“तुम चिन्ता मत करो। मैं तुम्हें कल ही उस नर्क से दूर ले जाऊँगा।”
आज से कई दिन पहले। “ये आदमी नहीं जानवर है।” पाखी ने अपने पिता से एक बार फिर कहा। “मुझसे रोज शराब पी के मारपीट करता है। वो भी बिना किसी बात के। बस आप मुझे यहाँ से ले जाइए।”
“शादी के बाद ससुराल ही लड़की का असली घर होता है बेटी। थोड़ा सहन करो। समय सब ठीक कर देगा।” और पिता ने एक बार फिर वही जवाब दिया।
“माँ, तुम तो मुझे समझो। या तुम भी पिता जी की तरह?” पर माँ भी समझने से ज़्यादा समझाने पर…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 20, 2018 at 6:14pm — 6 Comments
राह किसी की कहाँ रोकते,
हट जाते हैं पेड़
इसकी, उसकी, सबकी खातिर,
कट जाते हैं पेड़
तपन धूप की खुद सह लेते
देते सबको शीतल छाया.
पत्ते, छाल, तना, जड़, सब कुछ,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 20, 2018 at 4:00pm — 16 Comments
अंबर अटा
रेगिस्तानी धूल से
जीना मुहाल
चढ़ती धूप
सुस्ताने भर ढूँढे
टुकड़ा छांव
खड़ी है धूप
छांव से सटकर
प्रतीक्षा सांझ
कटते पेड़
मौन रोता जंगल
सुनता कौन
… मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on June 20, 2018 at 3:30pm — 12 Comments
धोबन ढेर सारे कपड़़े धोकर छत पर बंधे तार पर क्लिप लगा कर सूखने डाल गई थी। कुछ ही देर में तेज़ हवायें आंधी का रूप ले चुकीं थीं। घर में कोई कपड़ों की सुध नहीं ले रहा था। वे असहाय से कपड़़े अब हवा के रुख़ के संग फड़फड़ाने लगे थे।
"बड़ा मज़ा आ रहा है! अब मैं ज़ल्दी से सूख कर राहत पाऊंंगी।" तार में लगे क्लिप और आंधी के साथ अपना संतुलन बनाते हुए एक पोषाक ने कहा।
"मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा कि कैसे संभालूं अपने आप को!" एक छोटी सी आधुनिक फैशनेबल पोषाक ने क्लिप संग सब तरफ़ झूमते हुए…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 19, 2018 at 10:46pm — 7 Comments
जाहिल हैं कुछ लोग,
तुम्हें काफ़िर लिखते हैं।
अहले दीन की सुनो, तुम्हें ज़ाकिर लिखते हैं॥
वो जो इल्म के जानिब,
शमशीर ले कर निकला।
बाक़ी हैं कुछ लोग, उसे माहिर लिखते हैं॥
तड़पती प्यास लेकर आए
थे तुम जो सहरा से।
प्यार…
Added by SudhenduOjha on June 19, 2018 at 6:42pm — No Comments
चुनावी घोषणायें - लघुकथा –
मंच से नेताजी अपने चुनावी भाषण में आम जनता के लिये लंबी लंबी घोषणायें राशन की तरह बाँट रहे थे।
"अरे साहब यह सब घोषणायें तो घिसी पिटी हैं। हर चुनाव में दोहराई जाती हैं"। नीचे से एक गाँव का आदमी चिल्लाया।
नेताजी ने मुस्कुराते हुए अपनी दाढ़ी पर हाथ फ़िराते हुए कहा,"अब मैं ऐसी घोषणा करने जा रहा हूँ जो इस देश के इतिहास में पहली बार होगा"।
सारे श्रोता गण एकाग्र होकर साँस रोक कर नेताजी की अगली घोषणा का इंतज़ार करने लगे।
"हमारी सरकार एक…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 19, 2018 at 1:00pm — 16 Comments
(फाइलातुन _मफाइलुन_फेलुन)
कोई मुश्किल ज़रूर आनी है |
हो गई उनकी महरबानी है |
तिशनगी जो बुझाए लोगों की
तुझ में सागर कहाँ वो पानी है |
और मुझ से वो हो गए बद ज़न
बात यारों की जब से मानी है |
खा गई घर का चैन मँहगाई
उनकी जिस दिन से हुक्म रानी है |
ज़ख्म तू ने दिए हैं ले कर दिल
जुल की फितरत तेरी पुरानी है |
इंक़लाब आए क्यूँ न बस्ती में
उन पे आई गज़ब जवानी है…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 19, 2018 at 9:30am — 17 Comments
उम्रभर।
मोतबर।।
मुश्किलें।
तू न डर।।
ताकती।
इक नज़र।।
धूप में।
है शज़र।।
वो तेरा।
फिक्र कर।।
रात थी।
अब सहर।।
इश्क़ ही।
शै अमर।।
मौलिक/अप्रकाशित
राम शिरोमणि पाठक
Added by ram shiromani pathak on June 19, 2018 at 8:29am — 10 Comments
तपती धूप,
जर्जर शरीर,
फुटपाथ का किनारा,
बदन पर पसीना,
किसी के आने के इन्तजार में...
पथराई सी आँखें,
घुटनों पर मुँह रखे-
एक टक, एक ही दिशा में देख रही थीं...
- ना जाने कब से?
यूँ तो सामने दो छतरी पड़ी थीं, पर
कड़ी धूप में जल-जल के,
बदन काला पड़ गया था ....
रंग बिरंगे रूमाल -
सजे तो बहुत थे, पर
जिस्म पसीने में लथपथ था....
सफेद बाल,
तजुर्बों की गबाही दे रहे थे....
जिस्म पर लटकती खाल…
Added by रक्षिता सिंह on June 19, 2018 at 6:30am — 11 Comments
2122 1122 1122 22
दे गया दर्द कोई साथ निभाने वाला ।
याद आएगा बहुत रूठ के जाने वाला ।।
जाने कैसा है हुनर ज़ख्म नया देता है ।
खूब शातिर है कोई तीर चलाने वाला ।।
उम्र पे ढल ही गयी मैकशी की बेताबी ।
अब तो मिलता ही नहीं पीने पिलाने वाला ।।
अब मुहब्बत पे यकीं कौन करेग़ा साहब ।
यार मिलता है यहां भूँख मिटाने वाला ।।
उसके चेहरे की ये खामोश अदा कहती है ।
कोई तूफ़ान बहुत जोर से आने वाला ।।
गम भी…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on June 19, 2018 at 3:56am — 11 Comments
थाहों में टटोलती कुछ, कहती थी
जाकर वहाँ फूलों की सुगन्ध में
नकली-कागज़ी मुस्कानों की उमंग में
क्या याद भी करोगे मुझको
बताओ न
स्मरण में सहज दोड़ती आऊँगी क्या ?
या, जाते ही वहाँ बन जाओगे वहाँ के
पराय-से अजीब अस्पष्ट परदेशी-बाबू तुम
नई मुख-आकृतियों के बीच देखोगे भी क्या
मुढ़कर, मद्धम हो रही इस पुरानी पहचान को
या सरका दोगे इसे स्मृतिपटल से
तुम मात्र मिथ्या कहला कर इसे
माना कि टूटा है हमारा वह…
ContinueAdded by vijay nikore on June 18, 2018 at 9:00pm — 8 Comments
कुछ क्षणिकाएं(6) :
1
नैनों का मौन
आमंत्रण
परिणाम
अभ्यंतर में
हुआ आभूषित
मौन
समर्पण
...................
2
पलकों के घरौंदों में
स्वप्न बोलते हैं
नैन
प्रभात में
यथार्थ
तौलते हैं
........................
3
चलो
हो गई मुलाकात
स्पर्शों की आंधी में
बीत गयी रात
हो गई प्रभात
............................
4
प्रेम
मौन अभिव्यक्ति…
Added by Sushil Sarna on June 18, 2018 at 4:30pm — 9 Comments
Added by Sushil Sarna on June 18, 2018 at 3:30pm — 10 Comments
कलम को चुप-चाप और उदास बैठे देख बारूद ने पूछा," क्या बात है बहन?"
"कुछ नहीँ! तुम फिर आ गए? चले क्यों नहीं जाते... कह तो दिया तुमसे अब मैं तुम्हे स्वीकार नहीं करूंगी।" गुस्से से कलम बड़बड़ाई।
" मेरे बिना तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं हैं, समझीं ! तुम्हें मेरा स्वीकार करना ही होगा।" अट्टहास लेते हुए बारूद ने अपनी अहमियत जतायी।
" नहीं कभी नहीँ ! तुम बदल गए हो अब वो बात नहीं रही, याद करो एक समय वो था जब बिस्मिल की कलम से तुमने यह लिखवाया था : सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 18, 2018 at 1:30pm — 5 Comments
2122 1212 22
नाम दिल से तेरा हटा क्या है ।
पूछते लोग माजरा क्या है ।।
नफ़रतें और बेसबब दंगे ।
आपने मुल्क को दिया क्या है ।।
अब तो कुर्सी का जिक्र मत करिए ।
आपकी बात में रखा क्या है ।।
सब उमीदें उड़ीं हवाओं में ।
अब तलक आप से मिला क्या है ।।
है गुजारिश कि आज कहिये तो ।
आपके दिल में और क्या क्या है ।।
दिल की बस्ती तबाह कर डाली ।
क्या बताऊँ तेरी ख़ता क्या…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 18, 2018 at 12:22pm — 14 Comments
जीवन की सूनी राहों में,
मधु बरसाने जैसा हो.
अबकी बार तुम्हारा आना
सचमुच आने जैसा हो.
धूप कुनकुनी खिले माघ में,
भीगा-भीगा हो सावन.
बादल गरजें जिसकी छत पर,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 18, 2018 at 10:00am — 20 Comments
जिसकी चाहत है
उसे हूर औ जन्नत देदे।
मेरे मौला मुझे बस अपनी अक़ीदत देदे॥
उतार फेंकें पैरहने -
शहंशाही दिल से।
हो सके तो हमें, तू ऐसी तबीयत देदे॥
रुक, मेरे किस्से में
तू क्योंकर नहीं शामिल।
तेरे किस्से में रहूँ मैं, ऐसी नीयत देदे॥
रात मेरी वस्ल की हो,
और साथ तेरा हो।
मेरे मौला इस रात को क़यामत देदे॥
वो मजबूरन जो सजदे पे
ईमान लेके आता है।
ऐसे मुसलमानों को भी अपनी नसीहत…
Added by SudhenduOjha on June 18, 2018 at 6:30am — No Comments
चट्टान की तरह दिखने वाले पाषाण ह्रदय पिता नारियल के समान होते हैं पर उनका एहसास मोम की तरह होता हैं.सख्त,खुरदुरे,अनुशासन प्रिय पर अंतर्मन सरलतम पिता उस संस्कारी गहरी जड़ों वाले वट वृक्ष की तरह होते हैं जिसकी विशालतम स्नेह्सिल छाया तले हम बच्चे और हमारी माँ पलती हैं.क्योकि वह पारिवारिक जिम्मेदारी का वह सारथी हैं जिस पर सभी अपनी उम्मीदों को पूरा करने का सपना संजोते हैं.और वह एक महानायक की तरह सभी को बराबर का हक देकर,अपने नाम से पहचान दिलाता हैं.जीवन की रह दिखाने…
ContinueAdded by babitagupta on June 17, 2018 at 10:04pm — 5 Comments
"नहीं कमली! हम नहीं जायेंगे वहां!" इकलौती बिटिया केमहानगरीय जीवन के दीदार कर लौटी बीवी से उसकी बदली हुई सी बोली में संस्मरण सुन कर हरिया ने कहा - "हमें ऐसा मालूम होता, तो बिटिया को बेटे की तरह न पालता... आठवीं तक ही पढ़ाता! अपना खेत न बेचता! फंस गई न वो दुनिया के झमेले में, हमें यहां अकेले छोड़के!"
बेहद दुखी पति की बातें वह चुपचाप सुनती रही। हरिया ने अपने आंसू पौंछते हुए आगे कहा - "पुरखों ने जो सब कुछ हमें सिखाया था, बिटिया को भी हमने सिखा दिया था। अरे, खेत में हर किसम के सांप,…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 17, 2018 at 8:26pm — 7 Comments
जीवन की पतंग
पापा थे डोर
उड़ान हरदम
आकाश की ओर
पापा सूरज की किरण
प्यार का सागर
दुःख के हर कोने में
खड़ा उनको पाया
छोटी ऊँगली पकड़
चलना मुझको सिखलाया
हर उलझन को पापा
तुमने ही सुलझाया
हर मुश्किल में पापा
प्यार हम पर बरसाया
मेरे हर आंसू ने
तुम्हारी आँखों को भिगोया
मेरे कमजोर पलों में
मेरा विश्वास बढ़ाया
तुम से बढ़कर पापा
प्यार न कोई पाया
प्यार न कोई पाया।
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on June 17, 2018 at 6:05pm — 15 Comments
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