चट्टान की तरह दिखने वाले पाषाण ह्रदय पिता नारियल के समान होते हैं पर उनका एहसास मोम की तरह होता हैं.सख्त,खुरदुरे,अनुशासन प्रिय पर अंतर्मन सरलतम पिता उस संस्कारी गहरी जड़ों वाले वट वृक्ष की तरह होते हैं जिसकी विशालतम स्नेह्सिल छाया तले हम बच्चे और हमारी माँ पलती हैं.क्योकि वह पारिवारिक जिम्मेदारी का वह सारथी हैं जिस पर सभी अपनी उम्मीदों को पूरा करने का सपना संजोते हैं.और वह एक महानायक की तरह सभी को बराबर का हक देकर,अपने नाम से पहचान दिलाता हैं.जीवन की रह दिखाने वाला ,जीवन के मायने समझाने वाले पिता के पास माँ के समान करूणामयी दुलार वाला आंचल नही होता लेकिन बच्चों को आसमां की का रिश्तों सामने के बच्चों अपने पिता हैं.सिखाता ढंग के ऊंचाई तक पहुचाने वाले दो बलिष्ठ मजबूत कंधे जरूर होते हैं.सही भी कहा हैं-माँ धरती हैं तो पिता आसमां .व्यक्तित्व को तराशने वाले औजार रूपी हाथों वाले पिता कठिन परिस्थितियों और संघर्ष में संकट मोचक ढाल की तरह अड़ा रहता हैं.बच्चों में विश्वास का अलख जलाकर जूझने के लिए क्षमतावान बनाता हैं.लौह पुरुष की दीवार की तरह खड़ा पिता कभी भी अपनी अंतर्व्यथा बच्चों पर जाहिर नही होने देता.म की तरह वर्तमान ना जीकर बल्कि तीनो कालो की एक कड़ी पिरोकर बच्चों में अपने आचरण और विश्वास से सटीक तौर तरीके सिखाता हैं.संस्कारों की सौगात देने वाला पिता नई ऊर्जा व आत्मविश्वास का संचार करता हैं.जीवन में अनुशासन नामक शब्द से परिचय कराकर जीवन जीने के ढंग सिखाता हैं.पिता अपने बच्चों के सामने रिश्तों का पिंजरा रखकर दायरे में रहना सिखाता हैं.जिन्दगी में आने वाले ऊंचे-नीचे पहाड़ों पर समझदारी से चलना सिखाने वाले पिता का एक ही सिद्धांत रहता हैं-सच्चाई की रह पर चलना.जीवन की पाठशाला में जौहरी की तरह काम करने वाला पिता बच्चों की भटकाव भरी जिन्दगी में मील का पत्थर साबित होता हैं.सूरज की रौशनी की तरह अपने अनुभवों को प्रकाशवान कर असमंजस्य में भरोसा दिला जीवन के हर पहलू को सुलझाते हैं.किसी ने सही ही कहा हैं- 'पिता ना तो वह लंगर हैं जो तट पर बांधे रखे,न तो लहर जो दूर तक ले जाए.पिता तो प्यार भरी रोशनी होते हैं,जो जहाँ तक जाना चाहों,वहां तक राह दिखाते हैं.'
बच्चों का साया आसमान -सा पिता मुस्तकिल आसरे की तसल्ली का नाम हैं लेकिन थोड़ा -सा अभिमानी होता हैं.बात-बात पर भावों को प्रकट ना करने वाला पिता अति व्याकुल होने पर मेघों की तरह अपनों पर गरजता-बरसता जरुर हैं पर उसकी विशालता में पनाह पाकर कोई हम पर आँख उठाकर देख भी नही पाटा,और हम स्वतंत्र विचरण करते हैं.तसल्ली का एहसास कराता पिता अपनी अहमियत जरूर दिखाने के लिए वह कंधों पर बिठाता हैं.आकाश में छिपे बादलों सा पिता एक छुपे सुकून सा ,एक विस्तृत इत्मीनान की तरह होता हैं,जिसमे पहाड़ सा दम्भ भर व्यक्तित्व समाया हुआ हैं.ईश्वर की तराशी हुई जीवंत प्रतिमा को हम पिता के नाम से जानते हैं.माँ के समान पिता का योगदान भी बच्चो के व्यक्तित्व को बनाने और संवारने में होता हैं.पिता के आचार-विचार का गहरा प्रभाव पड़ता हैं.पिता के क्रिया कलाप से बच्चों का व्यक्तित्व जीवंत होता हैं.उसका व्यक्तित्व हमारे लिए आदर्श बन जाते हैं.पिता की जो ऊंगली कदम से कदम चलना सिखाती हैं वही ऊँगली दुनियादारी का जीवन गणित सिखाती हैं.और समय पड़ने पर मक्कारी देने पर वही ऊंगली डांट भी देती हैं.पिता का व्यक्तित्व चाहे सामान्य हो या महान उसका बच्चो से मधुर रिश्ते की डोर से बंधकर रहता हैं जो अनोखा और गहरा होता हैं.सही भी हैं- 'पिता प्रकृति का दिया हुआ महाजन हैं.'
मौलिक व अप्रकाशित
बबीता गुप्ता
Comment
आदरणीया नीलम दी और आदरणीय लक्ष्मण सर जी,रचना पसंद करने के लिए आभार.
आदरणीया बबिता गुप्ता जी, अच्छी रचना की प्रस्तुति के लिए बधाई।
बहुत सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई ।
धन्यवाद सर जी.
मोहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
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