जंगल बदल चुके हैं
बस्तियों में या फिर
फॉर्म हाउसेस में
लिहाज़ा अब
जंगल में
हरे भरे फलों से लदे
पेड़ नहीं मिलते …
1212 1122 1212 22 तमाम उम्र जलूँ आफ़ताब हूँ मैं तो, पढ़ी न जाय कभी वो किताब हूँ मैं तो
न ढूँढिये मुझे केवल सराब हूँ मैं तो, किसी चमन का फ़सुर्दा गुलाब हूँ मैं तो .
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Added by rajesh kumari on September 17, 2015 at 10:24am — 28 Comments
1222---1222---122 |
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नज़र इंसान की घातक हुई क्या? |
अभी नासाफ़ थी, हिंसक हुई क्या? |
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भरोसा जिन्दगी से उठ गया जो… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 17, 2015 at 4:11am — 21 Comments
"कितने बडे परिवार में व्याह दिया तुमने माँ , एक बार भी नहीं सोचा कि कैसे निभाऊँगी मै ? "
"नहीं बिट्टो ऐसा नहीं कहते ,भरा - पूरा घर है तुम्हारा । ऐसे परिवार क़िस्मत- वालियों को मिलते है । "
"खाक क़िस्मत -वालियाँ , तुम नहीं जानती कि मुझे , इतनीss सारी रोटियां अकेले सेंकनी पडती है ।"
"घर के लोगों की रोटियां नहीं गिनते बिट्टो , नजर लग जाती है ।" माँ हल्की चपत लगाते हुए कह उठी थी उस दिन ।
माँ का लाड़ से मुस्कुरा…
ContinueAdded by kanta roy on September 16, 2015 at 11:00pm — 27 Comments
तृषा जन्मों की .....
मर्म धर्म का समझो पहले
फिर करना प्रभु का ध्यान
क्या पाओगे काशी में
है हृदय में प्रभु का धाम
पावन गंगा का दोष नहीं
सब है कर्मों का फल
अच्छे कर्म नहीं है तो फिर
गंगा सिर्फ है जल
मानव भ्रम में जीने का
क्यों करता अभिमान
सच्चा सुख नहीं तीरथ में
व्यर्थ भटके नादान
कर्म प्रभु है, कर्म है गंगा
कर्म है सर्वशक्तिमान
राशि रत्न और ग्रह शान्ति से
कैसे मुशिकल हो आसान
अपने मन की कंदरा में…
Added by Sushil Sarna on September 16, 2015 at 3:56pm — 10 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on September 16, 2015 at 12:52pm — 9 Comments
Added by MUKESH SRIVASTAVA on September 16, 2015 at 12:00pm — 5 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on September 15, 2015 at 6:53pm — 17 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on September 15, 2015 at 5:13pm — 14 Comments
हुई जो ख़बर नाम चलने लगा है ।
ये सारा जहां हमसे जलने लगा है ।।
यहां झूठ से सबको नफरत है फिर भी ।
है किसकी ये शह जो मचलने लगा है ।।
न तुम आग उगलो न मै ज़ह्र घोलूं ।
ये सोचें लहू क्यूँ उबलने लगा है ।।
बुरे वक्त में लोग करते है जुर्रत ।
हुई शाम सूरज भी ढलने लगा है ।।
तुम्हें देखते ही हमारी कबा से ।
उदासी का आलम पिघलने लगा है ।।
अज़ल से वही है ज़फ़ा का बहाना ।
कि मौसम के…
ContinueAdded by Ravi Shukla on September 15, 2015 at 5:11pm — 26 Comments
Added by दिनेश कुमार on September 15, 2015 at 4:30pm — 11 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 15, 2015 at 3:30pm — 15 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 15, 2015 at 3:00pm — 5 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 15, 2015 at 12:00pm — 11 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on September 15, 2015 at 11:08am — 9 Comments
2122 2122 2122
एक दिन आ कर तुम्हें भी हम हँसायें
यदि हमारे बहते आँसू मान जायें
क्यों समय केवल उदासी बांटता है ?
क्या समय के पास बस हैं वेदनायें
जानकारी ठीक है ,पर ये भी सच है
ज्ञान की अति खा रही है भावनायें
इस तरफ है पेट की ऐंठन सदी से
उस तरफ़ है भूख पर होतीं सभायें
बात में बारूद शामिल है उधर की
हम कबूतर शांति के कैसे उड़ायें ?
अब धरा को छू रहा है सर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 15, 2015 at 9:33am — 43 Comments
ईश्वर अलक्ष्य है क्या ?
शायद –
तब तुमने माँ को नहीं जाना
न समझा न पहचाना
सचमुच
अभागा है तू
(मौलिक व् अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 15, 2015 at 9:30am — 22 Comments
2212 2212 22
क्या ख़ूब आफ़त पाल बैठा हूँ
दिल में शराफ़त पाल बैठा हूँ
.
मुफ़्त इक मुसीबत पाल बैठा हूँ
बुत की मुहब्बत पाल बैठा हूँ
.
क्यूँ ये सितारे हैं ख़फ़ा मुझसे?
जो तेरी चाहत पाल बैठा हूँ
.
वो बेवफा कहने लगा मुझको
जबसे मुरव्वत पाल बैठा हूँ
.
कोई तो तुम अब फ़ैसला दे दो
पत्थर की सूरत पाल बैठा हूँ
.
गर तू तगाफुल पे अड़ा है
सुन मैं भी वहशत पाल बैठा हूँ
.
वारे…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 15, 2015 at 8:30am — 19 Comments
उस चित्रकार की प्रदर्शनी में यूं तो कई चित्र थे लेकिन एक अनोखा चित्र सभी के आकर्षण का केंद्र था| बिना किसी शीर्षक के उस चित्र में एक बड़ा सा सोने का हीरों जड़ित सुंदर दरवाज़ा था जिसके अंदर एक रत्नों का सिंहासन था जिस पर मखमल की गद्दी बिछी थी|उस सिंहासन पर एक बड़ी सुंदर महिला बैठी थी, जिसके वस्त्र और आभूषण किसी रानी से कम नहीं थे| दो दासियाँ उसे हवा कर रही थीं और उसके पीछे बहुत से व्यक्ति खड़े थे जो शायद उसके समर्थन में हाथ ऊपर किये हुए थे|
सिंहासन के नीचे एक दूसरी बड़ी सुंदर महिला…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 14, 2015 at 10:30pm — 9 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on September 14, 2015 at 2:12pm — 12 Comments
बहर-
212/212/212/212
हम है राही मुहब्बत बताया न कर
प्यार हैरत सें ऐसे जताया न कर
आँख बह जाने दे देख बस तू ह्रदय
भीग जाये जो दामन सुखाया न कर
जिंदगी की राह पर साथ आ हमसफ़र
पास रह के तू दूरी बनाया न कर
क़त्ल करना है तो क़त्ल कर दे मुझे
धार चाकू दिखा कर डराया न कर
जानता हूँ तू वैद्यो के घर से जुडी
दोस्ती में मेरी जखम खाया न कर
प्यार मजहब कभी भी नही देखता
यार मजहब की भाषा सिखाया…
Added by amod shrivastav (bindouri) on September 14, 2015 at 11:30am — 6 Comments
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