डियर संस्कार,
चौंक तो गये होगे! मोबाइल एप्स से, सोशल मीडिया पर या ऑनलाइन अपनी बात कहने के बजाय इस ख़त से ही अपने अंजाम से वाक़िफ़ करा रहा हूं तुम्हें। आख़िर तुमने ही तो सुसाइड के लिए मज़बूर कर दिया! ख़ूब घमंड था मुझे अपनी ऑनलाइन पढ़ाई पर! माडर्न अपडेटिड छात्र समझने लगा था मैं अपने आपको। स्कूल की पढ़ाई, ट्यूशनों की पढ़ाई और फिर सोशल मीडिया, मोबाइल गेम, आधुनिक दोस्त-यारी, फ़ोटो-वीडियोग्राफ़ी इन सब में मशगूल रहते हुए ऑनलाइन अपने हसीन करियर की हसीन रणनीति बनाया करता था मैं! रात भर…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on March 31, 2019 at 11:00am — 4 Comments
भीड भरे रस्ते पे एक दिन, बरसोँ पुराना दोस्त मिला । चेहरे से मुस्कान थी गायब, स्वर भी कुछ रुखा सा मिला । ।
मैंने पूछा कैसे हो तुम, वो बोला कुछ ठीक नहीं । मैंने पूछा और हाल-ए-इश्क, सोच के बोला ली भीख नही । ।
उसके इस उत्तर से अचम्भित, ठिठक गया मैं चलते-चलते । फिर काँधे पे हाथ रख पूछा, किसी से नहीं क्या मिलते-जुलते… |
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on March 30, 2019 at 7:00pm — 6 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 29, 2019 at 10:04pm — No Comments
हम तो कहीँ और नहीँ गये हैं बच्चोँ,
अभी भी मौज़ूद हैं ह्म तुम्हारे अंदर ।
ज़ुल्म को देखकर भी चुपचाप कैसे बैठे हो,
क्या धधकता नहीं है ज्वाला तुम्हरे अंदर । ।
हर इक शय में सियासत भरी हुई है…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on March 29, 2019 at 3:00pm — 1 Comment
1-
अर्थ धर्म या काम मोक्ष में, अर्थ प्रथम है आता।
फिर भी पैसा मैल हाथ का,क्योंकर है कहलाता।।
सब कुछ भले न हो यह पैसा, पर कुछ तो है ऐसा।
जिस कारण जीवनभर मानव,करता पैसा-पैसा।।
2-
बिना अर्थ सब व्यर्थ जगत में,क्या होता बिन पैसा।
निर्धन से वर्ताव यहाँ पर, होता कैसा-कैसा।।
धनाभाव ने हरिश्चंद्र को,समय दिखाया कैसा।
बेटे के ही क्रिया-कर्म को, पास नहीं था पैसा।।
3-
इसी धरा पर पग-पग दिखती,पैसे की ही माया।
पैसा-पैसा करते भटके, पंचतत्व की…
Added by Hariom Shrivastava on March 29, 2019 at 12:21pm — 2 Comments
माँ की लोरी सुनकर सोने वाला शिशु,
बाप की उंगली पकड चलने वाला शिशु,
दादी नानी से नये किस्से सुनने वाला शिशु,
खिलौने के लिए बाज़ार में मचलने वाला शिशु।
बडा हो…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on March 27, 2019 at 1:30pm — 2 Comments
(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )
.
मिलती अवाम को ख़ुशी की जलपरी नहीं
रुख़्सत अगर वतन से हुई भुखमरी नहीं
**
उल्फ़त जनाब होती नहीं है रियाज़ियात
चलती है इश्क़ में कोई दानिशवरी * नहीं
**
उम्र-ए-ख़िज़ाँ में आप जतन कुछ भी कीजिये
नक्श-ओ-निग़ार-ए-रुख़ की कोई इस्तरी नहीं
**
बरसों से काटती है ग़रीबी में रोज़-ओ-शब
कैसी अवाम है कहे खोटी खरी नहीं
**
घर में न…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 26, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
२२१/ २१२१/२२२/१२१२
जीवन हो जिसका संत सा गुणगान कीजिए
शठ से हों कर्म उसका ढब अपमान कीजिए।१।
साड़ी शराब ले न अब मतदान कीजिए
लालच को अपने, देश पर कुर्बान कीजिए।२।
करता है जो भी भीख का वादा चुनाव में
जूतों से ऐसे नेता का सम्मान कीजिए।३।
कुर्सी को उनकी और मत साधन बनो यहाँ
वोटर हो अपने वोट का कुछ मान कीजिए।४।
मंशा है जिनकी राज हित जनता को…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 26, 2019 at 6:52pm — 4 Comments
1-
जिसको भी मतदान का, भारत में अधिकार।
उसको चुननी चाहिए, एक कुशल सरकार।।
एक कुशल सरकार, वोट देने से बनती।
जब देते सब वोट, चैन की तब ही छनती।।
यह भी करें विचार, वोट देना है किसको।
उसको ही दें वोट, लगे अच्छा जो जिसको।।
2-
नेता कहें चुनाव में, वोटर को भगवान।
लोकतंत्र के यज्ञ में, समिधा है मतदान।।
समिधा है मतदान, यज्ञ में शामिल होना।
यह अमूल्य अधिकार, नहीं आलस में खोना।।
करके सोच विचार, वोट जो वोटर देता।
वह वोटर निष्पक्ष, सही चुनता…
Added by Hariom Shrivastava on March 26, 2019 at 1:30pm — 6 Comments
1-
हिरणाकुश नामक था, इक सुल्तान।
खुद को ही कहता था, जो भगवान।।
2-
जन्मा उसके घर में, सुत प्रहलाद।
जो करता था हर पल, प्रभु को याद।।
3-
दोनोों के थे विचार, सब विरुद्ध।
हिरणाकुश था सुत से, भारी क्रुद्ध।।
4-
बहिन होलिका पर था, ऐसा चीर।
जिसे पहनने से ना, जले शरीर।।
5-
मिला होलिका को तब, यह आदेश।
प्रहलाद को गोद लो, कटे कलेश।।
6-
बैठा गोद जपा फिर, प्रभु का नाम।
हुआ होलिका का ही, काम तमाम।।
7-…
Added by Hariom Shrivastava on March 25, 2019 at 8:00pm — 2 Comments
दोहे ... एक भाव कई रूप ...
नर से नारी माँगती ..
नर से नारी माँगती, बस थोड़ा सा प्यार।
थोड़े से उस प्यार पर, तन-मन देती वार।।
नर से नारी माँगती , सपनों का शृंगार।
नारी तन का नर अधम ,करता फिर व्यापार।।
नर से नारी माँगती , जीवन भर का साथ।
ले हाथों में हाथ वो, माने उसको नाथ।।
नर से नारी माँगती,बाहों का संसार।
बन जाता फिर प्रेम वो, माथे का शृंगार ।।
नर से नारी माँगती ,माधव जैसा प्यार।
बन…
Added by Sushil Sarna on March 25, 2019 at 6:00pm — 13 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 23, 2019 at 7:00pm — 6 Comments
Added by amita tiwari on March 23, 2019 at 12:30am — 1 Comment
होली के दोहे :
हिलमिल होली खेलिए, सब अपनों के संग।
रिश्तों में रस घोलिए, मिटा घृणा के रंग।। १
रंगों की बौछार में, बोले मन के तार।
अधर तटों को दीजिए, साजन अपना प्यार।। २
होली के हुड़दंग में , सिर चढ़ बोले भाँग।
करें ठिठोली मुर्गियाँ, मुर्गे देते बाँग।।३
तन-मन भीगे रंग में, मचली मन की प्यास।
अवगुंठन में नैन से, नैन रचाएं रास। ४
चाहे जितना कीजिए, होली पर हुड़दंग।
लग कर गले मिटाइये,…
Added by Sushil Sarna on March 22, 2019 at 7:00pm — 8 Comments
तीनों प्यासे थे। अपनी-अपनी सामर्थ्य अनुसार वे पानी की तलाश कर चुके थे। मुश्किल से एक सुनसान जगह पर एक झुग्गी के द्वार के पास एक मटका उन्हें दिखाई दिया। बारी-बारी से तीनों ने उसमें झांका। फिर गर्दन झुकाकर एक दूसरे को उदास भाव से देखने लगे। मटके में पानी का तल काफी नीचे था।
बहुत ज़्यादा प्यासे कौए ने पुरानी लोककथा अनुसार काफी कंकड़-पत्थर चोंच से उठा-उठा कर मटके में डाल कर पानी का स्तर ऊपर लाने की कोशिश की, लेकिन उसे उस कथा की कल्पना की सच्चाई समझ में आ गई। थक कर वह बैठ…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 22, 2019 at 6:30pm — 6 Comments
221, 2121, 1221, 212
दैरो हरम से दूर वो अंजान ही तो है ।
होंगी ही उससे गल्तियां इंसान ही तो है ।।
हमको तबाह करके तुझे क्या मिलेगा अब ।
आखिर हमारे पास क्या, ईमान ही तो है ।।
खुलकर जम्हूरियत ने ये अखबार से कहा ।
सारा फसाद आपका उन्वान ही तो है ।।
खोने लगा है शह्र का अम्नो सुकून अब ।
इंसां सियासतों से परेशान ही तो है ।।
उसने तुम्हें हिजाब में रक्खा है रात दिन ।
वह भी तुम्हारे हुस्न का दरबान ही तो है…
Added by Naveen Mani Tripathi on March 22, 2019 at 4:39pm — 2 Comments
2121-212-2121-212
सुब्ह शाम की तरह अब ये रात भी गई।।
ख़ैरख्वाह वो बने,खैर-ख्वाही' की गई।।
मुद्दतों के बाद गर जो यूँ बात की गई।।
खामियां जता के ही गात फिर भरी गई।।
गर दो'-आब की पवन,रोंक लें ये खिड़कियां ।
रूह चंद दिवारों के दरमियाँ सिली गई।।
गर कहूँ जो' उनकी' तो साफ़ लफ़्ज हैं यही।
रात-ओ-दिन युँ आदतन हमसे बात की गई ।।
बिन पढ़े किताब -ए- दिल ,ग़र हिंसाब कर दिया ।।
तो दरख़्ती' जिंदगी क़त्ल ही तो की…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 22, 2019 at 10:30am — 1 Comment
212 212 212 212
अब नए फूल डालों पे आने लगे,
और' भ्रमर फिर ख़ुशी से हैं गाने लगे।
पत्थरों पे हैं इल्जाम झूठे सभी,
राही के ही कदम डगमगाने लगे।
रहबरी तीरगी की जो करते रहे,
अब वो सूरज को दीपक दिखाने लगे।
वादा वो ही किया जो था तुमने कहा,
घोषणा क्यों चुनावी बताने लगे।
जिनकी आँखों पे सबने भरोसा किया,
वक्त आने पे सारे वो काने लगे।
भैंस बहरी नहीं सुन समझ लेगी सब,
बीन ये सोच कर फिर…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 21, 2019 at 11:30am — 2 Comments
++ग़ज़ल ++(221 2121 1221 212 /2121 )
सरदार लाज़मी हो असरदार तो जनाब
जो चुन सके अवाम के कुछ ख़ार तो जनाब
****
ऐसा भी क्या शजर जिसे फूलों से सिर्फ़ इश्क़
कोई हो शाख शाख-ए-समरदार* तो जनाब (*फल से लदी डाली )
***
होगा नसीब में कि न हो बात और है
ता-ज़ीस्त रहती प्यार की दरकार तो जनाब
***
जज़्बात बर्ग-ए-गुल* से ही होते हैं क़ल्ब…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 20, 2019 at 10:51pm — 2 Comments
वेदना ने नेत्र खोले
रात ने उर लौ लगाई
चांदनी कुछ मुस्कुराई
आज फिर चन्दा गगन में बादलों के बीच डोले
वेदना ने नेत्र खोले
रातरानी खिलखिलाई
रुत रचाती है सगाई
आ गया मौसम बसंती प्रीत पंछी ले हिंडोले
वेदना ने नेत्र खोले
ओ बटोही देश आजा
छोड़कर परदेश आजा
टेरती कोयल सलोनी मन पपीहा नित्य बोले
वेदना ने नेत्र खोले
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 20, 2019 at 6:11pm — 8 Comments
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