For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खो रही पहचान (लघुकथा)

उस चित्रकार की प्रदर्शनी में यूं तो कई चित्र थे लेकिन एक अनोखा चित्र सभी के आकर्षण का केंद्र था| बिना किसी शीर्षक के उस चित्र में एक बड़ा सा सोने का हीरों जड़ित सुंदर दरवाज़ा था जिसके अंदर एक रत्नों का सिंहासन था जिस पर मखमल की गद्दी बिछी थी|उस सिंहासन पर एक बड़ी सुंदर महिला बैठी थी, जिसके वस्त्र और आभूषण किसी रानी से कम नहीं थे| दो दासियाँ उसे हवा कर रही थीं और उसके पीछे बहुत से व्यक्ति खड़े थे जो शायद उसके समर्थन में हाथ ऊपर किये हुए थे|

सिंहासन के नीचे एक दूसरी बड़ी सुंदर महिला बेड़ियों में जकड़ी दिखाई दे रही थी जिसके वस्त्र मैले-कुचैले थे और वो सर झुका कर बैठी थी| उसके पीछे चार व्यक्ति हाथ जोड़े खड़े थे और कुछ अन्य व्यक्ति आश्चर्य से उस महिला को देख कर इशारे से पूछ रहे थे "यह कौन है?"

उस चित्र को देखने आई दर्शकों की भीड़ में से आज किसी ने चित्रकार से पूछ ही लिया, "इस चित्र में क्या दर्शाया गया है?"

चित्रकार ने मैले वस्त्रों वाली महिला की तरफ इशारा कर के उत्तर दिया, "यह महिला जो अपनी पहचान खो रही है..... वो हमारी मातृभाषा है...."

अगली पंक्ति कहने से पहले वह कुछ क्षण चुप हो गया, उसे पता था अब प्रदर्शनी कक्ष लगभग खाली हो जायेगा|

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 462

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 18, 2015 at 7:22pm

रचना को पसंद कर स्नेहिल  टिप्पणी द्वारा मेरा मनोबल बढाने हेतु आप सभी का हृदय से आभारी हूँ, आदरणीय  TEJ VEER SINGH जी  सर, आदरणीया pratibha pande जी, आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी  सर, आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, आदरणीय shree suneel जी,  आदरणीया  shashi bansal जी, आदरणीया kanta roy जी, आदरणीया rajesh kumari जी | निवेदन है कि ऐसे ही स्नेह बनाये रखें|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 17, 2015 at 8:16pm

लघु कथा के माध्यम से अपनी हिंदी भाषा की वास्तविक दशा को बखूबी दर्शाया है बहुत सार्थक लघु कथा है दिल से बधाई लीजिये इस संकल्प के साथ की हम लेखकों को सतत प्रयास रत रहना है अपनी हिंदी को ऊपर सिंहासन  पर सुशोभित करने के लिए| 

Comment by kanta roy on September 16, 2015 at 10:32pm

"उसे पता था अब प्रदर्शनी कक्ष लगभग खाली हो जायेगा|",----बहुत ही सादगी से गहरी बात कही है आपने चंद्रेश जी इस लघुकथा के माध्यम से । इस सशक्त लघुकथा के लिये बधाई स्वीकार करें । सादर । 

Comment by shashi bansal goyal on September 16, 2015 at 8:36pm
अति उत्कृष्ट प्रस्तुति । जितनी प्रशंसा की जाये कम ही होगी ।
Comment by shree suneel on September 16, 2015 at 8:13pm
हिन्दी की दशा का हू-ब-हू चित्रांकन हुआ है. इस गंभीर रचनाकर्म के लिए बधाई आपको आदरणीय.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 16, 2015 at 12:04pm

इस सशक्त प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई.... 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 16, 2015 at 10:55am

चंद्रेश जी --आपकी इस बेमिसाल कविता पर टिप्पणियों का अभाव मुझे चकित् कर रहा  है . मातृ भाषा की दुर्दशा का ऐसा सांकेतिक चित्रण दुर्लभ है . मेरी और से बधायी .

Comment by pratibha pande on September 15, 2015 at 12:04pm

बिलकुल यही हालत है आज हमारी मातृभाषा  की ,बहुत सशक्त लघु कथा लिखी है आपने आदरणीय चंद्रेश जी बधाई  आपको 

Comment by TEJ VEER SINGH on September 15, 2015 at 10:50am

हार्दिक बधाई आदरणीय चन्द्रेश छतलानी  जी, आज हिन्दी दिवस के उपलक्ष में एक बेहतरीन लघुकथा प्रस्तुत की है जो कि सच्चाई का आइना दिखाने में पूर्ण रूप से सफ़ल हुई है!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service