे दोनों?"
"और कहाँ जायेंगे? दो साल से स्कूल जाने का सपना मन में पाल रखा है। स्कूल की प्रार्थना की घंटी सुनते ही दौड़ जाता है।"
"अब क्या करें सुमन? घर की माली हालत तो तुम…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 20, 2020 at 6:22pm — 6 Comments
2122-1212-22
1
आदमी कब ख़ुदा से डरता है
अपनी हर बात से मुकरता है
2
जब सर-ए-शाम ग़म सँवरता है
आइना टूटकर बिखरता है
3
आज का काम आज ख़त्म करें
वक़्त किसके लिए ठहरता है
4
ताबिश-ए-ख़्वाब के लिए दिलबर
रंग मेरे लहू से भरता…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on November 20, 2020 at 12:00pm — 4 Comments
पूर्णता का जो है प्रतीक ,वह तो बस एक शून्य है
शून्य है जीवन का सत्य ,शून्य ही सम्पूर्ण है
जिस बिंदु से आरम्भ होता ,होता वहीं वह पूर्ण है
आरम्भ जीवन का शून्य से और अंत भी बस शून्य है
शून्य में जोड़ दो ,चाहे जितने शून्य तुम
या निकालो शून्य में से चाहे जितने शून्य तुम
शून्य फिर भी शून्य…
ContinueAdded by Veena Gupta on November 20, 2020 at 3:20am — 6 Comments
2122 2122 2122 2
चुप रहीं आँखें सजल ने कुछ नहीं बोला
इसलिए मनवा विकल ने कुछ नहीं बोला
भाव जितने हैं सभी को लिख दिया हमदम
क्या कहूँ! तुमसे ग़ज़ल ने कुछ नहीं बोला?
जिस किनारे बैठ के पहरों तुम्हें सोचूँ
उस जलाशय के कमल ने कुछ नहीं बोला?
एक पत्थर झील में फेंका कि जुम्बिश हो
झील के खामोश जल ने कुछ नहीं बोला
साथ 'ब्रज' के रात भर पल पल रहे जलते
जुगनुओं के नेक दल ने…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 19, 2020 at 9:00pm — 6 Comments
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