(फाइलातुन _मफाइलुन_फेलुन)
कोई मुश्किल ज़रूर आनी है |
हो गई उनकी महरबानी है |
तिशनगी जो बुझाए लोगों की
तुझ में सागर कहाँ वो पानी है |
और मुझ से वो हो गए बद ज़न
बात यारों की जब से मानी है |
खा गई घर का चैन मँहगाई
उनकी जिस दिन से हुक्म रानी है |
ज़ख्म तू ने दिए हैं ले कर दिल
जुल की फितरत तेरी पुरानी है |
इंक़लाब आए क्यूँ न बस्ती में
उन पे आई गज़ब जवानी है |
तरके उल्फत करें वही तस्दीक
मुझको तो दोस्ती निभानी है |
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
जनाब ब्रजेश कुमार साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय...
मुह तरमा नीलम साहिबा, ग़ज़ल पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
मुहतरम जनाब समर साहिब आ दाब , ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया | तरके इश्क़ करने पर तना फुर का एब हो रहा था इस लिए ऎसा किया | sher5 यूं कर दिया है "ज़ख्म तू ने दिए हैं दिल लेकर __जुल की फितरत तेरी पुरानी है" मक़ते का मिसरा यूँ कर लिया है | "तरके उलफत करें वही तस्दीक " सादर
जनाब श्याम नारायण साहिब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
आदरणीय तस्दीक अहमद जी, नमस्कार। बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है। मुबारकबाद कुबूल करें।
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
पबचवें शैर में 'बेईमानी' को "बेइमानी" करना मुनासिब नहीं है,अगर असातिज़ा के यहाँ ऐसी कोई मिसाल हो तो बराह-ए-करम पेश करें ।
मक़्ते में 'तर्क-ए-प्यार' की तरकीब भी ग़लत है,"तर्क-ए-इश्क़" कर सकते हैं ।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई! |
जनाब बसंत कुमार साहिब, ग़ज़ल पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |
बहुत खूबसूरत अशआर हुए हैं , आनंद आ गया आदरणीय
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