For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- आईना बना ले मुझको .... दिनेश कुमार

2122-1122-1122-22

अहले महफ़िल की निग़ाहों से छुपा ले मुझको
मैं तेरा ख़्वाब हूँ आँखों में बसा ले मुझको

अपनी मंज़िल पे यकीनन मैं पहुंच जाऊँगा
कोई बस राहनुमाओं से बचा ले मुझको

रात कटती है न अब दिन ही मेरा तेरे बग़ैर
मेरी आवारगी नेजे पे उछाले मुझको

सबके दुखदर्द में जब मैंने मसीहाई की
इस ग़मे जाँ में कोई क्यूँ न सँभाले मुझको

शख़्सियत तेरी सँवारूंगा ये वादा है मिरा
अपनी तक़दीर का आईना बना ले मुझको

दिल के दरिया में ख़जाना है मुहब्बत का निहाँ
चश्म-ए-हसरत से कहो, ख़ूब खँगाले मुझको

आबजू होंठों पे है, अब्र का मैं लश्कर हूँ
कर दो बेशक ग़म-ए-सहरा के हवाले मुझको

ग़म की शिद्दत ने अँधेरों की थी रह दिखलाई
आज बेगाने से लगते हैं उजाले मुझको

ख़्वाहिशें जिस्म की पूरी ही नहीं होती 'दिनेश'
क़ैद-ए-हस्ती से कोई अब तो निकाले मुझको

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 706

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 20, 2015 at 10:20pm

आदरणीय दिनेश जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद कुबूल करें

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 17, 2015 at 1:20pm

आ० मिथिलेश जी ने मेरे मन की बात कह दी . बहुत खूब कहा आपने .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 17, 2015 at 4:19am
कमाल की ग़ज़ल हुई है दिनेश भाई जी। इस शानदार ग़ज़ल पर दाद ही दाद।
Comment by Samar kabeer on September 16, 2015 at 11:18pm
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,वाह,बहुत ख़ूब,शानदार,ये देख कर प्रसन्नता हुई कि आपकी ग़ज़ल दिन ब दिन निखरती जा रही है , शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by shree suneel on September 16, 2015 at 9:13pm
आदरणीय दिनेश कुमार जी, तहे दिल से बधाई आपको इस ख़ूबसूरत, उम्दा ग़ज़ल के लिए.
दिल के दरिया में ख़जाना है मुहब्बत का निहाँ
चश्म-ए-हसरत से कहो, ख़ूब खँगाले मुझको.. बहुत ख़ूब.
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 16, 2015 at 4:45pm

दिल के दरिया में ख़जाना है मुहब्बत का निहाँ
चश्म-ए-हसरत से कहो, ख़ूब खँगाले मुझको

ग़म की शिद्दत ने अँधेरों की थी रह दिखलाई
आज बेगाने से लगते हैं उजाले मुझको

ख़्वाहिशें जिस्म की पूरी ही नहीं होती 'दिनेश'
क़ैद-ए-हस्ती से कोई अब तो निकाले मुझको

आहा हा हा! लाजव़ाब!लाजवाब! ढ़ेरों दाद पेश है आदरणीय दिनेश सर पूरी गज़ल बेहतरीन हुयी है!मजा आ गया पढ़कर!

Comment by मनोज अहसास on September 16, 2015 at 3:22pm
बहुत खूब सर

ये ग़ज़ल पूज्य जगजीत सिंह जी द्वारा गाई गई इस ग़ज़ल पर बहुतखूबसूर्ती से गाई जासकती है


अपने हाथों की लकीरो में छुपा ले मुझको
मैं हु तेरा तू नसीब अपना बना ले मुझको


इस खूबसूरत ग़ज़ल पर आपको बहुत बहुत बधाई
हर शेर कमाल
सादर
Comment by Ravi Shukla on September 16, 2015 at 2:50pm

आरणीय दिनेश जी बहुत खूब ग़ज़ल कही है सुन्‍दर अश्‍आर हुए है बधाई कुबूल करें ।

Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 16, 2015 at 10:58am
हर शेर बढ़िया

बधाई
Comment by Rahul Dangi Panchal on September 16, 2015 at 9:45am
बहुत सुन्दर गजल हुई आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
8 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
46 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service