"मास्टर जी, अब तो पानी सिर के ऊपर हो गया। अब हमारे सामने हथियार उठाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।"
"नहीं नासिर, ऐसा कुछ भी नहीं है।आजतक दुनियाँ में हथियार से कोई भी समस्या हल नहीं हुई| अभी भी बहुत विकल्प हैं।"
"सर जी, स्थिति कितनी भयानक हो चुकी है, आपको अहसास नहीं है। हमारी क़ौम को कुचला और दबाया जा रहा है।"
"यह सिर्फ़ एक पहलू है। तुम्हें बार बार यही पाठ पढ़ाया जा रहा है। लोग तुम्हारा और तुम्हारी कौम का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे बचो|"
"आप के हिसाब से इस समस्या का…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 30, 2019 at 8:30pm — 2 Comments
क्षणिकाएँ ....
लील लेती है
एक ही पल में
कितने अंतरंग पलों का सौंदर्य
विरह की
वेदना
...............
उड़ती रही
देर तक
खिन्न सी एक तितली
मृदा में गिरे
मृत पुष्प में
जीवन ढूँढती
..........................
कह रहे थे दास्ताँ
बेरहम आँधियों की
बिखरे तिनके
घौंसलों के
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 30, 2019 at 7:10pm — 4 Comments
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 29, 2019 at 8:41pm — 9 Comments
2122 1122 1212 112
तुम हसीं हो ये भले ही तुम्हें गुमान रहे
आईना टूट न जाए मग़र ये ध्यान रहे
पाँव मन्ज़िल की तरफ रख सँभल सँभल के ज़रा
एक दिल भी है तेरी राह में ये ध्यान रहे
तू ज़माने से रहे बे-ख़बर नहीं कहता
किन्तु इस दिल के भजन पर भी तेरा कान रहे
तेरी साँसों के हर-इक गीत में रहूँ शामिल
ताल सुर नाद ये पंकज ही तेरी तान रहे
पूछ मत नींद सुकूँ का हिसाब आशिक़ से
आशिक़ी कैसी अगर ध्यान में ज़ियान…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 29, 2019 at 9:30am — 2 Comments
सीखे सबक़ हयात से भूला नहीं कोई
जीती हैं बाज़ियाँ सभी हारा नहीं कोई
**
कैसे भटक सके है भला शाख शाख पर
दिल आपका हुज़ूर परिंदा नहीं कोई
**
फ़रज़न्द की वजह से परेशान कोई है
कुछ हैं हताश इसलिए बच्चा नहीं कोई
**
इक बार हो गया है तो आसाँ न छोड़ना
ये इश्क़ दोस्त खेल तमाशा नहीं कोई
**
दरिया में जब उतर गया तो सीख तैरना
इसके सिवाय और है रस्ता नहीं कोई
**
दुनिया में हुस्न देखिये बिखरा पड़ा बहुत
फिर भी सिवाय आपके जँचता नहीं कोई…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 29, 2019 at 1:30am — 4 Comments
सबसे ज्यादा ज़िन्दगी
तुझसे ही धोखे खाए हैं
जब किया विश्वास तब
तूने कहर बरपाए हैं
सबसे - -
दीप आशा का लिए
जब - जब उमंगित मैं खड़ी
द्वार जो नैराश्य के
आकर सतत खटकाए हैं
सबसे - -
मत समझना तू हरा देगी
मुझे ऐ ज़िन्दगी
हमने ही तो कूट प्रश्नों के
गिरह सुलझाए हैं
सबसे - -
परत दर परतों के पीछे
कितना ही छुपती फिरे
पर तेरे झूठे मुखौटे
हमने ही विलगाए हैं
सबसे - -
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on August 28, 2019 at 9:51pm — 1 Comment
2122 2122 2122 212
नाव है मझधार में नाविक नशे में चूर है
सांझ है होने लगी मंजिल नज़र से दूर है
संकटों से आदमी क्या देव भी बचते नहीं
वक्त के आगे सभी होते यहां मजबूर है
जिन्दगी की कशमकश में जीना’ जिसको आ गया
यों समझ लो हौसलों से वो बहुत भरपूर है
दोष है अपना समय के साथ चल पाये नहीं
बंद मुट्ठी से फिसलना वक्त का दस्तूर है
हाल ‘‘मेठानी’’ बतायंे क्या किसी को अब यहां
आदमी सुनता नहीं अब हो गया मगरूर…
Added by Dayaram Methani on August 27, 2019 at 10:00pm — 2 Comments
त्याग, बलिदान, जोश, श्रम
चार पावों पर खड़ी हूँ मैं
सत्ता की मै बन धुरी
चमक-धमक से सजी-धजी
जादू की फूलझड़ी हूँ मैं
सपनों की सुंदर परी हूँ||
महत्वकांक्षा की कड़ी हूँ मैं
स्वागत को तेरे खड़ी हूँ मैं
धैर्य की सबकी परीक्षा लेती
कर्म मार्ग की लड़ी हूँ मैं
नियत, मेहनत का मूल्यांकन करती
तेरे सुख-दुख की कड़ी हूँ मैं||
उठक-बैठक कर खेल…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on August 27, 2019 at 4:21pm — 2 Comments
शाम को जिस वक़्त खाली हाथ घर जाता हूँ मैं
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 26, 2019 at 3:30pm — 4 Comments
एक विरह गीत
===========
रस्सा-कशी खेल था जीवन
एक तरफ का रस्सा छोड़ा |
इतनी भी क्या जल्दी थी जो
मीत अचानक नाता तोड़ा |
**
जीवन नदिया अपनी धुन में
अठखेली करती बहती थी |
और खुशी भी इस आँगन में
अपनी मर्जी से रहती थी |
सब कुछ अपने काबू में था
कैसे रहना क्या करना है,
हाँ थोड़े से दुख के झटके
कभी ज़िंदगी भी सहती थी |
लेकिन तुम थे साथ हमेशा
हँस हँस कर सह ली हर…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on August 25, 2019 at 1:30pm — 6 Comments
सीख - लघुकथा -
गाँव के कुछ जाने माने लोग हरी राम के घर आ धमके,"भाई हरी राम जी, आपने अपनी भेंसें बिना कोई जाँच पड़ताल किये किसी अजनबी इंसान को बेच दीं?"
"भाई लोगो, मेरी माली हालत आप लोगों से छिपी नहीं है। बाढ़ के कारण मेरा घर द्वार और खेती सब तबाह हो गया। खुद को खाने को नहीं था तो भेंसों को क्या खिलाता। अभी तो वे दूध भी नहीं दे रहीं थीं।"
"लेकिन भैया बेचने से पहले उस आदमी की पृष्ठ भूमि का तो पता कर लेते?"
"क्यों भाई ऐसा क्या गुनाह कर दिया उसने?"
"अरे भाई, वह…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 25, 2019 at 11:21am — 10 Comments
Added by Pratibha Pandey on August 25, 2019 at 7:00am — 1 Comment
221 2121 1221 212
मुझको तेरे रहम से मयस्सर तो क्या नहीं
जिस और खिड़कियां है उधर की हवा नहीं
हमको तो तेरी खोज में बस ये पता चला
तेरा पता बस इतना है तू लापता नहीं
उसने तमाम गीत लिखे औरों के लिए
फिर भी वो मेरे दिल के लिए बेवफा नहीं
यूं तो तमाम लोग तरक्की पसंद है
मैं इश्क से अलग कभी कुछ लिख सका नहीं
वह इसलिए ही जीत के बेहद करीब है
क्या-क्या कुचल गया है कभी सोचता नहीं
सबका…
ContinueAdded by मनोज अहसास on August 24, 2019 at 11:30pm — 3 Comments
जो डूब चुका है कंठ तक झूठ के सवालों में
उससे ही हम न्याय की उम्मीद लगा बैठे ।
देश आज फंस चुका है गद्दारों के हाथों में
हमारी आपसी मतभेद का फाइदा उठा बैठे ।
हमसे मांगते मंदिर का सबूत न्यायालय में
भारत में भी तालिबानी फरमान सुना बैठे ।
राम के मंदिर के लिए लड़ रहे न्यायालय में
सुबह की रोशनी में अपना अस्तित्व देख बैठे ।
आज न्यायालय ही खड़ा हो गया सवालों में
जो संविधान को अलग रख निर्णय ले बैठे ।
न्यायाधीस को शर्म नहीं…
ContinueAdded by Ram Ashery on August 24, 2019 at 8:30pm — No Comments
Added by Sushil Sarna on August 24, 2019 at 6:30pm — 2 Comments
ऐ हवा .............
कितनी बेशर्म है
इसे सब खबर है
किसी के अन्तःकक्ष में
यूँ बेधड़क चले आना
रात की शून्यता में
काँच की खिड़कियों को बजाना
पर्दों को बार बार हिलाना
कहाँ की मर्यादा है
कौमुदी क्या सोचती होगी
क्या इसे ज़रा भी लाज नहीं
इसका शोर
उसे मुझसे दूर ले जायगा
मेरा खयाल
मुझसे ही मिलने से शरमाएगा
तू तो बेशर्म है
मेरी अलकों से टकराएगी
मेरे कपोलों को
छू कर निकल जाएगी
मेरे…
Added by Sushil Sarna on August 23, 2019 at 7:00pm — 4 Comments
वर्तमान राजनैतिक व्यवस्ठा पर तंज
वक्त दोहराता है अपने आप को
कैसे कैसे दिन दिखाता आपको
भूलना हम जिसको चाहें बारहा
फिर वही मंज़र दिखाता आपको
जो सबक माज़ी में तुम भूले उसे
याद फिर-फिर से दिलाता आपको
जिस के संग जैसा किया है सामने
वक्त बस शीशा दिखाता आपको
शह नहीं है खेल बस शतरंज का
मात वो देना सिखाता आपको
तुम अगर सच्चे थे तब वो आज है
फिर वो क्यूँ झूठा कहाता आपको
सांच को ना आंच होती है कभी…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 23, 2019 at 12:00pm — 1 Comment
कौन कहता है कि इतिहास कोईअदालत होती है
जिस में हार गयों की महज़ मुखाल्फत होती है
और यह भी कि
यह केवल विजयी का फलसफा लिखती है
सफे पर सफा लिखती है
इसलिए मान लिया जाना चाहिए
कि जीत यकीनन लाजिमी है
कैसे भी हो पर हो केवल विजय
लेकिन
शायद सही हो…
Added by amita tiwari on August 23, 2019 at 1:00am — 4 Comments
तुम हुए जो व्यस्त
अभिभावक कहें किससे व्यथा?
हो गए कितने अकेले
क्या तुम्हे यह भी पता?
जिन्दगी की राह में
तुम तो निकल आगे गए
वे गहन अवसाद, द्वन्दों
में उलझ कर रह गए
सहन कर पाए न वे
संतान की ये बेरुखी
बेसहारा , ढलती वय
थक कर, हताशा में फंसी
तुम उन्हे कुछ वक्त दो
प्यार दो , संतृप्ति दो
जिन्दगी जीने को कुछ
आधार कण रससिक्त दो
पुष्प फिर आशीष के
तुम पर बरस ही जाएंगे
कवच बन संसार…
Added by Usha Awasthi on August 22, 2019 at 9:50pm — 5 Comments
जिनको हमने चुनकर भेजा,सत्ता के गलियारों में
उनको लड़ते देखा जैसे, श्वान लड़ें बाज़ारों में
कब क्या कैसे गुल ये खिलाते,कोई जान नहीं पाया
इनके असली रंग हैं दीखते, तीज और त्योहारों में
चोर उच्चके…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 22, 2019 at 12:30pm — 1 Comment
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